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नाटक दलदली भूमि में पर स्थित एक साधारण झोपड़ी में घटित माकुरी और उनकी पत्नी अलु की कहानी है। दोनों के समाज में आस्था के अनुसार, जुड़वां जन्में बच्चों का सम्मान किया जाता है।

भोपाल। रिफ़्लेक्शन नाट़य महोत्सव में शुक्रवार की शाम रंग-माध्यम नाट्य संस्था की प्रस्तुति ‘दलदल के वाशिंदे’ का मंचन दिनेश नायर के निर्देशन में किया गया। वोले सोयिंका द्वारा लिखित इस नाटक में कहानियों को जबरदस्त तरीके से सजाए गए हैं, वे पूरे नाटक में पारिवारिक बंधन की झलक देते हैं। इस नाटक का लक्ष्य नाटक में चित्रित, संकेतिक और अंतर्निहित पारिवारिक संबंधों के उदाहरणों की खोज करना है।

दलदल के वशिंदे की कहानी 
नाटक दलदली भूमि में पर स्थित एक साधारण झोपड़ी में घटित माकुरी और उनकी पत्नी अलु की कहानी है। दोनों के समाज में आस्था के अनुसार, जुड़वां जन्में बच्चों का सम्मान किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि एक जुड़वां मर जाता है, तो दूसरा भी जल्द ही मर सकता है। दंपत्ति का बेटा अवुचिके दस साल पहले अपना गांव छोड़कर शहर में रहने आया था, इस दौरान उसने खुद को समृद्ध बनाया, लेकिन कभी भी अपने माता-पिता से बात नहीं की। अलु तब कहती है कि आवुचिक मर चुका है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह शारीरिक रूप से मर चुका है बल्कि, उसका मतलब यह है कि आवुचिक, खुद को अपनी पारिवारिक और सांस्कृतिक जड़ों से अलग करके, आध्यात्मिक रूप से मर चुका है। 

संतान संबंधी कर्तव्यों का सम्मान करता इग्वेजु
अवुचिक का जुड़वां भाई इग्वेजु आठ महीने पहले शहर गया था, लेकिन वह अपने संतान संबंधी कर्तव्यों का सम्मान करता है, यहां तक कि उसने अपने वादे के मुताबिक अपने पिताजी को घूमने वाली कुर्सी भी भेजी है। इग्वेजू फिर से गांव में रहने के लिए लौट आया है और तुरंत अपने खेतों को देखने के लिए निकल जाता है। तभी दरवाजे पर दस्तक होती है और दरवाजा खोलकर वे एक लंबे, सफेद कपड़े पहने भिखारी को देखते हैं। वह मकुरी से दलदल को फिर से उपजाऊ खेत में बदलने के लिए जलमग्न धरती का एक टुकड़ा मांगता है।

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