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होलिका दहन की रात जब लोग होली की मस्ती में झूम रहे होते हैं। दूसरी ओर उसी रात को मोहदा के मोहदेश्वर धाम में शिवलिंग का दर्शन करने भक्तों का तांता लगा रहता है। 

प्रेमलाल पाल/धरसींवा- छत्तीसगढ़ के धरसींवा क्षेत्र के मोहदा गांव में हर साल होली की रात को भव्य मेला लगता है। महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि के रूप में विख्यात मोहदेश्वर धाम मोहदा में छत्तीसगढ़ का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है, जहां हर साल होलिका दहन की रात को मेलें का आयोजन होता है। यहां विराजित स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन, पूजन करने के लिए हर साल भक्तों की भीड़ उमड़ती है। होलिका दहन की रात जब लोग होली की मस्ती में झूम रहे होते हैं। दूसरी ओर उसी रात को मोहदा के मोहदेश्वर धाम में शिवलिंग का दर्शन करने भक्तों का तांता लगा रहता है। 

प्राचीन शिव मंदिर पूरे छत्तीसगढ़ मे विख्यात है

बता दें, जब होलिका दहन की रात्रि को शिव मंदिर का पट खोला जाता है तो शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ती है। यहां आदिकाल से ही होलिका दहन की रात भव्य शिव मेला का आयोजन होता आ रहा है। रायपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर रायपुर-बिलासपुर मुख्य मार्ग में तरपोंगी से लगा हुआ मोहदा का यह प्राचीन शिव मंदिर पूरे छत्तीसगढ़ मे विख्यात है। जहां छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से शिव भक्त बड़ी संख्या मे पहुंचते हैं और यहां होलिका दहन करने के बाद यहां के रानीसागर तालाब में स्नान कर शिवलिंग की पूजा-अर्चना कर दुग्धाभिषेक, रूद्राभिषेक और जलाभिषेक करते है। 

स्थानीय लोगों ने बताया महत्व 

ग्रामीणों की मानें तो यह शिवलिंग करीब 200 साल पहले का है। यहां हर तरह मनोकामना पूरी होती है। इसके लिए भक्त विभिन्न जिलों और प्रांतों से आते हैं और शिवलिंग का महाभिषेक करतें है। यह छत्तीसगढ़ का इकलौता शिवमंदिर है, जहां होलिका दहन की रात को मेला लगता है। इसलिए इनकी प्रसिद्धि आज पूरे प्रदेश भर में है। हर साल लोग यहां आने के लिए होली का इंतजार करते हैं। इस साल भी 25 मार्च को होली की रात मेला लगेगा। जहां भारी संख्या में शिवभक्त पहुंचेंगे।

तीन बार स्वरूप बदलता है शिवलिंग

ऐसा कहा जाता है कि, यहां के भू-फोड़ शिवलिंग साल में तीन बार अपना रूप बदलता है। हर चार माह में काले, भूरे और खुरदुरे स्वरूप में अपना रूप बदलता है। जो अपने आप में अनूठा है। जानकारों की मानें तो होलिका दहन की रात शिवलिंग का दर्शन करना काफी फलदायी माना जाता है। शायद इसी कारण छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों और छत्तीसगढ़ के बाहर के राज्यों से भी हर साल बड़ी संख्या में श्रद्वालु यहां शिवलिंग का अभिषेक, पूजन और दर्शन करने सपरिवार पहुंचते है। अन्य जिलों से भी बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचकर पूजा-अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना करते हुए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

आदिकाल से लग रहा मेला

यहां शिव मेला आदिकाल से ही हर साल होलिका दहन की रात को लगते आ रहा है। इसलिए ग्रामीण भाव के साथ यहां आकर अपने मन की बात कहते हैं और आर्शीवाद लेते हैं। स्थानीय लोगों की माने तो मेला लगना यहां कब से शुरू हुआ है इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। पूर्वजों की जमाने से यहां मेला लगते आ रहा है, इसलिए यह परंपरा आज भी जीवित है।

महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि

ऐसी मान्यता है कि, महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि होने के कारण यह स्थल आज भी काफी पवित्र माना जाता है। महर्षि जी के तपोभूमि होने के कारण मोहदेश्वर महादेव का दर्शन काफी चमत्कारी और फलदायी माना जाता है। सावन, महाशिवरात्रि और चैत्र क्वांर के महीनें मे भी यहां आस्था का जनसैलाब उमड़ता है। 

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