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गरियाबंद जिले में इस बार पांच नगरीय निकाय हो गए हैं। इनमें सबसे प्रतिष्ठित मानी जाता है राजिम शहर। वैसे इस बार गरियाबंद नगर पालिका पर भी सबकी निगाहें होंगी। 

श्यामकिशोर शर्मा/राजिम। छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में अभी आरक्षण का अता-पता नहीं है, पर लड़ाके अपने आपको न केवल तैयार कर रहे हैं, बल्कि जनसंपर्क भी करने लग गए हैं। गरियाबंद जिले में अब चार की जगह पांच निकाय हो गए हैं। इनमें राजिम, फिंगेश्वर, छुरा और कोपरा नगर पंचायत हैं, जबकि गरियाबंद को नगर पालिका का दर्जा प्राप्त है।

जिले के बड़े शहर राजिम की बात करें तो यहां के लड़ाके तैयार तो हैं, मगर वे आरक्षण की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। शहर के मतदाताओं को अभी से मालूम हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी से किसे प्रत्याशी बनाया जा सकता हैं और कांग्रेस से कौन हो सकता हैं उम्मीदवार? भाजपा अभी अति उत्साह में दिख रही है। कारण भी साफ हैं, केंद्र और राज्य में सरकार भाजपा की है। स्थानीय विधायक- सांसद भी भाजपा के हैं। नगरीय निकाय चुनाव में उन्हें परिस्थिति अनुकूल नजर आ रही है। इस लिहाज से दावेदार भी कई हो गए हैं।

भाजपा-कांग्रेस से कई दावेदार

भाजपा से जो नाम उछलकर सामने चल रहे हैं उनमें नपा अध्यक्ष रेखा-जितेंद्र सोनकर, भाजपा के जिला उपाध्यक्ष अधिवक्ता महेश यादव, मंडल अध्यक्ष कमल सिन्हा, नगर पंचायत की सभापति पुष्पा गोस्वामी और भाजपा में नए शामिल हुए अशोक मिश्रा के नाम शामिल हैं। जबकि कांग्रेस की बात करें तो नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष पवन सोनकर और जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रशासनिक महामंत्री अधिवक्ता विकास तिवारी का नाम सामने आ रहा है। 

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भाजपा-कांग्रेस

विधायकों के लिए होगी दुविधा

उधर भाजपा के दो दावेदार महेश यादव और कमल सिन्हा विधायक रोहित साहू के करीबी माने जा रहे हैं और इधर कांग्रेस के दोनो दावेदार पवन सोनकर और विकास तिवारी पूर्व विधायक अमितेश शुक्ल के करीबी के रूप में जाने जाते हैं। वर्तमान विधायक और पूर्व विधायक दोनो के लिए इस बार दुविधाजनक स्थिति पैदा होगी। इस बड़े संकट से वे कैसे उबरेंगे? किसे खुश करेंगे, किसे नाराज... यह तो समय ही बताएगा। बहरहाल उस समय की परिस्थिति पर निर्भर होगा, जब आरक्षण का पिटारा खुलेगा। 

समस्या निवारण पर लगी दावेदारों की नजर

जानकारों की माने तो कांग्रेस को यदि इस चुनाव में भाजपा हल्के में लेगी तो उनके लिए यह बहुत बड़ी भूल होगी। क्योंकि कांग्रेस की मोचेर्बंदी अभी से शुरू हो चुकी है। बहुतों को यह नहीं मालूम कि, कांग्रेस इस बार शहरीय मतदाताओं को रिझाने में कोई कसर बाकी नही रखने वाली है। अभी नगरीय निकायों में जनसमस्या निवारण पखवाड़ा शिविर चल रहा है। शिविरों में मूलभूत समस्या बिजली, पानी, सड़क और सफाई के आवेदन ज्यादातर आ रहे हैं। इसे सुलझाने में दोनो ही पार्टी के दावेदार जी जान से लगे हुए हैं। मतलब मतदाताओं को यह बताने की कोशिशें हो रही हैं कि, हम आपकी समस्याओं को दूर करने के लिए आपके साथ कदम से कदम मिलाकर खड़े हैं।

मायने रखेगा उम्मीदवार का चाल-चरित्र और चेहरा 

चुनाव करीब हैं इसे मतदाता भी अच्छी तरह से समझ रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि, दोनो पार्टियां आरक्षण के बाद अपनी रणनीति किस तरह की तैयार करेंगी? वैसे स्थानीय चुनाव में उम्मीदवार का चाल, चरित्र और चेहरा ज्यादा मायने रखता है। बुद्धजीवी वर्ग अपने हिसाब से सोचते हैं। गरीब तबके के लोग अपने हिसाब से। चुनाव चाहे कोई भी हो अब महंगा हो चुका है। उम्मीदवारों से जनता की अपेक्षाएं काफी बढ़ चुकी हैं। जो उम्मीदवार मतदाताओं की इच्छा के अनुरूप उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे, रिझाने में सफल होंगे उसे सपोर्ट अधिक मिलेगा। फिर तो राजिम, जिले का सबसे ज्यादा जागरूक और शिक्षित शहर कहलाता है। स्थानीय चुनाव में मुद्दे भी स्थानीय होते हैं। इन मुद्दों को कैसे भुनाया जाएगा ये भी यहां के स्थानीय नेता बखूबी जानते हैं। 

निर्दलीय भी ताल ठोंकने की तैयारी में

स्थानीय चुनाव में निर्दलीय भी अपना किस्मत आजमाते हैं और इस बार भी आजमाएंगे। मैदान में उतरने को तो कई उत्सुक हैं लेकिन यह आरक्षण की घोषणा के बाद पता चलेगा। चुनावी समीकरण भी कई बार बनेगा-बिगड़ेगा और यह सब उस समय के परिस्थिति पर निर्भर करेगा। दुश्मन भी दोस्त बनेंगे और दोस्त भी दुश्मन बन जाएंगे। कहना न होगा राजिम की राजनीति और कूटनीति की गुणा- भाग को समझ पाना इतना आसान काम नहीं है। कब किसको निपटा देंगे और कब तो किसे सिर पर बिठा देंगे, कह नहीं सकते।

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