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संस्कृत विद्यामंडलम द्वारा जारी मेरिट लिस्ट में जिन छात्रों के नाम हैं, उनकी उत्तरपुस्तिकाओं में भिन्न-भिन्न हैंडराइटिंग है। 

रायपुर। टॉपर्स कांड में हरिभूमि-आईएनएच के खुलासे पर जांच टीम ने अपनी मुहर लगा दी है। जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में यह स्वीकार किया है कि टॉपर्स की उत्तरपुस्तिकाएं अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा लिखी गई हैं अर्थात एक ही छात्र की कॉपियां कई लोगों ने मिलकर लिखी हैं। ना सिर्फ टॉपर्स बल्कि परीक्षा में शामिल 90 फीसदी छात्रों की उत्तरपुस्तिकताओं में हैंडराइटिंग भिन्न-भिन्न पाई गई है। जांच समिति ने देर रात तक एक-एक उत्तर पुस्तिका की जांच की, पता चला कि 90 फीसदी ज्यादा परीक्षार्थियों ने खुद उत्तर ही नहीं लिखे हैं। दसवीं और बारहवीं की मेरिट में लिस्ट में कुल 24 परीक्षार्थी थे, इनमें से 19 के अंक उत्तर पुस्तिकाओं से मिले अंक से मेल नहीं खाते। इतना ही नहीं उनकी हैंडराइटिंग भी अलग है।

गौरतलब है कि, हरिभूमि ने पहले ही यह खुलासा कर दिया था कि संस्कृत विद्यामंडलम द्वारा जारी मेरिट लिस्ट में जिन छात्रों के नाम हैं, उनकी उत्तरपुस्तिकाओं में भिन्न-भिन्न हैंडराइटिंग है। जांच टीम ने आधी रात तक एक-एक उत्तरपुस्तिकाओं की जांच की है। इसके बाद अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपी है। गौरतलब है कि संस्कृत विद्यामंडलम के परिणाम 15 मई को घोषित किए गए थे। कक्षा नवमी से बारहवीं तक 3 हजार 504 परीक्षार्थियों ने परीक्षा दिलाई। 2024 की मुख्य परीक्षा के लिए छत्तीसगढ़ में 41 परीक्षा केंद्र बनाए गए थे। परीक्षाओं में रिकॉर्ड 10वीं में 98.48% व 12वीं में 98.43% उत्तीर्ण रहे थे।

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बगैर उत्तरपुस्तिका देखे कंप्यूटर पर चढ़ाए अंक
लापरवाही और फर्जीवाड़ा की चरम सीमा यह रही कि उत्तर पुस्तिकाओं में छात्रों को कितने अंक हासिल हुए हैं, यह देखने की भी जहमत नहीं उठाई गई। बाबुओं ने अपने मन से सबको पास करने की नियत से कंप्यूटर में अंक चढ़ा दिए। जिस छात्र की उत्तरपुस्तिका में यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि वह फेल है, उसके रोल नंबर के सामने भी 70 से 80 अंक कंप्यूटर में चढ़ा दिए गए हैं। ज्यादातर मार्कशीट ऐसी मिली हैं जिनकी उत्तर पुस्तिकाओं से अंक मेल नहीं खा रहे हैं। उत्तर पुस्तिका में नंबर कुछ और हैं और मार्कशीट में कुछ ओर। सूत्र बताते हैं कि पैसे लेकर यह सब खेल किया गया।

ऊपरी स्तर पर मिलीभगत, शाला स्तर पर भी संरक्षण
जांच में यह सामने आया है कि संस्कृत विद्यामंडल के ऊपरी अधिकारियों का संरक्षण फर्जीवाड़ा करने वालों को प्राप्त था। शाला स्तर पर भी प्राचार्यों का संरक्षण शिक्षा माफियाओं को मिला हुआ था। सबकी सांठ-गांठ से ही यह घोटाला हुआ है। ऊपरी अधिकारियों को निचले स्तर पर हो रही इन गड़बड़ियों की जानकारी थी, लेकिन कोई कड़ा एक्शन उनके द्वारा नहीं लिया गया। ग्रामीण स्तर पर कई बार लोगों द्वारा इसकी शिकायत भी की गई, लेकिन किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। यदि शुरुआती वक्त में ही शिकायतों पर कार्रवाई हो जाती, तो इतना बड़ा फर्जीवाड़ा संभव नहीं था।

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पूरी परीक्षा ही फर्जी, दस फीसदी ही ठीक
जांच में पाया गया है कि केवल 10 फीसदी परीक्षार्थियों ने ठीक से परीक्षा दी है। उन्होंने खुद अपने उत्तर लिखे हैं। बाकी करीब 2 हजार से ज्यादा की उत्तर पुस्तिकाओं में अलग-अलग हेंडराइटिंग मिली हैं। इतना ही नहीं, एक ही स्कूल में एक विषय की उत्तर पुस्तिकाओं का अवलोकन किया गया, तब पता चला कि सभी में एक ही व्यक्ति ने उत्तर लिखे हैं। माना जा रहा है कि पैसे देकर किसी एक व्यक्ति ने सभी की उत्तर पुस्तिकाओं में जवाब लिखे हैं। 

परीक्षा रद्द किया जाना भी संभव
जांच रिपोर्ट में जिस तरह 90 फीसदी उत्तर पुस्तिका में गड़बड़ी पाई गई है उसके बाद पूरी परीक्षा पर ही सवाल उठ गया है। जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई है। उसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा। सूत्र बताते हैं कि उच्च स्तर पर परीक्षा रद्द किए जाने की संभावना पर विचार किया जा रहा है। इसमें केवल एक ही दिक्कत हैं कि जो दस फीसदी परीक्षार्थी सही हैं, उनके साथ अन्याय होगा।

कानूनी कार्रवाई पर विचार
जांच रिपोर्ट के बाद इस मामले में एफआईआर भी कराई जा सकती है। नीचे से ऊपर तक हुए खेल में करोड़ों के लेनदेन की आशंका है। माना जा रहा है कि पूरा रैकेट ही काम कर रहा था। उस रैकेट में दर्जनों लोग शामिल थे जिन्होंने मिलकर परीक्षा का मजाक बना दिया और प्रदेश का नाम खराब हुआ।
 

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