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Leptospirosis: लेप्टोस्पायरोसिस एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी है, जो लेप्टोस्पायरा बैक्टीरिया के इंफेक्शन से फैलती है। यह बैक्टीरिया आमतौर पर गाय, घोड़े, कुत्ते, चूहे और सुअर जैसे कई जानवरों के यूरिन में मिलता है।

Leptospirosis: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान एक गंभीर और दुर्लभ बैक्टीरियल इंफेक्शन, लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis) से पीड़ित हैं। इस दिनों वह मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में रेगुलर चेकअप करा रहे हैं। यहां ट्रॉपिकल बुखार की आशंका के चलते ब्लड टेस्ट में लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमण की पुष्टि हुई। आइए, जानते हैं इस गंभीर संक्रमित बीमारी से जुड़ा सबकुछ...

लेप्टोस्पायरोसिस क्या है? 
लेप्टोस्पायरोसिस एक गंभीर बीमारी है, जो लेप्टोस्पायरा नाम के बैक्टीरिया के संक्रमण से होती है। यह बैक्टीरिया आमतौर पर जानवरों जैसे गाय, घोड़े, कुत्ते, चूहे और सुअर के यूरिन में पाया जाता है। शुरू में इसके लक्षण फ्लू जैसे होते हैं, जो बाद में वेइल सिंड्रोम जैसी घातक स्थिति में बदल सकते हैं।

Leptospirosis इंफेक्शन के क्या हैं लक्षण?
लेप्टोस्पायरोसिस के शुरुआती लक्षण तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी, दस्त और पेट दर्द होते हैं। गंभीर मामलों में पीलिया, फेफड़ों में संक्रमण, किडनी की समस्या, और ऑर्गन फेलियर जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं। लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।

Leptospirosis संक्रमण कैसे फैलता है?
यह बीमारी दूषित पानी या मिट्टी के संपर्क में आने, संक्रमित जानवरों के यूरिन के संपर्क में आने या दूषित भोजन और पानी के सेवन से फैलती है।

Leptospirosis से बचाव और इलाज
लेप्टोस्पायरोसिस से बचाव के लिए साफ-सफाई पर ध्यान देना जरूरी है। इसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है। हल्के मामलों में मरीज बिना इलाज के भी ठीक हो सकते हैं, जबकि गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती कर इलाज की जरूरत पड़ती है। इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और संक्रमण से बचने के उपाय अपनाना जरूरी है, ताकि इसे रोका जा सके।

दुनिया में हर साल लेप्टोस्पायरोसिस से 60 हजार मौतें

  • सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक, दुनिया में हर साल लेप्टोस्पायरोसिस के 10 लाख केस आते हैं और जिनमें से 60 हजार लोगों की मौत हो जाती है। लेकिन, यह बीमारी अंडर-रिपोर्टेड मानी जाती है, क्योंकि इसे लेकर जागरूकता की कमी है।
  • लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमित सिर्फ 1% ही गंभीर स्थितियों (वेइल सिंड्रोम) का सामना करते हैं। समय पर इलाज न मिलने पर यह खतरनाक हो जाता है। हालांकि, सही वक्त पर इलाज मिले तो अधिकांश मरीज स्वस्थ भी हो जाते हैं।
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