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Opinion: कीर स्टार्मर ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं, क्योंकि उनकी लेबर पार्टी को चुनाव में भारी जीत मिली है। प्रधानमंत्री सुनक ने उत्तरी इंग्लैंड में रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट पर 23,059 वोट के अंतर के साथ दोबारा जीत हासिल की।

Opinion: ब्रिटेन के पहले हिन्दू प्रधानमंत्री और सारी दुनिया के भारतवंशियों के प्रिय ऋषि सुनक अपनी कंजरवेटिव पार्टी को ब्रिटेन की संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) के लिए हुए चुनाव में जीत दिलवाने में नाकाम रहे। हालांकि वे अपनी सीट जीतने में सफल रहे। ऋषि सुनक ने उस परंपरा को ही आगे बढ़ाया था जिसका 1961 में श्रीगणेश सुदूर कैरिबियाई टापू देश ग्वाना में छेदी जगन ने किया था। वे तब ग्याना के प्रधानमत्री बन गए थे।

पुरखे पंजाब से केन्या चले गए
उनके बाद मॉरीशस में शिवसागर रामगुलाम से लेकर अनिरुद्ध जगन्नाथ, त्रिनिदाद और टोबैगो में वासुदेव पांडे, सूरीनाम में चंद्रिका प्रसाद संतोखी, अमेरिका में कमल हैरिस वगैरह राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनते रहे। ये सभी उन मेहनतकशों की संतानें रही हैं, जिन्हें गोरे दुनियाभर में लेकर गए थे, ताकि वे वहां खेती कर लें। सुनक के पुरखे पंजाब से करीब 80 साल पहले केन्या चले गए थे और वहां से वे ब्रिटेन जाकर बसे। बेशक, आगे भी छेदी जगन और सुनक की तरह भारतवंशी भारत के बाहर राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनते रहेंगे।

लेबर पार्टी को चुनाव में भारी जीत
ये भारतीय जीते बहरहाल, कीर स्टार्मर ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं, क्योंकि उनकी लेबर पार्टी को चुनाव में भारी जीत मिली है। प्रधानमंत्री सुनक ने उत्तरी इंग्लैंड में रिचमंड एवं नॉर्थलेरटन सीट पर 23,059 वोट के अंतर के साथ दोबारा जीत हासिल की। सुनक की पार्टी की शिवानी राजा ने लीसेस्टर ईस्ट की सीट जीत ली है। लीसेस्टर ईस्ट में लड़ाई में कई दिग्गज शामिल थे, जिनमें पूर्व सांसद क्लाउड वेबे और कीथ वाज शामिल थे जिन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था।

कीथ वाज भारतीय मूल के हैं। वे पहले संसद के सदस्य रहे हैं। शिवानी राजा शिक्षा की दुनिया से जुड़ी हुई हैं। वो लंबे समय से कंजरवेटिव पार्टी की एक्टिविस्ट हैं। भारत में जन्मे कनिष्का नारायण पूर्व वेल्स की सीट से जीत गए हैं। वे भी कंजरवेटिव पार्टी के उम्मीदवार थे। नारायण 12 साल की उम्र में ब्रिटेन आ गए थे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड और फिर स्टैनफोर्ड में पढ़ाई की। भारतीय मूल की सुएला ब्रेवरमैन ने फेयरहैम और वाटरलूविल सीट जीती है। उनके पिता गोवा और मां तमिल मूल की हैं। सुनक ने पिछले साल ब्रेवरमैन को पार्टी की नीतियों के खिलाफ चलने के कारण उन्हें कंजरवटिव पार्टी से निकाल दिया था।

इनकी भी धाक
पंजाबी हिन्दू परिवार से संबंध रखने वाले गगन मोहिन्दर फिर से साउथ वेस्ट हर्टफोर्डशायर सीट से चुनाव जीत गए हैं। निवर्तमान संसद के सदस्य नवेन्दू मिश्र लेबर पार्टी की टिकट पर स्टॉकपोर्ट सीट से कामयाब रहे हैं। भारतीय सांसदों के बढ़ने की उम्मीद ब्रिटेन की निवर्तमान संसद में 15 भारतीय मूल के सांसद थे और यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है। ब्रिटेन के आम चुनाव 2024 में, कुल 107 ब्रिटिश भारतीय उम्मीदवार 680 उपलब्ध सीटों के लिए चुनाव लड़ रहे थे। जब सारे चुनाव नतीजे आ जाएंगे तब लेबर और कंजरवेटिव दोनों दलों से कई भारतवंशी सफल उम्मीदवारों की सूची में होंगे।

देखिए, यह बात माननी होगी कि भारतीयों का राजनीति करने में कोई जवाब नहीं है। वे देश से बाहर जाने पर भी सिवासत के मैदान में मौका मिलते ही कूद पड़ते हैं। वहां पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ही देते हैं। संसद का चुनाव कनाडा का हो, ब्रिटेन का हो या फिर किसी अन्य लोकतांत्रिक देश का, भारतीय उसमें अपना असर दिखाने से पीछे नहीं रहते। उन्हें सिर्फ वोटर बने रहना नामंजूर है। वे चुनाव लड़ते हैं। अब करीब दो दर्जन देशों में भारतवंशी संसद तक पहुंच चुके हैं। हिन्दुस्तानी सात समंदर पार मात्र कमाने-खाने के लिए ही नहीं जाते। वहां पर जाकर हिन्दुस्तानी सत्ता पर काबिज होने की भी चेष्टा करते हैं। अगर यह बात न होती तो 22 देशों की पार्लियामेंट में 182 भारतवंशी सांसद न होते।

ब्रिटेन के पहले हिन्दू प्रधानमंत्री और सारी दुनिया के भारतवंशियों के प्रिय ऋषि सुनक अपनी कंजरवेटिव पार्टी को ब्रिटेन की संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) के लिए हुए चुनाव में जीत दिलवाने में नाकाम रहे। हालांकि वे अपनी सीट जीतने में सफल रहे। ऋषि सुनक ने उस परंपरा को ही आगे बढ़ाया था जिसका 1961 में श्रीगणेश सुदूर कैरिबियाई टापू देश ग्याना में छेदी जगन ने किया था।

दक्षिण अफ्रीका में भी उपस्थिति
अब जरा दक्षिण अफ्रीका को लें। वहां पिछले माह मई में संसद के लिए हुए चुनाव में भी भारतीय मूल के बहुत से उम्मीदवार विभिन्न राजनीतिक दलों से अपना भाग्य आजमा रहे थे। उन्होंने संसद और प्रांतीय असेंबलियों में भी जीत दर्ज की। मेरगन शेट्टी लगातार तीसरी बार संसद के लिए चुने गए। क्वाजुलू-नाटाल प्रांतीय विधानसभा की सदस्य शारा सिंह ने राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया और संसद सदस्य बन गईं। शेट्टी संसद में डेमोक्रेटिक एलायंस (डीए) के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले भारतीय मूल के सदस्य बताए जाते है।

उन्होंने पहले 2006 में पीटरमारिट्जबर्ग नगर परिषद का प्रतिनिधित्व किया था। शारा सिंह ने संसद में चने जाने के बाद स्थानीय सरकार की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। डीए के संसद के लिए 87 सदस्य चुने गए हैं। इनमें से चार भारतीय मूल के हैं। इस बीच, ए, सरूपेन ने लगातार दूसरी बार संसद के चुनाव में जीत हासिल की। सरूपेन के पूर्वज उत्तर प्रदेश से थे। वे गौतेंग प्रांतीय विधानसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। इंकाथा फ्रीडम पार्टी के नेता नरेंद्र सिंह, अफ्नीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) की फ़ासीहा हसन, अल जमा-आह के इमरान इस्माइल मूसा भी निर्वाचित हुए हैं।

इनके अलावा, गोपाल रेड्डी और शुनमुगम रामसामी मूडली भी संसद पहुंचे हैं। अधिकांश चुने गए भारतीय मूल के सदस्य दक्षिण अफ्रीका में ही पैदा हुए हैं, लेकिन केरल के पथानमथिट्टा जिले के तिरुवल्ला के मूल निवासी अनिलकुमार केसवा पिल्लई ने 40 साल पहले दक्षिण अफ्रीका की स्थानीय राजनीति में खुद को स्थापित किया था। एक युवा शिक्षक के रूप में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे पिल्लई शिक्षकों के एक ट्रेड यूनियन नेता के रूप में उभरे। उन्हें पहली बार 2019 में एएनसी के प्रतिनिधि के रूप में ईस्टर्न केप की प्रांतीय परिषद के लिए चुना गया था। पिल्लई के अलावा, डीए के सदस्य इमरान कीका, एम. नायर और रिओना गोकुल को भी क्वाजुलू-नाटाल की प्रांतीय विधानसभा के लिए फिर से चुना गया है।

भारत के ब्रांड एंबेसेडर
भारतवंशी निश्चित रूप से भारत के ब्रांड एंबेसेडर हैं। भारत इनकी उपलब्धियों पर नाज करता है, लेकिन कनाडा का मामला थोड़ा हटकर है। वहां पर बसे भारतीयों का एक वर्ग घनघोर रूप से भारत विरोधी के रूप में सामने आता है। वहां पर खालिस्तानी खुलकर अपना खेल खेलते हैं। कनाडा के मंत्री हरजीत सिंह सज्जन की छवि एक घोषित खालिस्तानी की रही है। कुछ साल पहले वे भारत आए थे तब पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनसे मुलाकात करने तक से मना कर दिया था।। सज्जन की हरकतें उन्हें कतई सज्जन नहीं बनाती। अब कुछ महीनों के बाद अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव है। उम्मीद है कि वहां एक बार फिर से भारतवंशी कमला हैरिस उप राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाएंगी।
विवेक शुक्ला : (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)

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