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हरियाणा में 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच केवल हार जीत ही नहीं, बल्कि एक दूसरे के रिकार्ड की बराबरी करने व रोकने की भी चुनौती रहेगी। दोनों पार्टियों को भीतरघात का अंदेशा है, क्योंकि दोनों पार्टियों के कुछ नेता अलग-अलग राहों पर चलते नजर आ रहे हैं।

Haryana: हरियाणा में 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच केवल हार जीत ही नहीं, बल्कि एक दूसरे के रिकार्ड की बराबरी करने व रोकने की भी चुनौती रहेगी। एक नवंबर 1966 को संयुक्त पंजाब से अलग हुए हरियाणा में कांग्रेस ने अब तक तीन बार प्रदेश की सभी 10 लोकसभा सीटों पर अपनी जीत का परचम लहराया है। तीन बार शून्य पर रहने का रिकार्ड भी अपने नाम दर्ज किया है। कारगिल युद्ध के बाद पहली बार इनेलो के साथ गठबंधन में प्रदेश की सभी 10 लोकसभा सीटें जीत चुकी भाजपा 2024 में 2019 का रिकार्ड दोहरा पाई तो प्रदेश की सभी 10 लोकसभा सीट जीतने के मामले में कांग्रेस के बराबर आकर खड़ी हो जाएगी।

भाजपा नेताओं के बीच मतभेद व विपक्षी पार्टियों की एकजुटता से जीत की राह नहीं आसान

12 मार्च को हुए सत्ता परिवर्तन के बाद पार्टी के बड़े नेताओं में बढ़े आपसी मतभेदों व विपक्षी पार्टियों की एकजुटता से भाजपा के लिए 2019 के रिकार्ड को दोहरा पाना इतना आसान नहीं होगा। एमरजेंसी लगने के बाद 1977 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई थी। इसके बाद 1999 में कारगिल युद्ध के बाद हुए चुनाव में भाजपा इनेलो गठबंधन ने प्रदेश की सभी सीटों पर कांग्रेस को धूल चटाई थी। 2024 के चुनाव में भाजपा के सामने हरियाणा में तीन बार सभी 10 लोकसभा सीट जीतने तो विपक्षी गठबंधन के रथ पर सवार कांग्रेस के सामने भाजपा के चुनावी रथ को अपनी बराबरी पर पहुंचने से रोकने की चुनौती रहेगी।

दोनों दलों में भीतरघात का खतरा

2024 के चुनाव में भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों में भीतरघात का खतरा बना हुआ है। 2005 में कांग्रेस को मिले बहुमत के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रदेश की सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद कांग्रेस खेमों में बंट गई तथा 2009 के बाद नेताओं के बीच दूरी की खाई बढ़ती चली गई। हुड्डा के लगातार बढ़ते प्रभाव से भजनलाल के बाद चौ. बीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह, डॉ. अरविंद शर्मा व अशोक तंवर जैसे कई नेता पार्टी छोड़ गए। जबकि हाईकमान तक सीधी पहुंच से कुमारी सैलजा, किरण चौधरी व रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेता पार्टी में रहकर ही वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। उधर, 12 मार्च को मनोहर लाल की जगह नायब सैनी को प्रदेश की सत्ता सौंपने से भाजपा की स्थिति भी सहज नहीं दिख रही।

10 सीटें जीकर फिर 4 पर हारी कांग्रेस

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत का परचम लहाराया। चुनाव के बाद सांसदों की मौत से सिरसा व फरीदाबाद की सीट खाली हो गई। रोहतक से हरद्वारी लाल व भिवानी से बंशीलाल ने त्यागपत्र दे दिया। सीट खाली होने के बाद उपचुनाव में कांग्रेस चारों सीटों पर चुनाव हार गई। जिससे आम चुनाव में 10 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के पास उपचुनाव के बाद केवल छह सीटें ही बची।

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