सोमा शर्मा- राजिम। छत्तीसगढ़ का प्रयागराज राजिम अपनी प्राचीन इतिहास और परंपरा के लिए जाना जाता है। पंचकोशी धाम यात्रा का अंतिम पड़ाव कोपेश्वर नाथ महादेव है राजिम के कुलेश्वर से प्रारंभ होने वाला पंचकोशी की यात्रा राजिम से 16 किमी दूर कोपरा नगर पंचायत के कोपेश्वर महादेव में जाकर पूरी होती है। चारों ओर दलदली तालाबों से घिरे, शमशान के करीब होने के कारण अवघड़ दानी के रूप में पूजे जाने वाले कोपेश्वर महादेव काशी विश्वनाथ का अहसास कराते हैं। यहां के दर्शन के पश्चात भक्त सभी तरह से मुक्त हो जाते हैं।
बारह ज्योतिर्लिंग जितनी महत्ता
विश्व में बारह ज्योतिर्लिंग की जितनी महत्ता है वही महत्ता छत्तीसगढ़ में पंचकोशी धाम यात्रा की है। पंचकोशी के अंतर्गत आने वाले सभी शिवलिंग स्वयंभू है। सभी का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पंचकोशी की यह यात्रा राजिम के कुलेश्वर महादेव से प्रारंभ होकर पटेश्वर, चम्पेश्वर, बम्हनेश्वर, फणीकेश्वर और अंत में कोपेश्वर महादेव के साथ पूरी होती है। जो कुलेश्वर महादेव के साथ उत्पति हुई थी।
राजिम की पंचकोशी यात्रा का अंतिम पड़ाव कोपेश्वर नाथ महादेव है, काशी विश्वनाथ का अहसास कराते हैं। यहां के दर्शन के पश्चात भक्त सभी तरह से मुक्त हो जाते हैं. #Chhattisgarh @GariyabandDist pic.twitter.com/gTIcvtb6U4
— Haribhoomi (@Haribhoomi95271) August 19, 2024
माता सीता ने की थी कुलेश्वर महादेव की पूजा
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जब माता सीता कुलेश्वर महादेव की पूजा अर्चना कर रही थी उसी समय शाम को ये सभी पंचकोशी स्वयंभू महादेव अलग अलग जगहों पर अवतरित हुए। कोपेश्वर महादेव भी तालाब के अंदर ही स्वयंभू हुए हैं। भक्तों की जब नजर महादेव पर पड़ी तो तालाब को ही चारों से बांधकर बीच में ही मंदिर बनाकर पूजा अर्चना प्रारंभ कर दिए।
अवघड़ दानी हैं कोपेश्वर महादेव
पंचकोशी में आने वाले सभी शिवलिंग की अपनी महत्ता है। पंचकोशी यात्रा का यह अंतिम पड़ाव है। कोपेश्वर महादेव की पूजा यहां अवघड़ दानी के रूप में होती है। मंदिर के बाएं तरफ गांव का शमशाम घाट स्थित है ओर मंदिर के चारों ओर दलदली तालाब है। कोपेश्वर महादेव का यह दृश्य काशी विश्वनाथ के दृश्य से कम नहीं है। यही कारण है की पंचकोशी की पूरी यात्रा करने के बाद अंतिम में भक्त यहां पहुंचकर अपने सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं। भगवान भी प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामना यहा के दर्शन के पश्चात पूरी कर देते हैं।
तालाबों की नगरी
चारों ओर तालाब से घिरा हुआ कोपेश्वर नाथ का यह मंदिर भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है। पहले इस गांव में लगभग 120 तालाब हुआ करते थे जिसके कारण तालाबों की नगरी भी कहा जाता था। जिस प्रकार चंपारण के चम्पेश्वर महादेव घने जंगल में अवतरित हुए उसी तरह कोपरा के ये कोपेश्वर महादेव तालाबों के बीच में स्वयंभू हुए हैं। अभी भी हमने देखा की मंदिर से लगे हुए चारों तरफ लगभग 7 से 8 तालाब हैं।