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तीन साल पहले मारकंडा नदी में आई बाढ़ सात माह पहले बनाए पपलोथा घाट के पुल को अपने साथ बहाकर ले गई थी। जिससे मुलाना आने जाने में पांच किलोमीटर दूर से चक्कर काटकर आना जाना पड़ता है। बावजूद इसके अभी तक इसकी किसी ने सुध नहीं ली है। 

अंबाला। बीते वर्ष जुलाई में मारकंडा नदी में आई बाढ़ से पपलोथा घाट पर बहे पुल का अभी तक नर्मिाण नहीं हो पाया। सात महीने से ग्रामीण नदी के पानी से होकर गुजर रहे हैं। मुलाना से पपलोथा घाट के रास्ते से मारकंडा नदी में वन विभाग द्वारा बनाई सड़क भी बाढ़ में बह गई थी। मारकंडा नदी को मुलाना से जोड़ने वाली पुरानी सड़क भी कई जगहों से टूट गई थी। सड़क को तो कुछ महीने पहले विभागीय कर्मचारियों ने मिट्टी डालकर चलने लायक बना दिया, परंतु नदी के बीच मे वन विभाग द्वारा बनाई गई सड़क की कोई सुध नहीं ली गई ।

झाडूमाजरा मार्ग से आना पड़ रहा मुलाना 

तीन साल पहले बाढ़ में मारकंडा नदी में बनी सड़क का दूसरा छोर पूर्ण रूप से बह गया था । इसके बाद अब मारकंडा पार के गांव पपलौथा , नोहनी सहित कई गांवों के लोगों को मुलाना आने के लिए लंबा सफर तय कर झाडूमाजरा मुलाना मार्ग से आना पड़ रहा है। करीब 5 किलोमीटर का सफर अधिक तय करना पड़ रहा है। ग्रामीणों को इस मार्ग से आने में अधिक समय लगता है। वर्षों से मारकंडा नदी पार के ग्रामीणों की पपलोथा घाट से मारकंडा नदी में सड़क बनाने की मांग पर सरकार द्वारा नदी के बीच से लाखों रुपये की लागत से सड़क का निर्माण किया था।

पुल का कई गांवों को हुआ था फायदा

यह मार्ग बनने से पपलौथा सहित कई गांवों की मुलाना से दूरी कम हो गई थी लेकिन नदी में आई बाढ़ की चपेट में आने से मुलाना पपलौथा मार्ग का नदी के बीच का हिस्सा पानी मे बह गया था। करीब 7 महीने बीत जाने के बाद भी नदी के बीच बहे हुए हिस्से की और प्रशासन का ध्यान नहीं गया। ग्रामीण पुरषोत्तम, अरुण, गोलू, राम शरण का कहना है कि मारकंडा नदी में बने मुलाना पपलोथा मार्ग से लोगों को काफी सुविधा हुई थी। इस मार्ग को मारकंडा पार के कई गांव मुलाना कस्बा आने के लिए इस्तेमाल करते थे।

घाट की जमीन पर खेती करते हैं किसान

कई नदी पार के गांवों के किसान मुलाना घाट की और जमीन पर खेती करते हैं । इस लिए इस सड़क का उन्हें बहुत फायदा था। वह दिन या रात के समय अपने वाहनों को यहां से निकाल सकते थे। लेकिन बाढ़ में नदी के बीच की सड़क बहने से अब उन्हें यहां से अपना वाहन निकालने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। किसानों का कहना है कि कई बार वजन से लदा वाहन नदी में धंस जाता है। नदी से निकालना मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों की मांग है कि विभाग द्वारा इसे फिर से पहले की तरह बनाया जाए। ताकि लोगों को सुविधा हो सके।

मारकंडा में अभी धीमी गति से बह रहा पानी

मारकंडा नदी में इस समय भी हल्की गति से पानी बह रहा है। लेकिन बारिश के दिनों में नदी का बहाव बहुत तेज होता है। ऐसे में ग्रामीणों के लिए कई किलोमीटर का सफर तय कर मुलाना आना पड़ता है । अभी नदी में पानी कम होने के चलते बाइक सवार या पैदल जाने वाले ग्रामीण नदी के बीच से निकल जाते है। लेकिन यहां से पानी के बीच से निकलना उन के स्वास्थ्य के हिसाब से भी सही नहीं है। मारकंडा नदी में पीछे से कैमिकल युक्त पानी आता है। जिससे नदी से निकलने वाले लोगों के लिए चर्म रोग पैदा होने का अंदेशा बना रहता है। ग्रामीणों की मांग है कि सम्बंधित विभाग को फिर से यहां मार्ग का नर्मिाण करना चाहिए ताकि लोग रोजमर्रा के कामों के लिए इस मार्ग का इस्तेमाल कर सकें।

जाल डाल सड़क को बनाया गया था मजूबत 

मारकंडा नदी में आए पानी के तेज बहाव में सड़क को नुकसान न हो इस के लिए वन विभाग द्वारा नदी के बीच बनाई गई सड़क को सुरक्षा की दृष्टि से मजबूती से बनाया गया था। नदी के बीच बनी सड़क न बहे, इस लिए सड़क के दोनों और पत्थर लगा लोहे की तार का जाल बिछाया गया था दोनों और सीमेंट व कंक्रीट के क्यूब लगाए गए थे लेकिन जुलाई में मारकंडा नदी में आई बाढ़ में पत्थरों का जाल व सड़क भी बहा ले गई वहीं कंक्रीट के क्यूब भी बह गए।;

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