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Chagos Islands Dispute Resolution: मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ ने ब्रिटेन से चागोस द्वीप वापस मिलने के बाद भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया है। जानें पूरा मामला।

Chagos Islands Dispute Resolution: मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ ने ब्रिटेन से चागोस द्वीप वापस मिलने के बाद भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया है। मॉरीशस के पीएम ने सोशल मीडिया पर इस बात का जिक्र किया और कहा कि सभी साझेदार देशों ने उपनिवेशवाद के खिलाफ इस संघर्ष में हमारा साथ दिया। ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच करीब 50 साल से चल रहे इस विवाद को हल करने में भारत ने अहम भूमिका निभाई 

50 साल से चला आ रहा था चागोस द्वीप विवाद
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चागोस द्वीपों को लेकर ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच करीब 50 वर्षों से विवाद चल रहा था। भारत ने लंबे समय से दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने की कोशिशें कीं। गुरुवार को दोनों देशों के बीच चागोस द्वीपों पर समझौता हो गया। इस समझौते के अनुसार, 'चागोस द्वीप' मॉरीशस को सौंप दिए जाएंगे। 
चागोस द्वीप पर है अमेरिका-ब्रिटेन का सैन्य बेस
चागोस द्वीपों का समूह 60 द्वीपों से बना है, जिसमें डिएगो गार्सिया द्वीप भी शामिल है। यहां पर अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर एक संयुक्त सैन्य अड्डा बनाया हुआ है। इस समझौते के तहत, अमेरिका-ब्रिटेन का यह सैन्य अड्डा अगले 99 वर्षों तक यहां रहेगा। हालांकि, द्वीपों का स्वामित्व अब मॉरीशस के पास होगा। 

आजादी के बाद भी मॉरीशस को नहीं मिला चागोस
मॉरीशस को 1968 में ब्रिटेन से आजादी मिल गई थी, लेकिन इसके बावजूद ब्रिटेन ने चागोस द्वीपों पर अपना दावा बनाए रखा। मॉरीशस ने लगातार इस द्वीप पर अपने अधिकार का दावा किया। 2017 में संयुक्त राष्ट्र में चागोस द्वीप पर वोटिंग हुई, जिसमें भारत सहित 94 देशों ने मॉरीशस के पक्ष में मतदान किया था। 

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने मॉरीशस के पक्ष में सुनाया फैसला
2019 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने भी चागोस द्वीपों को मॉरीशस का हिस्सा घोषित किया। इसके बावजूद, ब्रिटेन ने अपने सैन्य हितों को ध्यान में रखते हुए द्वीपों को नहीं छोड़ा। लेकिन अब, समझौते के तहत मॉरीशस को इन द्वीपों का स्वामित्व सौंप दिया गया है। 

डिएगो गार्सिया द्वीप पर अमेरिकी सैन्य बेस की कहानी
स्वतंत्रता से पहले ही, 1966 में अमेरिका ने ब्रिटेन से डिएगो गार्सिया द्वीप को 50 साल की लीज़ पर लिया था। 2016 में इस लीज़ को 20 और वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। अमेरिका ने यहां एक वायु और नौसेना अड्डा बनाया, जिसके लिए स्थानीय निवासियों को हटा कर ब्रिटेन और मॉरीशस भेज दिया गया। 

2022 में ब्रिटिश सरकार ने मॉरीशस से बातचीत शुरू की
2022 में ब्रिटिश सरकार ने मॉरीशस से बातचीत शुरू की, हालांकि तत्कालीन कंजरवेटिव पार्टी के पीएम बोरिस जॉनसन ने इसका विरोध किया था। जॉनसन ने आशंका जताई कि अगर मॉरीशस को द्वीप सौंपा गया तो चीन यहां अपना सैन्य बेस बना सकता है। वहीं, डिएगो गार्सिया द्वीप पर पहले भी विवाद हो चुका है, जिसमें अमेरिकी सैनिकों द्वारा यहां पहुंचे लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

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