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Opinion: आज भारत समेत विश्व के ज्यादा देशों के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। चिंता की वजह साफ है। धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुंध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम केमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं। जो बचा हुआ है, उसे अब हम अपनी अमानत समझकर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं।

Opinion: दुनिया में पानी की समस्या एक विकराल समस्या के रूप में जन्म ले रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अगर हालात नहीं बदले तो आने वाले सालों में स्थितियां और बदतर हो सकती हैं। कई बड़े शहरों के बारे में कहा जा रहा है कि आने वाले समय में वहां पानी खत्म हो सकता है। कुछ साल पहले हमने चेन्नई और कई शहरों को पानी के लिए मुश्किल में देखा है। तब वहां ट्रेनों से पानी भेजा गया।

जल संरक्षण के प्रति हम गंभीर नहीं
दिक्कत ये भी है कि हमारी कुछ आदतें ऐसी हैं, जिससे हम रोज काफी पानी बर्बाद करते हैं और हमें पता भी नहीं चलता। भले दुनिया विकास कर रही है। पर साफ पानी मिलना कठिन होता जा रहा है। पृथ्वी पर घटते पेयजल को बचाने और जल संरक्षण के प्रति आज भी हम गंभीर नहीं हैं। हम पानी की कीमत नहीं समझ रहे हैं। यही वजह है कि आज भारत समेत विश्व के ज्यादा देशों के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है। चिंता की वजह साफ है। धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुंध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम केमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं। जो बचा हुआ है, उसे अब हम अपनी अमानत समझकर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं।

भले, नदियों की सफाई और उन्हें प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकारी व गैर सरकारी अनेक संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन ये सब कसरत ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं। वर्षा जल संरक्षण के मामले में भी हम गंभीर नहीं है। सरकारी आह्वान के बावजूद लोग वर्षा जल संरक्षण के प्रति गंभीर नहीं है। पर्यावरण का असंतुलन जल संकट को और बढ़ा रहा है। प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता भारत में दिनों दिन कम हो रही है। बहरहाल दुनिया की आबादी का 18 फीसदी हिस्सा रहता है, लेकिन यहां धरती के ताजे पानी के स्रोत का केवल चार फीसदी ही है। हाल के सालों में जिस तेजी से लोगों की आय बढ़ी है, उसी तेजी से पानी की मांग भी बढ़ी है। लोग एयर कंडीशनर, फ्रिज, वॉशिंग मशीन जैसे उपकरण ज्यादा खरीद रहे हैं।

65 फीसदी से ज्यादा थर्मल पावर प्लांट
देश में बिजली की कुल जरूरत का 65 फीसदी से ज्यादा थर्मल पावर प्लांट से आता है और इनमें पानी का ज्यादा इस्तेमाल होता है। अगर बिजली का इस्तेमाल ज्यादा होगा, तो इसके उत्पादन के लिए पानी की मांग भी उतनी ही बढ़ेगी। वहीं आय बढ़ने के साथ-साथ लोगों की खान-पान के तरीके बदले हैं। प्रोसेस्ड फूड की खपत ज्यादा हुई है और पहले के मुक़ाबले पानी की जरूरतें बढ़ी हैं। इसके अलावा शहरीकरण का बढ़ता दायरा और बारिश के पानी का बर्बाद होना भी बड़ी समस्या है। गौर करने वाली बात ये है कि देश में पीने के पानी की जरूरत का 85 फीसदी भूजल से पूरा होता है। लेकिन मौजूदा समय में कई इलाक़ों में लोग पानी खरीदने को बाध्य हैं। देश में प्रदूषित पानी से हर साल क़रीब दो लाख मौतें होती हैं, जबकि लाखों लोग बीमार पड़ते हैं। पानी के संकट से परिवार तो प्रभावित होते ही हैं, इसका असर समाज पर भी पड़ता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में दस से सात घरों में औरतें या लड़कियां पानी लाने का काम करती हैं। जिसका बुरा असर उनकी सेहत और परिवार की हालत पर तो पड़ता ही है, साथ ही इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में पानी के संकट से निपटने के लिए हमें इजराइल से सीखने की जरूरत है। इजराइल ने वाटर मैनेजमेंट के जरिए अपने पानी के संकट को खत्म किया है। दस साल पहले इजराइल की स्थिति भी भारत जैसी ही थी। इजराइल ने इस क्षेत्र में शानदार काम किया है। इजरायल ने कोई जादू की छड़ी नहीं घुमाई है कि पानी का संकट अपने आप खत्म हो गया। उसने दशकों तक पानी की समस्या पर काम किया। सेंट्रलाइज्ड वाटर मैनेजमेंट के जरिए उसने पानी की समस्या को खत्म किया। सबसे बड़ी बात है कि इजराइल ऐसा देश है जहां की 60 फीसदी जमीन रेगिस्तान है, बाकी धरती शुष्क है। 1948 में यहां जितनी औसत बारिश होती थी, उससे अब आधी हो रही है।

पानी को साफ करने की तकनीक विकसित
ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज ने यहां भी असर डाला। उस पर इजराइल की आबादी 1948 की तुलना में 10 गुना बढ़ चुकी है। लेकिन इन परिस्थितियों के बावजूद इजराइल ने पानी के संकट को दूर किया। इजराइल ने सबसे पहले दो-तीन तरीकों पर काम किया। पहले तो उसने पानी की बर्बादी रोकी, दूसरी गंदे पानी को साफ करने की तकनीक विकसित की, तीसरे उसने पानी के सप्लाई के रिसोर्सेज में इजाफा किया। इजराइल का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कमाल का है। इन दो-तीन उपायों को अपनाकर इजराइल भरपूर जल संसाधन वाला देश बन गया है। हालत ये है कि चीन, जापान और कनाडा जैसे देश इजराइल की तकनीक अपना रहे हैं और उससे मदद मांग रहे हैं। इजराइल के पास खारे पानी को पीने लायक पानी में बदलने की उन्नत तकनीक है। इस तरह की तकनीक हमारे पास भी है। लेकिन इजराइल की तकनीक कहीं ज्यादा विकसित है। इजराइल ने ऐसी छोटी मशीनें तैयार की हैं, जो आसानी से गंदे पानी को पीने लायक पानी में तब्दील कर सकती हैं।

ऐसी मशीनों की लागत भी कम है और वो कहीं भी आसानी से ले जाई जा सकती हैं। भारत में ऐसी मशीनों से लैस गाड़ियां ग्रामीण इलाकों में बड़े काम आ सकती हैं। इसके साथ ही इजराइल ने हवा से पानी बनाने की तकनीक भी विकसित की है। ये अपने आप में कमाल की तकनीक है। सौर उर्जा का इस्तेमाल करके यहां हवा की नमी से पीने का पानी बनाया जाता है। इजराइल ने खेती में पानी के कम से कम इस्तेमाल की तकनीक भी विकसित की है। इससे ड्रिप या माइक्रो इरिगेशन के जरिए वहां खेती में बहुत ही कम पानी से फसलों की पैदावार होती है। इस तकनीक में पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है। इस विधि से 25 से 75 फीसदी तक पानी की बचत होती है। इजराइल ने एक और सबसे बड़ा कदम वेस्ट वाटर (गंदे पानी) को लेकर उठाया है।

जरूरत के अनुसार पानी
इजराइल करीब-करीब सारे सीवेज वाटर को ट्रीट करके खेती में इस्तेमाल लायक बना लेता है। पानी के संकट को रोकने का एक और तरीका है पानी के लीकेज को रोकना। यूरोपीय देशों तक में पाइप से पानी सप्लाई में करीब 20 से 30 फीसदी पानी लीकेज से बर्बाद हो जाता है। इजरायल में पाइप लीकेज से पानी की बर्बादी सिर्फ 9 से 10 फीसदी तक होती है। स्पष्ट है कि समस्या का समाधान तो है, लेकिन इसके लिए हमें अपने तौर-तरीके बदलने होंगे और एक बार फिर पानी के इस्तेमाल के बारे में सोचना होगा, ताकि भविष्य में हर व्यक्ति के लिए, हर जगह पर जरूरत के अनुसार पानी उपलब्ध हो। नहीं तो, जैसा बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा था- पानी की अहमियत हम तब जानेंगे जब कुंआ सूख जाएगा। जल संकट का हल जरूरी है।
हिमांशु श्रीवास्तव: (लेखक उद्योगपति हैं. ये उनके अपने विचार हैं।)

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