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Exclusive : प्रदेश के डिप्टी सीएम और गृह मंत्री विजय शर्मा से हरिभूमि और आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने 'सार्थक संवाद' शो में ख़ास बातचीत । यहां देखें वीडियो-

रायपुर। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद को तीन साल में समाप्त करने का जो ऐलान किया है, उससे न तो मैं दबाव महसूस करता हूं न ही हमारी सरकार। इससे हम उत्साह में हैं। हमें भरोसा है, तय समय पर हम लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। बस्तर का दर्द समाप्त हो जाएगा और बस्तर में विकास होगा। बस्तर के दर्द को समाप्त करने के लिए नक्सलियों से हम किसी भी माध्यम से बात करने के लिए हमेशा तैयार हैं। ये बातें हरिभूमि- आईएनएच न्यूज के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी से सार्थक संवाद में प्रदेश के डिप्टी सीएम और गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहीं। प्रस्तुत है, बातचीत ।

■ जब मंत्री बने और गृह विभाग मिला तो आपको क्या लगा, मंत्री बनाए गए हैं या निपटाए गए हैं?

■ विभागों के बंटवारे में जब मैंने अपने पास गृह विभाग देखा तो पहले मुझे कुछ समझ नहीं आया, बाद में मुझे समझ आया है कि एक तो मुझे पंचायत विभाग दिया गया है, दूसरा महापंचायत।

■ गृह विभाग को कांटों का ताज कहा जाता है, प्रदेश में गृह मंत्रियों का इतिहास रहा है, आपको लगा नहीं कि कांटों का ताज आपके हिस्से में क्यों आया?

■ जो जीवन पहले रहा है, वही है। जीवन संषर्घ है, फिर से संघर्ष है, फिर से करके दिखाना है। यही भाव मन में रहा है, इसी भाव से काम कर रहा हूं। ईश्वर दया करेंगे।

■ आपको डिप्टी सीएम बनाया गया, फिर गृह विभाग दिया गया, इसकी जानकारी कैसे हुई। आपसे चर्चा करके गृह विभाग दिया गया या अखबारों से जानकारी हुई?

■ जब मुझे जानकारी हुई कि मुझे डिप्टी सीएम बनाया जा रहा है तो मुझे यकीन नहीं हुआ कि मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी इस दी जा रही है। पत्रकार साथियों से जानकारी मिली, बाद में मुझे फोन आया कि आपको शपथ लेनी है। बाद में मालूम हुआ डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ लेनी है। शपथ ले ली। विभाग वितरण के समय मुझे कोई जानकारी नहीं थी।

■ बृजमोहन अग्रवाल के बाद आमतौर पर आदिवासी विधायक को गृह विभाग दिया जाता था, भाजपा शासन में। इस सरकार में सामान्य वर्ग से आपको गृह विभाग दिया गया तो पार्टी या मुख्यमंत्री द्वारा आपसे कोई अपेक्षा जाहिर की गई, क्या चाहते हैं आपसे ?

■ पार्टी के नाते कुछ नहीं कहा गया। भिड़कर काम करेंगे, पसीना बहाकर काम करेंगे। यह भाव सबके मन में होता है। जब हमारे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कह दिया, तीन साल में नक्सलवाद समाप्त करना है, उस दिन से ये तय कर लिया है, प्राणबद्ध तरीके से लगकर काम करना है। अब हर क्षण इसीलिए जीना है। 

■  कांग्रेस शासनकाल में कवर्धा मामले में आपको जेल जाना पड़ा, पुलिस की प्रताड़ना का भी सामना किया, जब आप गृह मंत्री बने तो आपने क्या महसूस किया और उन लोगों ने क्या सोचा, जिन्होंने आपको प्रताड़ित किया था?

■ मैं उस जेल में निरीक्षण करने गया, जहां पर मैं कैदी के तौर पर था, वो एक अलग अनुभव होता है। विभाग में भी बहुत सारी बातें होती हैं, लेकिन कभी किसी से व्यक्तिगत तौर पर कुछ नहीं होता है। किसानों का धान नहीं बिक रहा था तो कवर्धा कलेक्टोरेट में 9 दिनों तक धरने पर बैठा था। पीएम आवास वाला भी बड़ा आंदोलन था। हम विधानसभा गेट तक पहुंच गए थे, वहां रुक गए, लेकिन गेट के अंदर नहीं गए। हमें लिमिट मालूम है। इसके बाद कानून का अपमान होता है।

■ ऐसा क्या बदल गया है, जो अब जवान नहीं, नक्सली मारे जा रहे हैं?

■ सरकार बदल गई और सरकार का संकल्प बदल गया। संकल्प बड़ी बात होती है। अमित शाह ने जब नक्सलवाद को लेकर कहा, तीन साल में समाप्त करना है, इसके बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का भी दिशा-निर्देश आया, तब स्पष्ट रूप से समझ में आ गया कि क्या करना है। इसी के साथ कैसे करना है, यह भी महत्वपूर्ण है। बेसकैंप के माध्यम से आगे बढ़े। हमारी नीति बनी, जवानों की सुरक्षा के साथ नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोलना है। ये भी तय है ये सरकार हर कदम, हर क्षण चर्चा के लिए तैयार है।

■ सरकार बदली तो प्रशासन का मुखिया भी नहीं बदला, डीजीपी को भी नहीं बदला गया, क्या कारण है?

■ ये तो मुख्यमंत्री का विषय है, सीएस और डीजीपी। कवर्धा में भी एसपी वही हैं और कलेक्टर भी वही हैं। कहीं नहीं लगा कि किसी को बदलना चाहिए। सरकार बदली है, सरकार क्या चाहती है, यह बदला है। उसके आधार पर काम होता है। सभी अधिकारी उसी आधार पर काम करते हैं।

■ आप गोली और बोली दोनों की बात करते हैं, नक्सल मोर्चे पर आखिर सरकार क्या चाहती है?

■ देश में कहीं आतंकवाद है और वहां कोई आत्मसमर्पण करता है तो दस साल बाद भी आप उसको बॉडीगार्ड बनाने के लिए तैयार नहीं होंगे। बस्तर के भोले-भाले आदिवासी, जिनको बहला-फुसलाकर नक्सली बनाया जाता है, वे आत्मसमर्पण के एक हफ्ते बाद बॉडीगार्ड बनने को तैयार हो जाते हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी वापसी के बहुत से रास्ते हैं, बहुत संभावनाएं हैं। इसलिए सरकार हमेशा कहती है, हम हमेशा बात करने के लिए तैयार हैं। वीडियो कॉल से फोन पर भी कोई चर्चा करना चाहे तो हम तैयार हैं।

■ 526 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, यह सरकार की पुनर्वास नीति के कारण हो रहा है, या नक्सलियों को घर में घुसकर मारने के कारण हो रहा है?

■ सरकार की पुनर्वास नीति अच्छी है, भाजपा सरकार की पहले वाली नीति भी अच्छी थी, इस बारे में इसे और अच्छा किया गया है। आत्मसमर्पण के पीछे यह नीति और लोगों के मन का बदलाव है। हम लोग सिलेगर गए थे, वहां पर बच्चों ने गाना गाया था, हमको भी कलेक्टर साहब बनना है। पॉलिसी और ऑपरेशन अपने स्थान पर है, लोगों का मन बदल रहा है।

■ विपक्ष कहता है, बड़ी संख्या में निर्दोष आदिवासी मारे जा रहे हैं?

■ सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था देश में, उस वक्त कहा गया था, सैनिक घूमकर आ गए। अगर इमरान खान का बयान नहीं आता तो उनकी बातों को सच मान लिया जाता। लोगों को लगा, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बोल रहे हैं तो सच बात होगी। कांकेर की नक्सली मुठभेड़ को भूपेश बघेल ने फर्जी बताया था, उसके तीन दिन बाद नक्सलियों ने ही सूची जारी कर बताया था कि उनके ये 29 साथी मारे गए हैं। ये फर्जी बातें करते हैं। जवानों का मनोबल तोड़ना नहीं चाहिए।

■ बस्तर में विकास के लिए भी कुछ हो रहा है या सिर्फ वहां गोली चलवा रहे हैं?

■ बस्तर में जो कैंप है, वो सुरक्षा के नहीं, विकास के कैंप है। नियद नेल्लानार योजना का जो नाम है, उसका अर्थ है आपका अच्छा गांव। बस्तर के पूरे विकास के लिए काम हो रहे हैं। बस्तर में कैंप के माध्यम से जो काम हो रहे हैं, उसके कारण मुख्यमंत्री के पास कैंप खोलने की लगातार मांग आ रही है। सबको मालूम है, जैसे ही कैंप खुलेगा, बिजली आ जाएगी, विकास के और काम होने लगेंगे। इस योजना में 29 तरह के विकास कार्य होते हैं।

■ नक्सली हमलों में जिन लोगों ने अपना परिवार खोया है, क्या उनकी चिंता भी आपकी सरकार कर रही है?

■ जो भी पीड़ित हैं, उनके बारे में सरकार सोच रही है और इस पर भी काम हो रहा है। एक एनजीओ भी वहां पर काम कर रहा है। जो लोग पीड़ित हैं, उनका पूरा डाटा भी एनजीओ बना रहा है। लोग वहां जाकर पंजीयन करा रहे हैं। सरकार की तरफ से भी काम हो रहा है।

■ जिनको बस्तर भेजा जाता है, उनके बारे में यह धारणा है कि उन अधिकारियों को नाराजगी के कारण भेजा जाता है, अब क्या स्थिति है?

बस्तर के लिए बहुत-सी योजनाएं हैं, अब उनको वहां भेजा जा रहा है, जो योग्य हैं और उन योजनाओं के लायक हैं। अधिकारियों से बात करके उनको भेजा जा रहा है।

■ बस्तर में दूसरी पार्टी के विधायक सहयोग कर रहे हैं या परेशान कर रहे हैं?

■  उनको बस्तर का दर्द पता है, इसलिए मैं सोचता हूं, वो सब साथ में हैं। जब विधानसभा में नियद नेल्लानार योजना की घोषणा मुख्यमंत्री ने की तो कवासी लखमा ने सबसे पहले इसे सराहा। बस्तर और रायपुर में एक-एक कार्यक्रम हुआ था। बस्तर के कार्यक्रम के दौरान केदार कश्यप और रायपुर के कार्यक्रम में महेश गागड़ा रो पड़े थे। कहने का मतलब यह है कि बस्तर के जो भी नेता हैं, उनको नक्सलवाद के दर्द का अहसास है, फिर चाहे वह भाजपा का नेता हों या फिर विपक्ष के नेता।

■  विजय शर्मा अपनी सुरक्षा को लेकर कितने चिंतित हैं, परिवार वाले कितने परेशान हैं?

■  परिवार वाले जरूर परेशान होते हैं, मुझे तो कुछ नहीं लगता है। मुझे अभी नहीं लगता कि कितनी चुनौती है, ये तो बाद में पता चलता है।

■  अमित शाह के तीन साल में नक्सलवाद समाप्त करने वाले बयान से कितना दबाव है?

■ जो समयसीमा की बात कही है अमित शाहजी ने, उससे दबाव नहीं, बल्कि मुझमें बहुत उत्साह है। सरकार को भी उत्साह है। यह बात समझ आई है कि इतने दिनों में यह करना है। ऐसा होगा इसका भरोसा है। हम लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे और बस्तर का दुख समाप्त हो जाएगा।

मुख्यमंत्री साय के नेतृत्व में बड़ी ताकत

■ मन बदलने का कारण क्या है, क्या एक आदिवासी मुख्यमंत्री बनने के कारण ऐसा हो रहा है?

■  विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बड़ी ताकत है। उनकी सादगी में बड़ा दम है। यह प्रभाव तो है। नक्सलियों ने जो आंडबर फैलाया, वह जाकर आज ध्वस्त दिख रहा है। बंदूक की नली से क्या अस्पताल निकालेंगे, क्या स्कूल निकालेंगे? कोई तो मुझे बता दे, आप चाहते हैं, एक 25 साल का बस्तर का लड़का रायपुर लाया जाता है, जो यहां पर वह कहता है, मैंने टीवी पहली बार देखा है। यह सोचने वाली बात है कि बस्तर को ये किस दिशा में ले गए हैं। गांव के विकास के रास्ते पर आईईडी बिछा दें, क्या ऐसा होना चाहिए। आईईडी किसी को नहीं पहचानता।
 

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