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मंगलवार को ‘कला धरोहर’ उत्सव में अपनी प्रस्तुति देने आईं शिक्षाविद डॉ. सुभद्रा देसाई ने हरिभूमि से बातचीत की। उन्होंने संगीत की अपनी यात्रा को साझा किया। 

(मधुरिमा राजपाल ) भोपाल। सामवेदिक मंत्रोच्चार की मौखिक परंपराओं पर काम करने के साथ ही मैंने प्राचीन संस्कृत और पाली ग्रंथों के लिए शास्त्रीय रागों पर आधारित संगीत तैयार किया। इसके साथ ही हिंदू वैवाहिक पद्धिति के मंत्र, यजुर्वेद, सामवेद, उपनिषदों के मंत्रों को भी संस्कृत में ही संगीतबद्ध किया। यह कहना है हिंदुस्तानी शैली की शास्त्रीय गायिका, दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत लेक्चरार रह चुकीं, शोधकर्ता और शिक्षाविद डॉ. सुभद्रा देसाई का। जो मंगलवार को ‘कला धरोहर’ उत्सव में अपनी प्रस्तुति देने आईं और हरिभूमि से बातचीत में उन्होंने संगीत की अपनी यात्रा को साझा किया। 

संस्कृत मेरा तन है तो संगीत आत्मा 
सुभद्रा ने कहा कि मुझे संस्कृत से गहरा लगाव था, इसलिए मैंने संस्कृत विषय लिया और इसको पढ़ाने का भी निर्णय लिया लेकिन संस्कृत को हमेशा मैंने संगीत से जोड़ने का प्रयास किया क्योंकि संस्कृत मेरा तन है तो संगीत आत्मा और संगीत के अपने इसी सफर के लिए मैंने कुछ सालों पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसरशिप छोड़ी और सम्पूर्ण जीवन संगीत को ही समर्पित किया। क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं संगीत को इतना वक्त नहीं दे पा रही, जितना देना चाहिए था। 

 वल्लभाचार्य के पदों को भी पिरोया संगीत के रुप में 
उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से ही संस्कृत को संगीत से जोड़ने का प्रयास किया मेरे इन्हीं प्रयासों की वजह से मैंने शंकराचार्य के अद्वैतवाद को, पाली ग्रंथों को भी संगीत से जोड़ा इसी क्रम में मैंने अपनी संगीतज्ञ प्रस्तुति दो बार दलाईलामा के सामने भी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि मैंने पाली ग्रंथों के लिए शास्त्रीय रागों में संगीत को थीम आधारित गायन के रूप में प्रस्तुत किया। इनमें अद्वैत दर्शन पर आधारित उपनिषदिक भजनों से लेकर विवाह पर वैदिक भजन, जयदेव की अष्टपदी और धम्मपद और सुत्त निपात जैसे बौद्ध ग्रंथों के साथ वल्लभाचार्य के पदों को भी संगीत के रुप में पिरोया।

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