भोपाल। तीन साल पहले भूख न लगना, उल्टी और कमजोरी जैसे लक्षण 32 साल के युवक में नजर आए। लगातार बिगड़ती सेहत के चलते मरीज को रीवा से एम्स भोपाल लाया गया। यहां जांच में गुर्दे की बीमारी की पुष्टि हुई। इसके बाद दो साल तक मरीज की दवा और अन्य ट्रीटमेंट कराते रहे। बीते साल मरीज की स्थिति अचानक बिगड़ गई। उनका क्रिएटिनिन 9 के करीब पहुंच गया था। जो सामान्य से नौ गुना अधिक है। ऐसे में किडनी प्रत्यारोपण ही अंतिम विकल्प था। इसी दौरान एम्स को किडनी ट्रांसप्लांट के लिए मंजूरी मिली। जिसके बाद डॉक्टरों ने बिना देरी किए पहला सफल किडनी ट्रांसप्लांट किया। मरीज को उनके ही पिता ने अपनी किडनी देकर नया जीवन दिया है।
मरीज पर किसी भी तरह का आर्थिक बोझ नहीं पड़ा
किडनी प्रत्यारोपण के लिए मरीज के हार्ट से लेकर अन्य अंगों की जांच की गई। सभी जांच में रिपोर्ट सही आई। इसके बाद उनके परिवार से संभावित दाताओं की जांच की गई। इस दौरान उनके पिता का रक्त समूह और ऊतक मरीज के अनुकूल पाया गया। पिता व बेटे की सहमति के बाद ट्रांसप्लांट की तैयारी शुरू की गई। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 5 से 6 माह का समय लगा। यह सर्जरी पूरी तरह से आयुष्मान योजना के तहत की गई है। जिससे मरीज पर किसी भी तरह का आर्थिक बोझ नहीं पड़ा।
केक काटकर बांटी खुशियां
एम्स में पहली किडनी प्रत्यारोपण प्रक्रिया 22 जनवरी को की गई। इसके बाद मरीज को 31 जनवरी तक एंटी रिजेक्शन दवा दी गई। जिससे शरीर नई किडनी को अस्वीकार न करें। मरीज की बेहतर रिकवरी को देखते हुए बुधवार को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है। एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने मरीज को फूल दिए और पूरे स्टाफ ने मिलकर मरीज के नए जीवन की शुरुआत केक कटवा कर की।
इन डॉक्टरों ने किया सफल इलाज
डॉ. महेंद्र अटलानी के मार्गदर्शन में डॉ. डी कौशल, डॉ.एम कुमार, डॉ. के मेहरा, डॉ. एस तेजपाल, डॉ. एस जैन और डॉ. सौरभ की ने यह जटिल सर्जरी की है।
अब पीडियाट्रिक किडनी ट्रांसप्लांट की तैयारी
एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि प्रत्यारोपण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लगातार काम किया जा रहा है। जल्द ही एक और बोनमैरो ट्रांसप्लांट होने जा रहा। एक बच्चा प्लास्टिक एनीमिया से ग्रसित है। जिसमें ब्लड नहीं बनता है। इसके अतिरिक्त इसी साल हमारा प्रयास है कि पीडियाट्रिक किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू करें। बता दें, पीडियाट्रिक किडनी ट्रांसप्लांट वर्तमान में देश के गिने चुने संस्थान में होता है। अब तक यह सुविधा मध्यभारत के किसी सरकारी अस्पताल में नहीं है।