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राजनांदगांव की सिद्ध शक्तिपीठ मां पाताल भैरवी मंदिर तीन लोकों में निर्मित है। यहां पाताल लोक में मां पाताल भैरवी के साथ पातालेश्वर महादेव, भू-लोक में मां राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी के साथ दसमहाविद्या विराजमान है। 

राजनांदगांव। सावन माह में शिवालयों में श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया है। राजनांदगांव शहर के मां पाताल भैरवी मंदिर में श्रद्धालुओं को सावन मास में 12 ज्योतिर्लिंगों और पातालेश्वर एवं पारदेश्वर महादेव की एक साथ पूजा का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। यहां बड़ी संख्या में पहुंचकर श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ की आराधना में जुटे हुए हैं। राजनांदगांव की सिद्ध शक्तिपीठ मां पाताल भैरवी मंदिर तीन लोकों में निर्मित है। यहां पाताल लोक में मां पाताल भैरवी के साथ पातालेश्वर महादेव, भू-लोक में मां राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी के साथ दसमहाविद्या विराजमान है। वहीं आकाश लोक में भगवान भोलेनाथ के साथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई है।

सावन माह में इस द्वादश ज्योतिर्लिंगों की एक साथ पूजा करने का अवसर मिलने से यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है। सावन माह की शुरुआत होते ही सुबह से ही बारिश के बीच भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां पाताल भैरवी मंदिर पहुंचकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर विधि-विधान से जल, दूध, दही, शहद से अभिषेक कर बेल पत्री चढ़ाकर द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा-अर्चना की। इस दौरान श्रद्धालुओं ने कहा कि सावन माह में उन्हें एक जगह ही सभी ज्योतिर्लिंगों की पूजा करने का अवसर मिल रहा है। जिससे काफी सुखद अनुभूति हो रही है।

पड़ोसी राज्यों से भी आते हैं श्रद्धालु 

सावन माह में मां पाताल भैरवी मंदिर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए राजनांदगांव के अलावा छत्तीसगढ़ प्रदेश के कई जिलों और महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मंदिर समिति के सचिव गणेश प्रसाद शर्मा ने कहा कि यहां दूर-दूर से श्रद्धालु सावन माह में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए आते हैं। उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं को यहां पातालेश्वर महादेव और पारदेश्वर महादेव के दर्शन का सौभाग्य भी मिलता है।

 पारा शिवलिंग का विशेष महत्त्व 

मां पाताल भैरवी मंदिर में पारे से निर्मित पारदेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना की गई है। संभवतः यह प्रदेश का एकमात्र शिवलिंग है, जो 151 किलो वजनी है। पारद से निर्मित शिवलिंग धार्मिक मान्यता में काफी महत्व रखता है। इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही क्लेश दूर होता है, संकटों का निवारण होता है और घर में सुख, शांति, समृद्धि के साथ ही उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पारद के शिवलिंग से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों के एक साथ दर्शन

सावन माह के महत्व को बताते मां पाताल भैरवी मंदिर के पुजारी महामंडलेश्वर गोविंद महाराज ने कहा कि सावन माह में माता पार्वती ने भोले बाबा के लिए कठोर तपस्या की और उनकी भक्ति में लीन हो गई। माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाकर दूध, दही, शहद, घी से अभिषेक किया और उनकी मनोकामना पूर्ण हो गई। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति किसी कारणवश 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए बाहर नहीं जा सकता है, उसके दर्शन यहां पूर्ण हो जाते हैं।

महानदी में स्नान करने के बाद भगवान ने शिवलिंग

धमतरी। जिले के रुद्रेश्वर महादेव मंदिर रूद्री में स्थापित शिवलिंग हजारों साल पुराना है। यह प्राचीनतम धरोहर अब धाम बन गया है। शिवलिंग का दर्शन करने और मनोकामना की प्राप्ति के लिए दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं। महानदी चित्रोत्पला के किनारे होने के कारण इस मंदिर का अलग ही महत्व है। निजी ट्रस्ट और पुजारी के मुताबिक त्रेतायुग में भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण वनवास काल में रुद्रेश्वर पहुंचे थे। रात्रि विश्राम के पश्चात महानदी में स्नान किए और महानदी किनारे शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की। इसके बाद भगवान उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान कर राजिम पहुंचे। शास्त्रों के मुताबिक चित्रकूट से निकलकर भगवान राम दण्डकारण्य वन पहुंचे। उस समय उड़ीसा - छग की सीमा दण्डकारण्य कहलाती थी। यहां काफी घनघोर जंगल था। महानदी किनारे भगवान राम ने वनवास काल का अधिकतर समय बिताए थे।

वर्तमान में महादेव का मंदिर काफी पुराना है। स्थापत्य की दृष्टि से देखा जाए तो यह मुगलकालीन मंदिर है, जिसकी देखरेख धमतरी के जाधव परिवार द्वारा की जा रही है। मंदिर की देखरेख करने वाले विनोद जाधव, आलोक जाधव ने बताया कि मंदिर लगभग 500 साल पुराना है। इससे पहले मंदिर छोटा था, जिसका जाधव परिवार ने नवनिर्माण कराया और देखरेख की जिम्मेदारी ली। मंदिर प्रांगण में श्रीराम की चरण पादुका रखी गई है, जो राम वनगमन पथ की निशानी है। साथ ही भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान की प्रतिमा स्थापित है। यहां वर्षों से धुनी जल रही है जो आज तक नहीं बुझी है। मंदिर के साइड में मां दुर्गा की प्रतिमा है।

मनोकामना होती है पूरी

मंदिर के समीप राधाकृष्ण और बूढ़ादेव का मंदिर स्थापित है। पं. संतोष तिवारी ने बताया कि माघ पूर्णिमा पर यहां हर साल मेला लगता है। गुरु पूर्णिमा से लेकर कृष्ण जन्माष्टमी तक 41 दिनों तक अखंड रामायण पाठ का आयोजन कई वर्षों  से हो रहा है। श्रावण माह में हर सोमवार को हजारों कांवरिये शिवलिंग में जल चढ़ाने आते हैं तथा पवित्र महानदी की धारा से जल लेकर विभिन्न मंदिरों में जल चढ़ाते हैं। यहां पहुंचने वाले भक्तों की मनोकामना भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं।

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