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पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर डटे किसानों के लिए 30 दिन बाद दिल्ली के रास्ते खोल दिए गए। रामलीला मैदान में किसान महापंचायत हो रही है। जानिये किसानों के लिए दिल्ली के रास्ते कैसे हो गए आसान...

पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर करीब एक महीने से डटे किसान आखिरकार दिल्ली पहुंच गए। संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) के आह्वान पर दिल्ली के रामलीला मैदान पर किसानों की महापंचायत हो रही है। इस किसान महापंचायत का उद्देश्य एमएसपी जैसी मांगों पर ध्यान केंद्रित करने, किसान आंदोलन को तेज करने, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करवाने, किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आगे के कार्यों पर प्रस्ताव पास करवाना है। अब सवाल उठता है कि करीब एक महीने से दिल्ली पहुंचने की जद्दोजहद कर रहे किसानों के लिए राजधानी के रास्ते आसान कैसे हो गए। आइये जानने का प्रयास करते हैं कि इसके पीछे की रणनीति क्या है...

लोकसभा चुनाव प्रचार में न आए कोई भी दिक्कत

पंजाब, हरियाणा या फिर उत्तर प्रदेश हो, किसान संगठनों ने चेतावनी दी थी कि अगर दिल्ली नहीं जाने दिया गया तो हम चुनाव प्रचार के लिए आने वाले बीजेपी नेताओं के भी रास्ते रोक देंगे। लोकसभा चुनाव की घोषणा में अब केवल कुछ ही दिन बचे हैं, लिहाजा किसान नेताओं की चेतावनी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि दिल्ली से सटे तमाम राज्यों को यह स्पष्ट निर्देश दिए जा चुके हैं कि अधिक संख्या में प्रदर्शनकारी दिल्ली न पहुंचे। दिल्ली पुलिस ने भी जंतर मंतर पर किसान महापंचायत की अनुमति इस शर्त पर दी है कि 5000 से अधिक लोग एक स्थान पर इकट्ठा न हों। यही नहीं, किसान महापंचायत का समय भी सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक रखा गया है ताकि इसके बाद अपने घर वापसी कर लें।

बातचीत का सिलसिला न टूटे

केंद्र सरकार ने किसान नेताओं के साथ चार दौर की बातचीत की थी। केंद्र ने कई फसलों पर एमएसपी देने का भी आश्वासन दिया था। साथ ही, किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने समेत अन्य मांगों को भी स्वीकार कर लिया था, लेकिन एमएसपी पर कानूनी गारंटी के मुद्दे पर अड़चन आ गई थी। केंद्र ने हर बार यही दर्शाया है कि किसानों की मांगों को लेकर सरकार गंभीर है, लेकिन इसमें जल्दबाजी नहीं हो सकती है। युवा नेता शुभकरण सिंह की मौत के बाद किसान संगठन अड़ गए थे कि शंभू बैरिकेडिंग को तोड़कर दिल्ली पहुंच जाएंगे। हालांकि करीब तीन अल्टीमेटम देने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। यहां तक की विरोधी दलों ने भी ज्यादा समर्थन नहीं दिया। ऐसे में किसान नेताओं से बातचीत करके दिल्ली में महापंचायत को मंजूरी दे दी गई। ऐसा इसलिए हुआ ताकि किसानों के साथ सरकार की बातचीत का सिलसिला न टूटे।

Kisan Mahapanchayat
किसान महापंचायत के मंच पर मौजूद किसान नेता।
मोदी सरकार को तानाशाह का तमगा न मिले

जानकार बताते हैं कि विपक्ष लगातार मोदी सरकार को तानाशाही सरकार बता रहा है। ऐसे में किसानों को अगर रामलीला मैदान पर महापंचायत की अनुमति दी जाती है, तो यह साबित हो जाता है कि सरकार हमेशा से हर प्रकार का विरोध झेलने के लिए तैयार है, लेकिन कानून व्यवस्था में अड़चन नहीं आनी चाहिए। अभी तक की खबरों के मुताबिक रामलीला मैदान पर शांतिपूर्वक तरीके से किसानों की महापंचायत चल रही है। हालांकि किसी भी उपद्रव को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस भी पूरी तरह से मुस्तैद है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव तक खींचेगा आंदोलन

हरियाणा की बात करें तो लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। पिछले किसान आंदोलन में हरियाणा के किसान भी भारी संख्या में शामिल हुए थे। हालांकि इस बार हरियाणा के किसान इस आंदोलन से दूर हैं। यह अलग बात है कि एमएसपी पर कानूनी गारंटी हर किसान चाहता है, लेकिन इस मांग को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव नहीं बनाना चाहते हैं। इस वजह के चलते यह किसान आंदोलन विधानसभा चुनाव तक खींच सकता है। इसकी वजह विरोधी दलों के ट्विटर अकाउंट की खामोशी भी बयां कर रही है।

कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेंद्र हुड्डा, उनके बेटे सांसद दीपेंद्र हुड्डा, पंजाब के सीएम भगवंत मान ने इस किसान महापंचायत पर एक भी प्रतिक्रिया नहीं दी है। खासकर भगवंत मान की खामोशी पर सवाल उठ रहा है। वे केंद्र और किसान नेताओं की शुरुआती बैठक में मौजूद रहते थे, लेकिन इस किसान महापंचायत पर प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

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