लेखक: दिनेश निगम त्यागी, विशेष संवाददाता, हरिभूमि
भोपाल। मुख्यमंत्री मोहन यादव के मंत्रिमंडल विस्तार (Mohan Cabinet) से भाजपा (BJP) ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। एक, नई सरकार को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की छाया से बाहर निकालने की कोशिश की गई है। दो, लगभग 43 फीसदी पिछड़ों को प्रतिनिधित्व देकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gnadhi) के पिछड़े कार्ड का जवाब दिया है और तीन, नए-पुराने नेताओं, जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साध कर लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू की गई है।
असंतोष के अंकुर
मंत्रिमंडल की पहली अनौपचारिक बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा भी कि हमें अभी से लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर काम करना है, क्योंकि चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं। हालांकि, मंत्रिमंडल विस्तार में पहली बार के विधायकों को लेने और लगातार जीतने वाले कुछ वरिष्ठों और 3-4 बार से लगातार जीत रहे विधायकों को छोड़ने से असंतोष के अंकुर भी फूटे हैं।
सिंधिया का ख्याल, शिवराज को तवज्जो नहीं
पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज से जुड़े अफसरों को बिना विभाग के बैठा दिया। अब उनके खास अधिकांश पूर्व मंत्रियों, विधायकों को मंत्रिमंडल से दूर रखा है। ऐसा कर नई सरकार को शिवराज की छाया से बाहर निकालने की कोशिश हुई है। हालांकि शिवराज ने दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद कहा था कि मंत्रिमंडल को लेकर भी चर्चा हुई है। यह संभव नहीं कि इस दौरान शिवराज ने अपने सबसे खास भूपेंद्र सिंह और बृजेंद्र प्रताप सिंह को मंत्री बनाए जाने की सिफारिश न की हो, पर इन्हें जगह नहीं मिली। उम्मीद की जा रही थी कि किसी नेता की चले या न चले, लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज समर्थकों का ख्याल जरूर रखा जाएगा। मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया का तो ख्याल रखा गया लेकिन शिवराज के समर्थकों को कोई तवज्जो नहीं मिली। शिवराज जनाधार वाले नेता हैं, इसलिए उन्हें अलग-थलग करने के खतरे भी कम नहीं हैं। भविष्य में मोहन सरकार को इस चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
इन दिग्गजों को लेकर बनाया संतुलन
नौ बार से लगातार चुनाव जीतने वाले गोपाल भार्गव जैसे कद्दावर नेता के साथ कई अन्य दिग्गजों को घर बैठाया गया है। विधानसभा चुनाव जीते भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और 4 पूर्व सांसदों को मंत्री बनाकर इस कमी को पूरा करने की कोशिश भी की गई है। इनमें कैलाश मालवा-निमाड़ अंचल संभालेंगे तो राकेश सिंह और प्रहलाद पटेल महाकौशल में पार्टी की नैया पार लगाएंगे। मंडला की आदिवासी विधायक संपत्तिया उइके को लेकर भविष्य में फग्गन सिंह कुलस्ते और ओम प्रकाश धुर्वे का विकल्प तैयार किया है। निमाड़ की झाबुआ-रतलाम सीट कांतिलाल भूरिया के कारण भाजपा के लिए चुनौती बन सकती है। इसीलिए इस क्षेत्र के चेतन कश्यप और नागर सिंह चौहान को जगह दी गई है।
कमलनाथ के छिंदवाड़ा जैसे क्षेत्र को प्रतिनिधित्व नहीं
मंत्रिमंडल का विस्तार लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया, लेकिन जिस एक सीट छिंदवाड़ा में भाजपा कमलनाथ के कारण असहाय रहती है। एक छिंदवाड़ा लोकसभा सीट में ही कांग्रेस का कब्जा है। मंत्रिमंडल का यहां से कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। भाजपा जिले की सभी विधानसभा सीटें हार गई थी। इतना ही नहीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के धार जिले से भी किसी विधायक को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। यहां भी चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षाकृत ज्यादा सफलता मिली है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव के प्रभाव वाले खरगोन और खंडवा का भी मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व नहीं है। जबकि खंडवा में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष हर्ष सिंह चौहान ने बगावत का झंडा उठा रखा है। नेतृत्व की नजर इन सीटों पर क्यों नहीं पड़ी, समझ से परे है। बालाघाट और गुना को भी छोड़ दिया गया है।
क्षेत्रीय, जातीय संतुलन में सवर्ण पिछड़े
मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधने की कोशिश तो हुई है लेकिन सवर्णों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला। जबकि भाजपा सवर्णों की नाराजगी का खामियाजा 2018 के विधानसभा चुनाव में भुगत चुकी है। क्षेत्रीय दृष्टि से महाकौशल, ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य अंचल से 4-4 विधायकों को मंत्री बनाया गया है जबकि मध्य से 6 और मालवा-निमाड़ से सर्वाधिक 9 सदस्य मंत्रिमंडल में हैं। जातीय समीकरण साधते हुए सर्वाधिक 13 ओबीसी विधायक मंत्री बनाए गए हैं और 6 सवर्णों, 5 आदिवासी एवं 4 दलित विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। सवर्णों में खासकर ब्राह्मणों में ज्यादा असंतोष है। सिर्फ एक ब्राह्मण विधायक राकेश शुक्ला ही मंत्री बन सके हैं। संभवत: इसी की ओर इशारा करते हुए गोपाल भार्गव ने समाज के लिए काम करने की बात कही है।