रायपुर। शासकीय दूधाधारी बजरंग महिला महाविद्यालय में पुण्यश्लोक लोक माता देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सच्चिदानंद शुक्ला ने की। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता विशिष्ट अतिथि डॉक्टर टोपलाल वर्मा, पूर्व प्राध्यापक भूगोल और प्रांत संघ चालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने की।
प्राचार्य डॉक्टर किरण गजपाल ने कहा कि, देवी अहिल्याबाई का जीवन एक सशक्त नारी का जीवन रहा, जिससे सभी छात्राओं को प्रेरणा मिलेगी। वह वीरता, प्रजावत्सलता और दूरदर्शिता की प्रतिमूर्ति थीं। उन्होंने अपनी प्रजा को उद्यमिता, न्याय प्रियता आदि सिखाई जो हम सबके लिए अनुकरणीय है।

जीव-जंतुओं को भी प्रजा मानती थीं रानी अहिल्याबाई
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रोफेसर सच्चिदानंद शुक्ला ने कहा कि, मालवा की रानी देवी अहिल्याबाई होलकर को प्रजा के द्वारा पुण्य श्लोका और देवी की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने कहा कि, कोई जीवन में देवी की उपाधि ऐसे ही नहीं पा सकता। अहिल्या बाई जी ने कई मंदिरों का जीर्णोद्वार करवाया। वे केवल मनुष्यों को ही नहीं अपितु जीव-जंतुओं को भी अपनी प्रजा मानती थीं।
धर्म परायणता में श्रेष्ठ रानी
मुख्य वक्ता टोपलाल वर्मा ने कहा कि, यह पूरा वर्ष माता अहिल्याबाई होलकर की त्रिशताब्दी वर्ष के रूप में समर्पित है। जन-जन तक माता अहिल्याबाई का जीवन पहुंचाना है। कुछ लोग दूसरों के लिए जीते हैं और अमर हो जाते हैं। देवी अहिल्या बाई ने पूरा जीवन राष्ट्र को अर्पित किया। लोकमाता अहिल्या देवी का सामाजिक योगदान उनकी न्यायप्रियता और धर्म परायणता श्रेष्ठ थी।
15 सालों तक किया शासन
अहिल्या बाई ने घर पर ही शिक्षा और युद्धकला सीखी। खंडेराव होलकर से उनका विवाह हुआ और 12 साल में इंदौर की महारानी बन गईं। अपने पति की मृत्यु के बाद वह सती नहीं हुई बल्कि उन्होंने 15 सालों तक शासन संभाला। वह प्रधान सेनापति भी रहीं। कुछ समय बाद उनकी राजधानी महेश्वर में स्थानांतरित की गई। समाज में समरसता लाने के लिए उन्होंने जाति-धर्म का भेद मिटा दिया। उन्होंने 250 साल पहले ही महिलाओं के विकास के लिए काम किया। उन्होंने महिलाओं के लिए कानून बनाया, दत्तक प्रथा की शुरुआत की इसके अलावा पुनर्विवाग के लिए भी प्रेरित किया। उनका प्रबंधन उच्च कोटि का था।
प्रजा का रखती थीं ध्यान
सोमनाथ द्वारका देव प्रयाग का अन्न भंडार आज भी चल रहा है जो उनकी देन है। उनके राज्य में 28 साल में कभी सूखा नहीं पड़ा क्योंकि वे पौधे लगवाती थीं, नदी-तालाब का संरक्षण करती थीं। अपने परिवार और प्रजा में उन्होंने कोई भेदभाव नहीं किया। गोचर भूमि चारागाह बनाए। किसानों को अपनी फसल का एक भाग पशुओं के लिए छोड़ने का आदेश दिया। उनके कार्य सभी को प्रेरित करते हैं।
ये रहे मौजूद
कार्यक्रम में परीक्षा नियंत्रक डॉ प्रकाश कौर सलूजा मंचासीन मौजूद थीं। छात्र संघ प्रभारी डॉक्टर वैभव आचार्य के संयोजन में कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ कल्पना मिश्रा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ रितु मारवाह ने किया। छात्र संघ समिति से डॉ मिनी एलेक्स, डॉ प्रीति जायसवाल और सभी प्राध्यापक, अधिकारी कर्मचारी और छात्राएं बड़ी संख्या में मौजूद रहीं।