Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक हैरान करने वाला फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने रेप के मामले में आरोपी युवक को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक सहमति के द्वारा बनाए गए शारीरिक संबंध को विवाह का आधार नहीं माना जा सकता है। दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि किसी शख्स को रेप का दोषी मानने के लिए पहले यह साबित करना होगा कि शुरुआत से ही संबंध झूठे वादे पर आधारित था और गलत इरादे से ही किया गया था।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल यह पूरा मामला एक युवक से जुड़ा हुआ है, जिसे 13 सितंबर 2023 में निचली अदालत ने अपहरण और रेप की धारा 366 के तहत 10 साल की सजा सुनाई थी। बता दें कि घटना के समय युवक की उम्र 18 साल 6 महीने थी। उसने निचली अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर फैसला सामने आया है। बता दें कि नवंबर 2019 में युवक पर रेप के मामले में एफआईआर दर्ज किया गया था। जब एक पिता ने अपनी 20 वर्षीय बेटी के लापता होने की शिकायत दर्ज करवाई थी। पुलिस ने जांच में युवक और युवती को हरियाणा के धारूहेड़ा में पाया, जिसके बाद युवक को गिरफ्तार कर लिया गया।

इस मामले पर युवक के वकील प्रदीप के आर्य ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि प्रेम और सहमति से दोनों के बीच संबंध बना है, जिसमें कोई अपराध नहीं है। उन्होंने कहा कि निचली अदालत ने इस बात को नजरअंदाज किया कि युवती अपनी मर्जी से युवक के साथ गई थी। अब इस पूरे मामले को स्पष्ट करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह के झूठे वादे के आधार पर किसी को दोषी साबित करने के लिए इस बात का ठोस सबूत होना चाहिए कि शारीरिक संबंध झूठे वादे करके बनाए गए हैं।

दिल्ली पुलिस ने दी दलील

इस पूरे मामले को लेकर दिल्ली पुलिस ने कहा कि पहले निचली अदालत ने सभी सबूतों को देखते हुए युवक को दोषी पाया था, जिसके बाद सजा सुनाई गई थी। लेकिन अब हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि युवक और युवती दोनों ही वयस्क थे और उन्होंने अपनी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे। दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे और शादी का वादा किया था। लेकिन किसी वजह से उनकी शादी नहीं हो पाई। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि झूठे वादे के आधार पर ही संबंध बनाए गए थे।

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