Paris Paralympics :पेरिस पैरालंपिक में भारत के हाथ एक और पजक लगा है। भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास एल यथिराज ने बैडमिंटन में सिल्वर मेडल जीता है। उनकी उम्मीद गोल्ड जीतने की थी, लेकिन उनको सिल्वर पर ही संतोष करना पड़ा। 2 सितंबर (सोमवार) को उन्हें बैडमिंटन के पुरुष सिंगल्स SL4 फाइनल में फ्रांस के दिग्गज खिलाड़ी लुकास माजुर के हाथों 9-21, 13-21 से हार का सामना करना पड़ा। 41 वर्षीय सुहास टोक्यो पैरालंपिक में भी में माजुर से परास्त हो गए थे। जिसके चलते उनको रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। पेरिस पैरालंपिक में बैडमिंटन में भारत को ये चौथा मेडल मिला है।
इससे पहले नितेश कुमार ने गोल्ड जीता था। वहीं थुलासिमथी मुरुगेसन सिल्वर और मनीषा रामदास ब्रॉन्ज जीतने में कामयाब हुई थीं। सुहास के सिल्वर मेडल जीतने के साथ ही मौजूदा पैरालंपिक गेम्स में भारत के पदकों की संख्या अब 12 हो गई है। भारत ने अब तक दो गोल्ड, पांच सिल्वर और पांच ब्रॉन्ज मेडल जीता है।
मैच के फाइनल राउंड में वर्ल्ड नंबर-1 सुहास अपना बेस्ट नहीं दे पाए। पहले गेम में सुहास बिल्कुल भी लय में नहीं दिखे। दूसरे गेम में सुहास ने वापसी की कोशिश ने फ्रांस के दिग्गज खिलाड़ी ने अहम पॉइंट्स लेकर मैच अपने नाम कर लिया। सुहास ने इस साल माजुर को विश्व चैम्पियनशिप 2024 में मात दी थी, लेकिन एक बार फिर पैरालंपिक में माजुर भारतीय खिलाड़ी पर भारी पड़ गए।
कौन हैं सुहास एल यथिराज?
सुहास एल यथिराज वर्तमान में उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। फिलहाल वह उत्तर प्रदेश सरकार के युवा कल्याण और प्रांतीय रक्षक दल के सचिव और महानिदेशक के रूप में कार्य कर रहे हैं। सुहास गौतम बुद्ध नगर और प्रयागराज के डीएम रह चुके हैं। कर्नाटक के शिगोमा में जन्मे सुहास एलवाई ने अपनी मेहनत से नाम कमाया है। सुहास जन्म से ही दिव्यांग (पैर में दिक्कत) थी और वह कभी IAS नहीं बनना चाहते थे। बचपन से उनके खेल पसंद था। इसके लिए उन्हें पिता और परिवार का भरपूर साथ भी मिला। पैर पूरी तरह फिट नहीं था, ऐसे में समाज के ताने उन्हें सुनने को मिलते, पर पिता और परिवार चट्टान की तरह उन तानों के सामने खड़े रहा और कभी भी सुहास का हौंसला नहीं टूटने दिया।
कैसी रही सुहास की शिक्षा?
सुहास के पिता उन्हें सामान्य बच्चों की तरह देखते थे। सुहास का क्रिकेट प्रेम उनके पिता की ही देन है। परिवार ने उन्हें कभी नहीं रोका, जो मर्जी हुई सुहास ने उस गेम को खेला और पिता ने भी उनसे हमेशा जीत की उम्मीद की। पिता की नौकरी ट्रांसफर वाली थी, ऐसे में सुहास की पढ़ाई शहर-शहर घूमकर होती रही। सुहास की शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई तो वहीं सुरतकर शहर से उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग पूरी की। साल 2005 में पिता की मृत्यु के बाद सुहास टूट गए। सुहास ने बताया कि उनके जीवन में पिता का महत्वपूर्ण स्थान था, पिता की कमी खलती रही। उनका जाना सुहास के लिए बड़ा झटका था। इसी बीच सुहास ने ठान लिया कि अब उन्हें सिविल सर्विस ज्वाइन करनी है और फिर क्या था सब छोड़छाड़ कर उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की।
कैसा रहा सुहास के बैडमिंटन का सफर?
सुहास बैडमिटन को पहले शोक के लिए खेलते थे, लेकिन बाद में वह उनकी जरूरत बन गया। सुहास अपने दफ्तर की थकान को मिटाने के लिए बैंडमिंटन खेलते थे, लेकिन जब कुछ प्रतियोगिताओं में मेडल आने लगे तो फिर उन्होंने इस प्रोफेशनल तरीके से खेलना शुरू कर दिया। साल 2016 में उन्होंने इंटरनेशनल मैच खेलना शुरू किया। चाइना में खेले गए बैंडमिंटन टूर्नामेंट में सुहास अपना पहला मैच हार गए, लेकिन इस हार के साथ ही उन्हें जीत का फॉर्मूला भी मिल गया और उसके बाद ये सफर अभी तक लगातार जारी है।