भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास भोज वेटलैंड कैचमेंट क्षेत्र में 21 से 23 सितंबर तक पुनर्योजी कृषि और सतत वेटलैंड प्रबंधन पर केंद्रित एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों और स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना है, जिससे वेटलैंड संरक्षण को बढ़ावा मिल सके। यह आयोजन मध्य प्रदेश राज्य वेटलैंड प्राधिकरण, सेंटर फॉर एन्वायरनमेंट एजुकेशन (CEE) और सॉलिडारिडाड के सहयोग से किया गया है। तीन दिवसीय गतिविधि-आधारित कार्यक्रम में कृषि पद्धतियों और वेटलैंड संरक्षण पर केंद्रित वर्कशॉप, सेशन और व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया।

भोपाल के पास स्थापित की जा रही ट्राइकोडर्मा किसान लैब
बता दें कि सॉलिडारिडाड लंबे समय से मध्य भारत में पुनर्जनन कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और जैव विविधता का संरक्षण करना है। यह पहल उनके मौजूदा प्रयासों को और प्रोत्साहन दे रही है। इस पहल के तहत प्रतिष्ठा फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड में एक ट्राइकोडर्मा किसान प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है, जो सॉलिडारिडाड के समर्थन से चलने वाले भारतखंड किसान उत्पादक कंपनियों के संघ द्वारा समर्थित है। प्रतिष्ठा एफपीओ से लगभग 1500 किसान जुड़े हुए हैं, जो एफपीओ के साथ मिलकर इस पहल को शुरू करने के लिए एक मजबूत आधार है।

क्या है भोज वेटलैंड? 
भोज वेटलैंड एक मानव निर्मित जलाशय हैं, जिसमें राजधानी की 2 झीलें (अपर और लोअर लेक) शामिल हैं। 11वीं शताब्दी में कोलांस नदी पर मिट्टी का बांध बनाकर बड़ी झील का निर्माण किया गया, जबकि छोटी झील अपर लेक के ठीक नीचे करीब दो शताब्दी पहले बनाई गई थी। ऊपरी झील का कैचमेंट क्षेत्र 361 वर्ग किमी है, जबकि निचली झील का 9.6 वर्ग किमी है। ऊपरी झील के चारों ओर वन विहार राष्ट्रीय उद्यान, मानव बस्तियां और कृषि क्षेत्र हैं, जबकि निचली झील चारों ओर से मानव बस्तियों से घिरी हुई है।

पुनर्योजी खेती और वेटलैंड प्रबंधन के लिए बड़ा कदम: डॉ. सुरेश मोटवानी 
सॉलिडारिडाड के जनरल मैनेजर (GM) डॉ. सुरेश मोटवानी ने कहा- "वेटलैंड संरक्षण सामुदायिक प्रयासों पर निर्भर करता है। यह पहल पुनर्योजी खेती और वेटलैंड प्रबंधन को एक साथ लाकर यह दिखाती है कि कैसे किसानों, नागरिकों और संस्थानों के बीच सहयोग से स्थायी इकोसिस्टम बनाया जा सकता है। हम इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनकर गर्व महसूस कर रहे हैं, जो स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाते हुए मध्य प्रदेश की अमूल्य वेटलैंड धरोहर का संरक्षण करती है।"

डॉ. सुरेश मोटवानी

सुमन प्रसाद डीडीए ने कहा, "यह ट्राइकोडर्मा किसान संयंत्र भोज वेटलैंड के जलग्रहण क्षेत्र में पुनर्योजी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए एक सराहनीय पहल है।" वह किसानों को पारंपरिक कृषि से पुनर्योजी कृषि पद्धतियों पर स्विच करने के लिए प्रेरित करती हैं। आर्द्रभूमि विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का समर्थन करती है। विविध वनस्पतियाँ बड़ी संख्या में पक्षियों के लिए भोजन और आश्रय के रूप में आदर्श आवास प्रदान करती हैं। जैविक अंतःक्रिया और प्राकृतिक चयन प्रक्रिया के कारण वनस्पति और पक्षी जगत के बीच एक विशिष्ट संबंध विकसित हुआ है। ये सभी विशेषताएँ भोज वेटलैंड को मध्य भारत की एक अद्वितीय वेटलैंड के रूप में योग्य बनाती हैं। आर्द्रभूमि जैव विविधता से समृद्ध है, जिसके प्रमुख घटक फाइटोप्लांकटन, ज़ोप्लांकटन, मैक्रोफाइट्स, जलीय कीड़े और एविफ़ुना (निवासी और प्रवासी दोनों) हैं।

तीन दिवसीय कार्यक्रम की प्रमुख गतिविधियां

  1. ट्राइकोडर्मा उत्पादन के लिए किसान लैब: छोटे किसानों, युवाओं और महिलाओं के लिए ट्राइकोडर्मा उत्पादन का व्यावहारिक प्रशिक्षण।
  2. जैव विविधता और खाद्य उत्पादन में परिवर्तन का अध्ययन: स्थानीय समुदायों के बीच खाद्य आदतों और कृषि पद्धतियों का अंतर-पीढ़ी अध्ययन।
  3. वेटलैंड संरक्षण और खेती: वेटलैंड पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में खेती की भूमिका और जैविक कृषि पद्धतियों के महत्व पर चर्चा।

इस पहल का उद्देश्य न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है, बल्कि वेटलैंड क्षेत्र में किसानों को जैविक खेती की ओर बढ़ने में समर्थन देना है। इससे किसानों को सतत कृषि पद्धतियों के महत्व और वेटलैंड संरक्षण में उनकी भूमिका के बारे में जागरूक किया जाएगा। इस कार्यक्रम में डॉ. लोकेंद्र ठक्कर ओआईसी, एमपी राज्य वेटलैंड प्राधिकरण, सुश्री सुमन प्रसाद, उपाध्यक्ष की भागीदारी देखी गई। इस कार्यक्रम में निदेशक, कृषि, भोपाल, फार्म लैब, सीईई और सॉलिडेरिडाड के सदस्यों के साथ स्थानीय किसान और समुदाय के सदस्य शामिल हुए।