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ग्रहों के राजा भगवान भास्कर आज सुबह 08.52 बजे देवगुरु ब्रहस्पति की राशि से शनिदेव की राशि मकर में प्रवेश करेंगे। सूर्य के इसी राशि परिवर्तन को मकर संक्रांति या खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। आज से आगामी एक माह तक भगवान भास्कर मकर राशि में विचरण करेंगे।

Makar Sankranti 2024: ग्रहों के राजा भगवान भास्कर आज सुबह 08.52 बजे देवगुरु ब्रहस्पति की राशि से शनिदेव की राशि मकर में प्रवेश करेंगे। सूर्य के इसी राशि परिवर्तन को मकर संक्रांति या खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। आज से आगामी एक माह तक भगवान भास्कर मकर राशि में विचरण करेंगे। इसी के साथ आज से खरमास समाप्त हो जायेगा और एक माह से रुके मांगलिक कार्यों हेतु मुहूर्त मिलना शुरू हो जाएगा।

मां शारदा देवीधाम मैहर के ज्योतिष आचार्य पंडित मोहनलाल द्विवेदी ने बताया कि इसका पुण्यकाल प्राय दिन भर ही रहेगा। आज सर्वत्र गंगा नदी अन्यत्र नदी तीर्थ एवं कुआ सरोवर आदि में स्नान किया जाएगा । आज के दिन स्नान एवं दान का विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है। ऊनी वस्त्र, दुशाला, कंबल, जूता तथा धार्मिक पुस्तकें विशेष कर पंचांग का दान विशेष पुण्य फल कारक होता है । इस महापर्व को सम्पूर्ण देश में अपनी रीती एवं परंपरा  के अनुसार अलग अलग तरीके से मनाया जाता है ।

आज से खरमास समाप्त होंगे मांगलिक कार्य
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है और मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से खरमास की समाप्ति भी होती है। मकर संक्रांति इस बार 15 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। सूर्य के उत्तरायण होने पर खरमास भी समाप्त होगा और सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। मकर संक्रांति का दिन सूर्य की पूजा के लिए विशेष होता है। ऐसे में इस दिन कुछ राशियों का भाग्य सूर्य की तरह चमक उठेगा।

राजनेता और लेखकों के लिए लाभदायक है ये संक्रांति
मकर संक्रांति के दिन बुध और मंगल भी एक ही राशि धनु में विराजमान रहेंगे। इन ग्रहों की युति राजनीति, लेखन में कार्य कर रहे लोगों के लिए बहुत शुभदायक होगी।

संक्रांति का पुण्यकाल आज पूरे दिन
पंडित द्विवेदी ने बताया कि पौष मास शुक्ल पक्ष तिथि चतुर्थी दिन सोमवार दिनांक 15 जनवरी 2024 को भगवान सूर्य देव धनु राशि से दिन 8 बजकर 52 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। अतः संक्रान्ति का पुण्य फल ( खिचड़ी) दिनांक 15 जनवरी 2024 को मनाया जायेगा ।

पुण्य तीर्थ में स्नान से मिलती है समस्त पापो से मुक्ति
जैसा कि श्री राम चरित मानस में माघ महात्म में कहा गया है।
माघ मकर गति रवि जब होई।
तीरथ पतिहि आव सब कोई। 
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी । 
सादर मज्जाहिं सकल त्रिवेणी ॥

माघ मास में सभी देवता तीर्थ प्रयागराज में निवास करते है। संक्रान्ति के दिन जो भक्त (व्यक्ति) पुण्य काल में गंगा, संगम व किसी पुण्य तीर्थ में स्नान करता है। वह समस्त पापों से मुक्त होकर पुण्य फल प्राप्त करता है। संक्रान्ति के दिन काले तिल, गुड़, फल, खिचङी व ऊनी वस्त्र का दान करना चाहिए। जिससे व्यक्ति को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को
पंडित द्विवेदी बताते है कि मकर संक्रांति का त्योहार हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। बीते कुछ वर्षों से मकर संक्रांति की तिथि और पुण्यकाल को लेकर उलझन की स्थिति बनने लगी है। दरअसल इस उलझन के पीछे खगोलीय गणना है। गणना के अनुसार हर साल सूर्य के धनु से मकर राशि में आने का समय करीब 20 मिनट बढ़ जाता है। इसलिए करीब 72 साल के बाद एक दिन के अंतर पर सूर्य मकर राशि में आता है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुगल काल में अकबर के शासन काल के दौरान मकर संक्रांति 10 जनवरी को मनाई जाती थी तथा स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी मकर संक्रांति के दिन हुआ था। अब सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय 14 और 15 के बीच में होने लगा क्योंकि यह संक्रमण काल है।

इससे पहले साल 2012 में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को हुआ था। इसलिए साल 2012 में भी मकर संक्रांति इस दिन मनाई गई थी। गणना के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई गयी। इतना ही नहीं करीब पांच हजार साल बाद मकर संक्रांति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनाई जाने लगेगी।

ज्योतिषीय गणना एवं मुहुर्त चिंतामणी के अनुसार सूर्य सक्रान्ति समय से 16 घंटे पहले एवं 16 घंटे बाद तक का पुण्य काल होता है। निर्णय सिन्धु के अनुसार मकर सक्रान्ति का पुण्यकाल सक्रान्ति से 20 घंटे बाद तक रहता है । ज्योतिष गणना के अनुसार इस बार मकर संक्रांति की शुरुआत मन के कारक ग्रह चंद्र देव के शतभिषा नक्षत्र में भ्रमण दौरान हो रही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार शतभिषा नक्षत्र होने पर दान, स्नान, पूजा पाठ और मंत्रों का जाप करने पर विशेष शुभ फल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति पर शतभिषा नक्षत्र के साथ वरियान योग का निर्माण हो रहा है।

आज से देवताओं का दिन शुरू
सूर्य का रथ दो भागों में चलता है। छः महीने दक्षिणायन को और छः महीने उत्तरायण को चलता है। मनुष्यों के छः महीने बीतते हैं तब देवताओं की एक रात होती है एवं मनुष्यों के छः महीने बीतते हैं तो देवताओं का एक दिन होता है । उत्तरायण के दिन देवता लोग भी जागते हैं। हम पर उन देवताओं की कृपा बरसे, इस भाव से भी यह पर्व मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन यज्ञ में दिये गये द्रव्य को ग्रहण करने के लिए वसुंधरा पर देवता अवतरित होते हैं। इसी प्रकाशमय मार्ग से पुण्यात्मा पुरुष शरीर छोड़कर स्वर्गादिक लोकों में प्रवेश करते हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना गया है। इस उत्तरायण पर्व का इंतजार करनेवाले भीष्म पितामह ने उत्तरायण शुरू होने के बाद ही अपनी देह त्यागना पसंद किया था। विश्व का कोई योध्दा शर-शय्या पर अट्ठावन दिन तो क्या अट्ठावन घंटे भी संकल्प के बल से जी के नहीं दिखा पाया। वह काम भारत के भीष्म पितामह ने करके दिखाया। 

आज भगवान दिनकर उत्तरायण हो जायेंगे। हमारे धर्मग्रंथो में यह शुभ शुरुआत मानी जाती है। एक नए सूरज के साथ होने वाली नयी सुबह और मकर सक्रांति का अवसर एक साथ कई सन्देश देने की कोशिश करता है। मकर संक्रांति के पावन पर्व पर सूरज निकला तो उत्तर भारत में अमृत स्नान का जोश है, पंजाब में लोहड़ी का उमंग है, दक्षिण में नयी फसल तैयार होने की ख़ुशी में पोंगालका उत्साह है, चहु ओर एक नयी उम्मीद उन्मुक्त ख़ुशी साफ झलक है रही, मानो प्रकृति ही सन्देश दे रही हो, उठो और उत्सव मनाओ। मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है। इस शुभ दिन तिल खिचड़ी का दान करते हैं। इसको दान करने से स्थूल परम्पराओं मे आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं। इसलिए इस दिन दान करना चाहिए।

खिचड़ी और तिल का करें दान
पंडित द्विवेदी के अनुसार अभी कलियुग का अंतिम समय चल रहा है। सारी मानवता दुखी-अशांत हैं। हर कोई परिवर्तन के इंतजार में हैं। सारी व्यवस्थाएं व मनुष्य की मनोदशा जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं। ऐसे समय में विश्व सृष्टिकर्ता परमात्मा शिव कलियुग, सतयुग के संधिकाल अर्थात संगमयुग पर ब्रह्मा के तन में आ चुके हैं। जिस प्रकार भक्ति मार्ग में पुरुषोत्तम मास में दान-पुण्य आदि का महत्व होता है, उसी प्रकार पुरुषोत्तम संगमयुग का अपना अलग ही महत्व होता है। जिसमें ज्ञान स्नान करके बुराइयों का दान करने से, पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा को उत्तम पुरुष बना सकते हैं। इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं, इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों में आसुरियता की मिलावट हो चुकी है, अर्थात उसके संस्कार अब खिचड़ी में परिवर्चित हो चुके हैं, जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोडकर संस्कारों का मिलन अलग अंदाज से कर सकते हैं। जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है। ठीक उसी प्रकार से अच्छे संस्कारों को शामिल करें। 

परमात्मा की आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों को भी हमें तिलांजलि देना है। जैसे उस गंगा मेँ भाव-कुभाव से ज़ोर जबर्दस्ती से एक दो को नहलाकर खुश होते हैं और इसी को शुभ मानते हैं। इसी प्रकार अब हमें ज्ञान गंगा में नहलाकर मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाना होता है। ठीक उसी प्रकार यह त्यौहार खुशियां लाता है जैसे जब नयी फसल आती है, तो सभी खुशियाँ मनाते हैं। इसी प्रकार वास्तविक और अविनाशी खुशी प्राप्त होती है, बुराइयों का त्याग करने के लिए इस त्यौहार को मनाना चाहिए। 

इस समय सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है। इसलिए इसे संक्रमण काल कहा जाता है, अर्थात एक दशा से दूसरी दशा में जाने का समय। यह संक्रमण काल उस महान संक्रमण काल का यादगार है जो कलियुग के अंत सतयुग के आरंभ में घटता है। इस संक्रमण काल में ज्ञान सूर्य परमात्मा भी राशि बदलते हैं। वे परमधाम छोड़ कर साकार वतन मेँ अवतरित होते हैं। संसार में अनेक क्रांतियां हुई। हर क्रांति के पीछे उद्देश्य – परिवर्तन रहा है... हथियारों के बल पर जो क्रांतियां हुई उनसे आंशिक परिवर्तन तो हुआ, किन्तु सम्पूर्ण परिवर्तन को आज मनुष्य तरस रहा है। सतयुग में खुशी का आधार अभी का संस्कार परिवर्तन है, इस क्रांति के बाद सृष्टि पर कोई क्रांति नहीं हुई। संक्रांति का त्योहार संगमयुग पर हुई उस महान क्रांति की यादगार में मनाया जाता है। 

स्नान 
सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान, ज्ञान स्नान का यादगार है। 

तिल खाना 
तिल खाना, खिलाना, दान करने का भी रहस्य है। वास्तव में छोटी चीज़ की तुलना तिल से की गयी है। आत्मा भी अति सूक्ष्म है। अर्थात तिल आत्म स्वरूप में टिकने का यादगार है। 

पतंग उड़ाना 
मकर संक्रांति के दिन पतंग को उड़ाना काफी शुभ माना जाता है। आत्मा हल्की हो तो उड़ने लगती है। लेकिन देहभान वाला उड़ नहीं सकता है। जबकि आत्माभिमानी अपनी डोर भगवान को देकर तीनों लोकों की सैर आसानी से कर सकता है। 

तिल के लड्डू खाना 
तिल को अलग खाओ तो कड़वा महसूस होता है। अर्थात अकेले मेँ भारीपन का अनुभव होता है। लड्डू एकता एवं मिठास का भी प्रतीक है। 

तिल का दान 
दान देने से हमें पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसे में अगर मकर संक्रांति के दिन दान करें तो भाग्य चमक जाता है। अतः वर्तमान संगंयुग में हमें परमात्मा को जितना हो सके अपनी छोटी कमज़ोरी का भी दान देना है। 

आग जलाना 
अग्नि में डालने से चीज़ें पूरी तरह बदल जाती, सामूहिक आग - योगीजन संगठित होकर एक ही स्मृति से ईश्वर की स्मृति मे टिकते हैं, जिसके द्वारा न केवल उनके जन्म-जन्म के विकर्म भस्म हो जाते हैं। उनकी याद की किरणें समस्त विश्व में शांति, पवित्रता, आनंद, प्रेम, शक्ति की तरंगे फैलाने का काम करती हैं।

यदि इस पर्व को हम सब इस विधि द्वारा मनाए तो न केवल हमें सच्चे सुख की प्राप्ति होगी बल्कि हम परमात्म दुआओं के भी अधिकारी बनेंगे.

पंडित मोहनलाल द्विवेदी
वास्तु एवं ज्योतिर्विद (मां शारदा देवीधाम मैहर)

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