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Bhopal News: भोपाल में दिनों दिन बहुमंजिला इमारतों में लिफ्ट की संख्या बढ़ती जा रही है। लेकिन सुरक्षा ऑडिट व लिफ्ट इंजीनियर के परीक्षण के बिना ही इन्हें चलाया जा रहा है। शहर में बीते दो वर्षों में आधा दर्जन से अधिक लिफ्ट दुर्घटनाएं हो चुकी हैं।

Bhopal News: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में लिफ्ट दुर्घटनाओं को लेकर नगर निगम के पास आंकड़े भी नहीं हैं कि शहर में कितनी बहुमंजिला इमारतों व अस्पतालों में लिफ्ट लगी हैं। पर्याप्त अमला नहीं होने से हर तीन महीने में होने वाला ऑडिट अब तक निगम की ओर से नहीं किया गया।   

रजिस्ट्रेशन किए जा रहे
शहर में बीते दो वर्षों में आधा दर्जन से अधिक लिफ्ट दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इसके बावजूद निगम के पास आंकड़े भी नहीं हैं कि शहर में कितनी बहुमंजिला इमारतों व अस्पतालों में लिफ्ट लगी हैं। पर्याप्त अमला नहीं होने से हर तीन महीने में होने वाला ऑडिट अब तक निगम की ओर से नहीं किया गया। हरिभूमि ने इसकी पड़ताल की है।

निगम के पास लिफ्ट इंजीनियर नहीं होने से आर्किटेक्ट की तरह इनके भी रजिस्ट्रेशन किए जा रहे हैं। जबकि लिफ्ट इंजीनियर का लाइसेंस लेने के लिए योग्यता किसी मान्यता प्राप्त विवि इलेक्ट्रिकल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री या इसके समकक्ष होना चाहिए। वहीं लिफ्टों के संस्थापन निर्माण एवं परीक्षण समेत इलेक्ट्रिकल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कम से कम पांच वर्ष काम करने का अनुभव होना चाहिए।

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इलेक्ट्रिक शाखा को सौंपा काम
भोपाल में लिफ्ट सेफ्टी का जिम्मा इलेक्ट्रिकल शाखा को सौंप दिया गया है। सिटी प्लानर इस काम को नहीं देख रहे हैं। अस्पताल में 12.5 मीटर से ज्यादा उंचाई पर ऑडिट का नियम है। 70% अस्पतालों में ऑडिट नहीं हुआ है। इसे 9 मीटर से ऊंची इमारत में संशोधन की मांग उठी है. ताकि सारे अस्पताल-इमारत सेफ्टी नियम में आ सकेंगे।

निगम का दखल
बिल्डिंग परमिशन के साथ लिफ्ट परमिशन भी नगर निगम देता है। ऐसे में निगम की जिम्मेदारी रहती है कि वह सुरक्षा ऑडिट पर नजर रखे। समय समय पर जिला प्रशासन भी लिफ्ट की सुरक्षा को लेकर निर्देश देता है।

लिफ्ट को लेकर नहीं बना कानून
राजधानी में लिफ्ट हादसे लगातार हो रहे हैं, लेकिन किसी के खिलाफ अब तक कार्रवाई नहीं की जा सकी है। लिफ्ट व्यवस्था को दुरुस्त करने एक्ट ही नहीं है। निगम के पास जिम्मेदारी है, लेकिन अब तक एक भी बार इमारतों में लगी लिफ्ट का सर्वे नहीं किया है। हालांकि लिफ्ट इंजीनियर के निर्देशों पर लिफ्ट की सेफ्टी और मेटनेस तय करना है। निगम के पास लिफ्ट इंजीनियर के पद नहीं हैं।

न्यायालय परिसर में सिर्फ एक लिफ्ट
राजधानी के जिला न्यायालय परिसर में रोजाना हजारों की संख्या में गवाह अपने मामलों में सुनवाई के लिए पहुंचते हैं। भोपाल जिले में आठ हजार से अधिक अधिवक्ता है, लेकिन इसके बाद भी यहां लिफ्ट की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो पाई है। फिलहाल यहां सिर्फ एक लिफ्ट चलाई जा रही है। हालांकि इस लिफ्ट को व्यवस्थाएं बेहतर है। बताया जा रहा है कि एक और नई लिफ्ट की स्वीकृति दी गई है, जिसके बाद यहां दो लिफ्ट हो जाएंगी। अधिवक्ताओं का कहना है कि परिसर के क्षेत्र और संख्या के लिहाज से कम से कम चार लिफ्ट होनी चाहिए।

विजय स्तंभ, एमपी नगर
एमपी नगर में विजय स्तंभ बहुमंजिला आवासीय परिसर है। यहां रहवासियों के आगे जाने के लिए पांच लिफ्ट है, जिसमें चर संचालित है इनमें एक लंबे समय से खराब पड़ी हुई है। यहां के मौजूदा मेंटेनेंस कर्मचारी का कहना है कि यह बात तो सही है कि कमी कमी लिफ्ट फसने जैसी दिक्कत होती है, लेकिन समय-समय पर मेंटेनेंस और रिपेयरिंग का काम होता है। जिस कारण अभी तक कोई बड़ी दिक्कत नहीं आई। साथ ही हम इसका ध्यान रखते हैं कि लिफ्ट में निर्धारित संख्या से अधिक लोग नहीं जाए।

एक लिफ्ट है, जो पर्याप्त नहीं
जिला न्यायालय के अधिवक्ता अमन गर्ग ने बताया कि में रोजाना हजारों की संख्या में यहां लोग अपने मुकदमे में पेशी पर आते है। इनमें बुजुर्ग, दिव्यांग, महिलाएं भी होते है। लेकिन न्यायालय परिसर में सिर्फ एक लिफ्ट है, जो पर्याप्त नहीं है। जबकि न्यायालय परिसर में कम से कम चार अलग अलग हिस्सों में लिफ्ट होना चाहिए।

कम से कम चार लिफ्ट की जरूरत
अधिवक्ता उमेश शिरोमणि द्विवेदी ने बताया कि न्यायालय परिसर में लोगों की संख्या के हिसाब फिलहाल लिफ्ट की व्यवस्था नहीं है। वर्तमान में यहां एक लिफ्ट है। एक और नई लिपट का एप्रूवल आ गया है, जिसे लगाया जाना है। परिसर में कम से कम 4 लिफ्ट होनी चाहिए।

बेतवा अपार्टमेंट, न्यू मार्केट
न्यू मार्केट स्थित बेतवा अपार्टमेंट भी आवासीय परिसर है। यहां सैकड़ों परिवार रहते है। यहां पर दो लिफ्ट संचालित है। रहवासियों का कहना है कि लिफ्ट खराब होती रहती है, लेकिन तत्काल मेंटेनेंस वाले लोगों को सूचना देते है। इसके बाद सुधार कार्य भी कर लिया जाता है। मात्र दो लिफ्ट हैं इसलिए पब्लिक का लोड भी ज्यादा रहता है।

काटजू अस्पताल, न्यू मार्केट
जवाहर चौक स्थित काटजू अस्पताल में चार लिफ्ट संचालित है। मरीजों के परिजनों का कहना है कि यहां तीन लिफ्ट तो ठीक तरह काम कर रही हैं, लेकिन एक लिफ्ट कई बार फंस जाती है, जिससे हम लोगों को दिक्कत होती है। वहीं, अस्पताल परिसर में मौजूद सुरक्षा गार्ड कहते हैं कि अभी तक लिपट से कोई बड़ी समस्या नहीं आई। बराबर मेंटेनेंस होता है।

कोई रिकॉर्ड नहीं
राजधानी में बहुमंजिला भवनों में लगी ढाई हजार लिफ्ट बहुमंजिला इमारतों में लगी हैं। इनमें से 1100 असुरक्षित है। क्योंकि यह सभी लिफ्ट 5 से 10 मंजिला इमारतों में हैं, जो 8 से 10 साल पहले ही लगाई गई हैं। यह भवन बिल्डिंग में बनाकर बेच दिए और उसके बाद से न तो रहवासी समितियों ने इसके रखरखाव की तरफ ध्यान दिया और न ही उन कंपनियों से संपर्क किया गया, जिन्होंने यह लिपट लगवाई। नगर निगम फायर अधिकारी रामेश्वर के अनुसार लिफ्ट की जांच या कोई रिकॉर्ड निगम के पास नहीं होता। इसकी अनुमति निगम की भवन अनुज्ञा शाखा के समय सिर्फ नक्शा पास कराने के समय ली जाती है। इसके बाद पूरी जिम्मेदारी विद्युत सुरक्षा विभाग की होती है। उनकी चार्षिक जांच करना भी इसी विभाग का काम है।

विद्युत सुरक्षा विभाग के अधिकारी कहते हैं कि किसी मवन में ठेकेदार द्वारा लिफ्ट लगाई जाती है, तभी उसका निरीक्षण किया जाता है। इसके बाद न तो लोगों ने विशग में संपर्क किया और न अफसरों ने लिफ्ट में सुरक्षा को जानने का प्रयास किया। विभाग के अफसरों के पास शहर में लगी लिफ्टों की जानकारी तक नहीं है। उनसे जब पूछा गया तो कहना था कि हजार-पांच से लिपटे शहर में लगीं होगी, डेटा नहीं है। अफसरों की यही उदासीनता हादसों का कारण बनती है।

2 हजार रुपए में होता है निरीक्षण
विद्युत सुरक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि लिफ्ट लगवाने की अनुमति के समय ही निरीक्षण रिपोर्ट लेते हैं। जबकि लिफ्ट के संचालन के सालाना निरीक्षण होना चाहिए। विद्युत सुरक्षा की जांच के लिए वो हजार रुपये की फीस जमा होती है। जिसे आज तक किसी भी लिफ्ट की जांच के लिए भवन स्वामियों द्वारा जमा नहीं की गई। इसलिए वार्षिक निरीक्षण भी नहीं किया गया।

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