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धमतरी व दुर्ग जिले की विभाजक रेखा खारुन नदी के तट पर स्थित ग्राम कौही का प्राचीन शिव मंदिर धार्मिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है।

कुरुद। धमतरी व दुर्ग जिले की विभाजक रेखा खारुन नदी के तट पर स्थित ग्राम कौही का प्राचीन शिव मंदिर धार्मिक और सामाजिक एकता का प्रतीक है। यहां विराजमान शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता इसका लगातार बढ़ता आकार है। इस वक्त शिवलिंग की ऊंचाई लगभग छह फीट है। खुदाई के बाद से लेकर अब तक शिव का दूसरा छोर नहीं मिला है। यहां प्रत्येक वर्ष सावन में बोलबम भक्तों का मेला लगता है और प्रत्येक सोमवार महाप्रसादी का आयोजन होता है।

ग्राम कौही स्थित शिव मंदिर में आज आखिरी  सावन सोमवार को शिवलिंग की पूजा एवं अभिषेक करने शिवभक्त उमड़ेंगे। मंदिर जय महाकाली हनुमान समिति, विहिप, अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार एवं बोलबम सेवा समिति सिलघट, कौही, सुपेला, सेमरा, सिलतरा, बोरेन्दा के संयुक्त तत्वाधान में श्रद्धालुओं द्वारा विशेष पूजा अर्चना के साथ विशाल मानव श्रृंखला बनाकर खारून नदी के जल से भगवान शिवलिंग का अभिषेक किया जाएगा। तत्पश्चात महाप्रसादी भोग भंडारा का आयोजन किया जायेगा।

जब स्वामी के सपने में आए महादेव 

ग्राम कौहों में खारुन नदी के किनारे 15 एकड़ भू-भाग में फैले आनंद मठ के मुख्य मंदिर में विराजमान स्वयंभू शिवलिंग खुदाई करते हुए खंडित हो गई। तब से स्वामी मोहनानंद को सपने में महादेव दिखाई दिए। जिसके बाद शिवलिंग के साथ मंदिर निर्माण का आदेश मिला है। जिसके बाद स्वामी जी ने जन सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर निर्माण के पहले लगभग 20 से 25 फीट खुदाई की गई, लेकिन शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिला। 

क्या है मान्यता, क्यो होती है मां काली व महादेव की एक साथ पूजा

राजेश तिवारी, रमन टिकरिहा, धनसिंग सेन, अनिरुद्ध देवांगन, पंकज सिन्हा आदि श्रद्धालुओं ने बताया कि इस गांव के नदी के किनारे शिव मंदिर प्रांगण में महाशिवरात्रि पर तीन दिनों तक मेला लगता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर लोग अपनी मनोकामना लेकर आते है और शिवलिंग के दर्शन कर मनोकामना पूरी करने के लिए आशीर्वाद लेते है। जनश्रुति है कि 100 साल पहले यहां के स्वामी मोहनानंद की साधना से खारून नदी के जलमार्ग से, कोलकाता से चलकर मां काली यहां पहुंची थी। इसके बाद खारून के तट पर विराजमान हो गई। 

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