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New Delhi Assembly: नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार कांटे की टक्कर हो सकती है। अरविंद केजरीवाल के सामने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को बेटे हैं। आइए जानते हैं कि इस बार यहां के चुनावी समीकरण क्या हैं?

New Delhi Assembly: दिल्ली विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है और दिल्ली की सभी 70 सीटों पर पांच फरवरी को मतदान होना तय किया गया है। ऐसे में सभी सियासी दल दिल्ली में सत्ता काबिज करने के लिए पूरी कोशिश में हैं। इन विधानसभा चुनाव में हमेशा की तरह नई दिल्ली विधानसभा सीट पर दिल्ली ही नहीं पूरे देश की नजर होने वाली है, इसकी वजह ये है कि इस विधानसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री का पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों समेत 20 से ज्यादा नेता मैदान में हैं। अरविंद केजरीवाल का मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित और पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह के बेटे प्रवेश वर्मा से होने वाला है। 

भाजपा ने पांच साल में बदले तीन मुख्यमंत्री

बता दें कि दिल्ली में अब तक 7 विधानसभा चुनाव हुए हैं। दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव साल 1993 में हुआ। नई दिल्ली विधानसभा सीट से एक बार भाजपा का प्रत्याशी, तीन बार कांग्रेस और तीन बार आम आदमी का प्रत्याशी चुनाव जीता है। सात में से छह चुनावों में जीत हासिल करने वाला उम्मीदवार ही मुख्यमंत्री भी बना है। साल 1993 में पहली बार भाजपा के कुंवर सेन चुनावी मैदान में उतरे और उन्होंने जीत हासिल की लेकिन वो मुख्यमंत्री नहीं बने। 

मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुष्मा स्वराज बनीं मुख्यमंत्री

1993 में दिल्ली में मदनलाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया गया, जो मोती नगर विधानसभा से चुनाव लड़े थे। वे 2 दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996 तक (लगभग 2 साल 3 महीने) मुख्यमंत्री रहे और उनके बाद भाजपा ने शालीमार बाग से चुनाव लड़ने वाले साहिब सिंह वर्मा को 26 फरवरी 1996 से 12 अक्टूबर 1998 तक (लगभग 2 साल 7 महीने) मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद 52 दिनों के लिए (12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 2003) सुष्मा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया। 

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तीन साल शीला दीक्षित और तीन साल अरविंद केजरीवाल ने संभाली गद्दी

इसके बाद साल 1998 में चुनाव हुए और नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस  प्रत्याशी शीला दीक्षित ने चुनाव लड़ा और वे मुख्यमंत्री बने। 1998 के बाद 2003 और 2008 के चुनावों में भी कांग्रेस प्रत्याशी शीला दीक्षित ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। हालांकि साल 2013 में हुए अन्ना आंदोलन के बाद सियासत में आई आम आदमी पार्टी ने नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अपनी पकड़ बनाई। अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को चुनाव में शिकस्त देकर नई दिल्ली विधानसभा सीट पर जीत हासिल की। इसके बाद वे पिछले तीन चुनावों से इसी सीट से लड़ रहे हैं और जीत रहे हैं। साथ ही मुख्यमंत्री भी बने हैं। 

कितने मार्जिन से जीते केजरीवाल

साल 2020 में नई दिल्ली विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल के सामने कांग्रेस प्रत्याशी रोमेश सभरवाल और भाजपा प्रत्याशी सुनील यादव चुनावी मैदान में थे। इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल को 46758 वोट, सुनील यादव को 25061 वोट और रोमेश को मात्र 3220 वोट मिले थे। अरविंद केजरीवाल 21697 वोट के मार्जिन से जीते थे। वहीं साल 2015 में 31583 और साल 2013 में 25864 वोटोंस के मार्जिन से जीत हासिल की थी। इस तरह साल 2013 के बाद अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली से सबका सफाया कर दिया। 

नई दिल्ली विधानसभा के लोगों के मुद्दे

नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र दिल्ली के सबसे व्यस्त इलाकों में गिना जाता है। इस विधानसभा में राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही कुछ स्थानीय मुद्दे भी हैं। यहां कनॉट प्लेस और लुटियंस जोन है जहां पर पार्किंग सबसे बड़ी समस्या है। वहीं इस सीट पर सफाई और कचरा प्रबंधन भी एक बड़ी समस्या है। इसके अलावा यहां पर आम आदमी पार्टी को जिताने में सबसे अहम मुद्दा पीने का पानी, पानी की पर्याप्त आपूर्ति, बिजली की उपलब्धता और मुफ्त बिजली योजना योगदान रहा है। दिल्ली की वायु गुणवत्ता भी यहां के प्रमुख मुद्दों में एक है। 

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क्या हैं जातीय समीकरण

वहीं अगर इस सीट के जातीय समीकरण की बात की जाए, तो नई दिल्ली सीट पर ब्राह्मण समुदाय का प्रभावशाली वोट बैंक है, जो भाजपा और कांग्रेस का समर्थक रहा है लेकिन 2013 में अरविंद केजरीवाल के पक्ष में चली चुनावी हवा में ये समर्थक आम आदमी पार्टी की तरफ बह गए। इसके अलावा पंजाबी और खत्री समुदाय का भी वोट इस सीट पर है। वहीं सरकारी कर्मचारी और सेवा क्षेत्र में काम करने वाले दलित मतदाता भी यहां अच्छी संख्या में है।

अरविंद केजरीवाल के समर्थन में फैक्टर

अगर अरविंद केजरीवाल के पॉजिटिव फैक्टर पर नजर डालें, तो अरविंद केजरीवाल का पिछले चुनाव में 21 हजार से ज्यादा मार्जिन रहा, ऐसे में इस बार भी उन्हें जीत मिलने के आसार हैं। वोटों के लिहाज से बाकी विधानसभा सीटों के मुकाबले ये  विधानसभा छोटी है। उन्हें सीएम फेस का फायदा मिल सकता है और क्लस्टर वोटों का एकतरफा झुकाव भी अरविंद केजरीवाल के समर्थन में रहता है। 

अरविंद केजरीवाल के नेगेटिव फैक्टर

इस बार अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नकारात्मक फाक्टर भी सामने आए हैं। इसका विधानसभा चुनाव में मतदाताओं पर असर पड़ सकता है। केजरीवाल की छवि पर भ्रष्टाचार का दाग लगा और वो जेल गए, मतदाताओं पर इसका प्रबाव पड़ सकता है। इसके अलावा इस बार उनका सामना दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों से होगा, ये भी एक बड़ी बात है। पिछले चुनावों में जो मार्जिन केजरीवाल को मिला, इस बार अगर वो मार्जिन भाजपा और कांग्रेस में बंट जाता है, तो नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अरविंद केजरीवाल का पेंच फंस सकता है। 

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