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गरियाबंद जिले के लगभग सभी गांवों में बच्चे डेंटल फ्लोरोसिस का शिकार हो रहे हैं। यह बीमारी पानी में फ्लोराइड की ज्यादा मात्रा से होती है।

बिलासपुर। गरियाबंद जिले के लगभग सभी गांवों में बच्चे डेंटल फ्लोरोसिस का शिकार हो रहे हैं। यह बीमारी पानी में फ्लोराइड की ज्यादा मात्रा से होती है। इसे कंट्रोल करने  जिले के 40 गांवों में 6 करोड़ की लागत से प्लांट तो लगाए गए लेकिन वह कुछ महीने में ही बंद हो गए। हाईकोर्ट ने इसे संज्ञान में लिया है। नोटिस के बाद अपने जवाब में विभागीय सचिव की ओर से कहा गया है कि क्षेत्र में लगातार इलाज जारी है। प्रभावितों तक पहुंचा जा रहा है। जवाब में यह भी कहा गया कि पानी में 8 गुना फ्लोराइड की बात सामने नहीं आई है। अधिकतम तीन गुना ही पाया गया। इसके साथ ही 40 फ्लोराइड रिमूवल प्लांट में से 24 सही तरीके से काम कर रहे हैं। बाकी को सुधारा जा रहा है। जानकारी के मुताबिक गरियाबंद जिले के इन प्रभावित गांवों में हर साल 100 से ज्यादा स्कूली छात्रों को डेंटल फ्लोरोसिस होता है। 

फिलहाल, इन गांवों में 50 से 60 बच्चे डेंटल फ्लोरोसिस से ग्रसित मिल रहे है वहीं देवभोग ब्लॉक के गांवों में कुल पीड़ितों की संख्या 2 हजार से भी ज्यादा है। साल 2016 में शासन-प्रशासन को जांच में फ्लोराइड ज्यादा होने की जानकारी लगी। देवभोग ब्लॉक के 40 गांव के स्कूलों में जो पेयजल सप्लाई हो रही है वहां 8 गुना तक ज्यादा फ्लोराइड था। प्रशासन ने कार्य योजना बना कर समी प्रमावित क्षेत्रों में फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाने का फैसला लिया।

बंद प्लांट शुरू कराने कोई व्यवस्था नहीं 

रिपोर्ट के बाद भी पानी से फ्लोराइड अलग करने की व्यवस्था नहीं की गई। पड़ताल में पता चला कि हैवी फ्लोराइड वाले ग्राम नांगलदेही, पीठापारा दरलीपारा, गोहरापदर, झाखरपारा, घूमगुड़ा. धुपकोट, मोखागुड़ा, निष्टिगुड़ा, सुकलीमाठ, मूरगुडा, खम्हारगुड़ा, माहुकोट, पूरनापानी बरबहली, बाड़ी गांव, कचिया, धौराकोट, मूड़ागाव, मगररोडा जैसे प्रत्येक गांव में 50 से 60 बच्चे डेंटल फ्लोरोसिस से ग्रसित मिले। सभी की उम्र 6 से 10 साल की है। धौराकोट, मगररोड़ा, गाड़ाघाट कांडपारा, पीठापारा के प्रधान पाठकों ने बताया कि बंद प्लांट को शुरू कराने के लिए कई बार कोशिश हुई। ठेकेदार के मुनीम से लेकर पीएचई विभाग के इंजीनियर तक को सूचित किया गया. लेकिन कोई सुध लेने नहीं आया। 

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