Punjab-Haryana High Court Decision: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए एक दंपती की सहमति से तलाक की मांग को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सोनीपत फैमिली कोर्ट के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने दंपती को विवाह के कम से कम एक साल बाद तलाक के आवेदन करने के लिए कहा गया था। इस मामले को लेकर हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के आदेश दोबारा विवाह करने या जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होना माना जाएगा।
फैमिली कोर्ट ने कही थी ये बात
वहीं, याचिका दाखिल करते हुए दंपती ने बताया था कि इस विवाह में तीन दिन साथ रहने के बाद उन्हें यह रिश्ता ठीक नहीं लगा और उन्होंने अलग होने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने सहमति से तलाक के लिए सोनीपत फैमिली कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
उनके इस याचिका को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 14 के तहत विवाह के एक साल बाद ही तलाक के लिए लिए याचिका दाखिल की जा सकती है। याचिकाकर्ता युवा और शिक्षित व्यक्ति हैं और उनके साथ आने और सुलह की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। फैमिली कोर्ट ने पुछा या कि दंपती के बीच कोई गंभीर मुद्दा है जिसने उन्हें तलाक जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर किया हो।
धारा 14 में क्या कहा गया
बता दें कि विवाह अधिनियम की धारा 14 में कहा गया है कि न्यायालय को अधिकार है कि वह किसी भी दंपत्ति को विवाह विच्छेद के लिए याचिका पर विचार करने से रोकती है, जब तक कि याचिका प्रस्तुत करने की डेट तक उनके विवाह को तीन साल न हो गए हो। धारा के प्रावधान में न्यायालय को उच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन, तीन वर्ष बीत जाने से पहले याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति देने की शक्ति है, इस आधार पर कि मामला याचिकाकर्ता के लिए असाधारण कठिनाई या प्रतिवादी की ओर से असाधारण दुराचार का है।
हाईकोर्ट ने ये कह कर रद्द किया फैसला
फैमिली कोर्ट के इस फैसले को दंपत्ति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए चुनौती दी थी। इसके बाद याचिका पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब विवाह से कोई संतान नहीं हो, दोनों युवा हो और आगे उनका भविष्य अच्छा हो तो अदालत को तलाक के लिए एक वर्ष की अनिवार्य शर्त नहीं रखनी चाहिए। इसके साथ ही दोबारा विवाह करने की उनकी स्वतंत्रता के अधिकार में भी कोर्ट को बाधा नहीं डालनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट के सामने कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया था, जिससे यह साबित होता हो कि आपसी समझौते धोखाधड़ी या दबाव में आकर दंपत्ति ने यह फैसला लिया है। इन परिस्थितियों में फैमिली कोर्ट का तलाक को नामंजूर करना दोनों पक्षों के जीवन साथी चुनने के अधिकार पर अनावश्यक प्रतिबंध है।