(कीर्ति राजपूत)
Kaise Tuta Lord Ganesha ka Ek dant : सनातन धर्म में कोई भी शुभ काम से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। धार्मिक पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश के कई नाम हैं, जैसे गजानन, विघ्नहर्ता, एकाक्षर, एकदंत। इसके अलावा भी कई नाम हैं जिनसे भगवान गणेश को संबोधित किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में भगवान गणेश की असंख्य लीलाओं का वर्णन मिलता है। भगवान गणेश के हर नाम के पीछे कोई न कोई कहानी है। ऐसे ही आज के इस आर्टिकल में भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बता रहे हैं एकदंत नाम के पीछे की पौराणिक कथा। आइए जानते हैं कैसे टूटा सिद्धी विनायक का एक दांत और कैसे बने वह एकदंत।
एकदंत से जुड़ी पौराणिक कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान गणेश के एक दांत के टूटने की कई कथाएं प्रचलित हैं। इन सभी में सबसे अधिक प्रमुख है भगवान गणेश और भगवान परशुराम के बीच हुए युद्ध की कहानी। पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार की बात है जब भगवान शिव के परम भक्त भगवान परशुराम कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के दर्शन करने के लिए पहुंचे थे। उस समय भगवान शिव और माता पार्वती आराम कर रहे थे। उस समय बाहर भगवान गणेश पहरेदारी कर रहे थे। जैसे ही भगवान परशुराम कैलाश पर्वत पर पहुंचे तो उन्हें भगवान गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। भगवान परशुराम ने भगवान गणेश से अंदर जाने देने के लिए कई बार आग्रह किया, लेकिन उन्होंने उन्हें नहीं जाने दिया। जिससे क्रोधित होकर भगवान परशुराम ने भगवान गणेश को युद्ध की चुनौती दे दी।
इस चुनौती को भगवान गणेश ने स्वीकार कर ली। जिसके बाद दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। भगवान परशुराम के हर वार को भगवान गणेश ने रोक दिया, लेकिन अंत भगवान शिव का दिया परशु से परशुराम ने प्रहार किया तो भगवान गणेश ने उसका मान रखते हुए उसे अपने ऊपर ले लिया। उस वार से भगवान गणेश का एक दांत टूट गया और पीड़ा से वे तड़प उठे। पुत्र की पीड़ा सुनते ही माता पार्वती आ गईं और भगवान गणेश की ऐसी हालत देख परशुराम पर क्रोधित हो गईं और दुर्गा रूप धारण कर लिया।
भगवान परशुराम ने माता को क्रोधित देख कर उनसे क्षमा मांगी और भगवान गणेश को अपना सारा बल, तेज, कौशल और ज्ञान आशीर्वाद के रूप में प्रदान किया। कालांतर में भगवान गणेश ने इस टूटे दांत से ही महर्षि वेदव्यास द्वारा उच्चरित ‘महाभारत-कथा’ लिखी। सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान गणेश को ‘एकदंत’ रूप माता पार्वती, भगवान भोलेनाथ और जगतपालक श्रीहरि विष्णु की सामूहिक कृपा से प्राप्त हुआ। यही कारण है कि भगवान गणेश इसी रूप में समस्त लोकों में पूजे जाते हैं।