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प्राचीन शिव मंदिर धार्मिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यहां विराजमान शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता, इसका लगातार बढ़ता आकार है।

यशवंत गंजीर/कुरुद- विभाजक रेखा खारुन नदी के तट पर स्थित ग्राम कौही का प्राचीन शिव मंदिर धार्मिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यहां विराजमान शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता, इसका लगातार बढ़ता आकार है। इस वक्त शिवलिंग की ऊंचाई लगभग छह फीट है। खुदाई के बाद से लेकर अब तक शिव का दूसरा छोर नहीं मिला है। 

जब स्वामी के सपने में आए महादेव

ग्राम कौही में खारून नदी के किनारे 15 एकड़ भू-भाग में फैले आनंद मठ के मुख्य मंदिर में विराजमान स्वयंभू शिवलिंग खुदाई करते हुए खंडित हो गई। तब से स्वामी मोहनानंद को सपने में महादेव दिखाई दिए। जिसके बाद शिवलिंग के साथ मंदिर निर्माण का आदेश मिला है। जिसके बाद स्वामी जी ने जन सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर निर्माण के पहले लगभग 20 से 25 फीट खुदाई की गई, लेकिन शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिला।

खारून के तट पर महादेव की लीला 

मंदिर समिति से जुड़े योगेश्वर साहू ने बताया कि, हमारे पूर्वजों के अनुसार ग्राम कौही के ही जागीरदार विशाल प्रसाद तिवारी के पुत्र स्वामी मोहनानंद तंत्रविद्या के साधक थे। मोहनानंद ने ही देवी काली की प्राण प्रतिष्ठा की थी। महाकाली के संबंध में जनश्रुति है कि 100 साल पहले स्वामी जी की साधना से कोलकाता से चलकर मां काली यहां पहुंचीं। इसके बाद जलमार्ग से होते हुए खारून के तट पर विराजमान हो गई। तब से लेकर आज तक मां काली और महादेव की साथ-साथ पूजा होती है।

तीन दिनों तक मेला लगता है

राजेश तिवारी और रमन टिकरिहा ने बताया कि, इस गांव के नदी के किनारे शिव मंदिर प्रांगण में महाशिवरात्रि पर तीन दिनों तक मेला लगता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर लोग अपनी मनोकामना लेकर आते है और शिवलिंग के दर्शन कर मनोकामना पूरी करने के लिए आशीर्वाद लेते है। मेले का शुभारम्भ इसी गुरुवार यानी 7 मार्च से हुआ है, जो तीन दिनों तक चलेगा। 

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