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निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अर्थात आरटीई में प्रतिपूर्ति राशि घोटाला चल रहा है।

देवीलाल साहू - भिलाई। निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अर्थात आरटीई में प्रतिपूर्ति राशि घोटाला चल रहा है। आरटीई के नियमानुसार, विद्यालय में जितनी प्रवेश संख्या है, उसके 25 प्रतिशत सीटों पर ही गरीब छात्रों को प्रवेश दिया जाना है। इन गरीब छात्रों  की फीस शासन द्वारा दी जाती है। शासन से अधिक राशि वसूलने छोटे और मंझोले निजी विद्यालयों ने 25 प्रतिशत से अधिक सीटों पर गरीब छात्रों को प्रवेश दे दिया। इन अतिरिक्त छात्रों की फीस शासन से वसूल भी ली। किसी तरह की मॉनिटरिंग नहीं होने के कारण करोड़ों रूपए का चूना शासन को सालों से लगाया जा रहा है। फिलहाल ऐसे सर्वाधिक मामले भिलाई-दुर्ग में सामने आए हैं। इन जिलों सहित प्रदेश के कई स्कूलों में इस तरह की गफलत की जा रही है। इसे शिक्षा विभाग के बाबू, अधिकारी से लेकर शैक्षणिक संस्थानों के कर्ता-धर्ता की मिलीभगत से अंजाम दिया जा रहा है।

इस तरह घोटाले को दे रहे अंजाम

सरकार ने प्रत्येक स्कूलों का  यू-डाइस कोड बनाया हुआ है। स्कूलों को इस कोड का प्रयोग करते हुए निर्धारित पोर्टल में प्रवेश संख्या सहित अन्य जानकारी अपलोड करनी होती है। इसमें दी गई जानकारी के अनुसार ही आरटीई सीटों का निर्धारण होता है। निजी विद्यालयों द्वारा पोर्टल में दर्ज संख्या और वास्तविकता में प्रवेश प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या में अंतर चौंकाने वाले हैं। पोर्टल में अधिक दर्ज संख्या दिखाने के कारण यहां आरटीई सीटें भी अधिक हो जाती हैं, जिस पर प्रवेश के लिए आवेदन शासन द्वारा मंगाए जाते हैं।

प्रति छात्र 7 हजार रुपए

लोक शिक्षण संचालनालय आरटीई के अंतर्गत प्राथमिक कक्षाओं में अध्ययनरत एक बच्चे के लिए 7000 रुपए प्रति छात्र सालाना देता है। उच्चतर कक्षाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए सालाना प्रति छात्र 11,400 रुपए दिए जाते हैं। शैक्षणिक सत्र 2023-2024 की आरटीई राशि का भुगतान दिसंबर 2024 में किया गया। सत्र 2024-25 की आरटीई राशि का भुगतान निजी विद्यालयों को फिलहाल नहीं किया गया है। सत्र 2024-25 में 54,668 आरटीई सीटों के लिए आवेदन मंगाए गए थे। इनमें से 46,217 सीटें ही भर सकी थीं। सत्र 2025-26 के लिए 51,713 सीटों पर आवेदन मंगाए गए हैं।

केस - 1 

एक स्कूल का यू-डाइस कोड 22100604505 है। पोर्टल में यहां नर्सरी से लेकर सातवीं तक प्रवेश संख्या 169 उल्लेखित है। आरटीई नियम के अनुसार, इन सीटों का 25 प्रतिशत 39 होता है। 39 सीटों पर ही गरीब छात्रों को प्रवेश दिया जाना था, लेकिन इस विद्यालय में गरीब वर्ग के 95 बच्चों को प्रवेश दे दिया। इस तरह शासन से 4 लाख 6 हजार की राशि अतिरिक्त ली गई।

केस- 2 

एक स्कूल का यू-डाइस कोड 22100601903 है। इस विद्यालय में कक्षावार दर्ज संख्या 50 उल्लेखित है। नियमानुसार, 10 बच्चों की प्रतिपूर्ति राशि मिलनी थी, लेकिन 60 बच्चों का भुगतान लिया गया है। जिससे शासन को 3,18,000 रुपए का नुकसान पहुंचाया गया। 

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केस - 3 

एक विद्यालय का यू-डाइस कोड 22100600104 है। इस स्कूल में नर्सरी से लेकर आठवीं तक यू-डाइस पोर्टल में दर्ज संख्या 222 उल्लेखित है। आरक्षित सीटों के हिसाब से कक्षावार 45 सीटें आरटीई की होनी चाहिए, लेकिन यहां आरटीई के अंतर्गत 61 बच्चों को दाखिला दिया गया। इस आधार पर 1,82,000 रुपए का अतिरिक्त भुगतान ले लिया गया।

केस - 4 

एक विद्यालय का यू-डाइस कोड 22100603005 है। इस स्कूल में 130 बच्चे दर्ज हैं। नियमानुसार यहां आरटीई के अंतर्गत 30 छात्रों को प्रवेश दिया जाना था, लेकिन 57 को प्रवेश दिया गया। नियमविरूद्ध अतिरिक्त बच्चों को प्रवेश देकर शासन को 1 लाख 96 हजार का नुकसान पहुंचाया गया। 

केस- 5 

एक विद्यालय का यू-डाइस कोड 22100600106 है। इस स्कूल की दर्ज संख्या 396 है। इस स्कूल में आरटीई के 134 बच्चों को प्रवेश दिया गया, जबकि यह संख्या 101 होनी थी। इस तरह से 41 बच्चों के अतिरिक्त भुगतान के रूप में 3 लाख 200 रुपए अतिरिक्त लिए गए।

बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं छात्र 

निजी विद्यालय संघ  के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने बताया कि, कई सामान्य वर्ग के विद्यार्थी प्रवेश लेने के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। इस कारण उनकी संख्या कम हो जाती है और आरटीई छात्रों की संख्या बढ़ जाती है। 

मामले को चेक करवाता हूं 

दुर्ग जिला शिक्षा अधिकारी अरविंद मिश्रा  ने बताया कि, स्कूलों में यू डाइस कोड में उल्लेखित दर्ज संख्या और प्रवेशित बच्चों की दर्ज संख्या में अंतर के हिसाब से अतिरिक्त प्रतिपूर्ति राशि ली जा रही है तो यह मेरे संज्ञान में अभी आया है। इस मामले को चेक करवाता हूं। 

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