भोपाल। मूर्धन्य नाटककार ब.व कारंत की स्मृति में आयोजित आदरांजलि समारोह का समापन बुधवार को हुआ। भारत भवन में आयोजित इस समारोह के अंतिम दिन नाटक सीमा पार का मंचन किया गया। भारतेन्दु हरीशचंद्र के जीवन पर आधारित इस नाटक का लेखन प्रसन्ना ने किया जिसका अनुवाद सिद्धलिंग पट्टणशेट्टी और निर्देशन प्रीती झा तिवारी ने किया। नाटक की प्रस्तुति भोपाल की द राइजिंग सोसायटी ऑफ आर्ट एंड कल्चर समूह के कलाकारों ने दी। नाटक अपने शीर्षक से ही अपना उद्देश्य स्पष्ट करता है लेकिन वो सीमाएं कौन सी हैं उनकी खोज इस नाटक में कलाकारों द्वारा अभिनय के माध्यम से की गई है।
मौत से होता है भारतेंदु का साक्षात्कार
नाटक में कलाकारों ने जीवन की बदलती स्थितियों, अनुभव और जीवन-मौत के संघर्ष को समझाया। उन्होंने उस पल को जीवंत बनाया जब लेखक भारतेंदु का साक्षात्कार मौत से होता है। भारतेंदु ने इन सीमाओं को किस तरह से देखा, उनका विद्रोही स्वभाव जीवन को लेकर कैसा रहा और अपने अंतिम दिनों में उन्होंने क्या महसूस किया और वह सीमाओं के पार चले गये। इन सभी को लगभग डेढ़ घंटे की प्रस्तुति के माध्यम से बड़ी सूक्ष्मता और कलात्मकता से मंच पर प्रदर्शित किया गया।
गंगा आरती से होती है नाटक की शुरुआत
नाटक भारतेंदु के अंतिम सात दिनों की जीवन यात्रा पर आधारित है, जिसमें नाटककार ने अपनी कल्पनाशीलता से मौत को एक रूप देकर भारतेंदु को लेने भेजा है। नाटक में पहला दृश्य गंगा आरती का था। वहां गंगा के तट पर नाटक मंडली नाट्य समारोह की रिहर्सल कर रहे होते हैं। अगले दृश्य में भारतेंदु और मृत्यु आपस में बात करते दिखाई दिए। इस दौरान भारतेंदु, मृत्यु से कहते हैं कि तुम मेरे साथ खेल खेलो अगर तुम जीत गईं तो मैं तुम्हारे साथ चलूंगा। अगले दृश्य में नाट्य मंडली के लोग आपस में बातचीत करते हैं कि भारतेंदु की तबीयत बहुत खराब है, अब किस तरह नाट्य उत्सव पूरा हो सकेगा। मंच पर साथियों से संवाद के बाद भारतेंदु नाट्य उत्सव की तैयारियों में हिस्सा लेते हैं और नाट्य मंडली का अभ्यास भी देखते हैं। अंतिम सीन में दिखाया गया कि भारतेंदु अपने और मौत के बीच लगाई गई बाजी हार जाते हैं। अंतत: उनकी मृत्यु हो जाती है।