Humaira Mushtaq Journey: कश्मीर की रहने वाली हुमैरा मुश्ताक जिन्होंने कुछ अलग करने की चाह और देश का नाम रोशन करने के लिए रेसिंग ट्रैक को चुना जो देश का नाम भी रोशन कर रही है। हुमैरा मुश्ताक ब्रिटिश एंड्योरेंस चैंपियनशिप में भाग लेने वाली भारत की पहली और एकमात्र महिला रेसर हैं। इसके साथ ही यह इस नवंबर 2024 में मध्य-पूर्व में होने वाले जीटी रेस का भी भाग ले रही हैं।
हुमैरा मुश्ताक को रेसिंग जैसे रोमांच भरे खेल का शौख बचपन में लगा। अन्तराष्ट्रीय रेसिंग ट्रैक का हिस्सा बनने के बारे अपने को बताते हुए हुमैरा मुश्ताक ने कहा, "मैं चार साल की थी जब मुझे पहली बार कारों से प्यार हुआ। कश्मीर के एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ी किसी लड़की के लिए यह एक अप्रत्याशित शुरुआत थी, जहां लड़कियों को पारंपरिक भूमिकाओं से बाहर निकल कर अपनी मर्जी की जिंदगी जीने के लिए शायद ही कभी प्रोत्साहित किया जाता था। इस तरह के सपनों को पूरा करने के लिए परिवार से मंजूरी लेना भी आसान नहीं होता है। मैं घर पर टीवी के अलग अलग चैनलों पर काफी अधिक रेसिंग देखती थी, और जब मेरी उम्र के ज्यादातर बच्चे खिलौनों से खेल रहे होते थे, तो मैं खुद को उन तेज कारों के पहिए के पीछे स्टीयरिंग पकड़े हुए रेसट्रैक पर सभी को पीछे छोड़ने की कल्पना करती थी।”
समय के साथ स्पीड को लेकर दिलचस्पी लगातार बढ़ती गई और वह जुनून की हद तक पहुंच गई थी। और, जब वह किशोरी हुई, तो हुमैरा को पता चल गया कि वह सिर्फ रेस देखने से ज्यादा कुछ चाहती है। वह उनका हिस्सा बनना चाहती थी। लेकिन एक पारंपरिक और कंजर्वेटिव कम्युनिटी में पली-बढ़ी होने का मतलब था कि उसे अक्सर “पुरुषों” का क्षेत्र माने जाने वाले कामों को करने से दूर रहने के लिए कहा जाता था।
हुमैरा ने कहा, "मुझे पता था कि मेरे लिय ये सब कुछ यह आसान नहीं होने वाला है। मेरे कश्मीरी कल्चर में, हमारे परिवारों की महिलाओं को शायद ही कभी गाड़ी चलाते देखा जाता था, रेसिंग तो दूर की बात है। जब भी मैं रेसर बनने के अपने सपने का जिक्र करती, तो लोग हंसते या मुझे ऐसा करने से रोकने की कोशिश करते। लेकिन मैं अपने इरादों की पक्की थी। मुझे पता था कि अगर मैं अपने सपनों को पूरा करने का इरादा पक्का न करती, तो मुझे जीवन भर इसका पछतावा होगा।"
हुमैरा का रेसट्रैक तक का रास्ता सिर्फ सामाजिक तौर पर ना-मंजूर किए जाने के सबसे बड़े जोखिम से ही जूझ रहा था; बल्कि काफी बड़ी वित्तीय मुश्किलें भी मौजूद थीं। मोटरस्पोर्ट दुनिया के सबसे महंगे खेलों में से एक है, और एक मध्यम-वर्गीय परिवार से होने के कारण, रेसिंग से जुड़े खर्चों को सहन और वहन करना लगभग असंभव था। लेकिन अपनी शिक्षा को बैलेंस करने के साथ-साथ, अपने परिवार की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए मेडिकल स्कूल में प्रवेश पाने के बावजूद, हुमैरा ने रेसिंग के प्रति अपने जुनून को कभी भी नहीं छोड़ा। आखिर में वह अपने सपनों को पूरा करने में सफल भी रही।
उसने माना कि "जिंदगी में कुछ ऐसे पल भी आए जब मुझे लगा कि मैं दोहरी ज़िंदगी जी रही हूं।" हुमैरा ने बताया कि "दिन के समय, मैं एक मेडिकल स्टूडेंट थी, जिसकी उम्मीद हर कोई मुझसे करता था, लेकिन मेरे दिल में, मैं लगातार इस बारे में सोचती रहती थी कि मैं ट्रैक पर कैसे पहुंचूंगी। यह एक मानसिक रस्साकशी थी, लेकिन मैं अपने किसी भी सपने को अधूरा ही छोड़ना नहीं चाहती थी।"
अपने रेसिंग के सपने को साकार करने के लिए, हुमैरा ने पार्ट-टाइम नौकरियां भी कीं और स्पांसरशिप के लिए भी अप्लाई किया, और मोटरस्पोर्ट्स की दुनिया में लोगों के साथ काफी अधिक प्रयास किया। लेकिन एक चीज़ थी जिसे वह अनदेखा नहीं कर सकती थी – पुरुष के प्रभुत्व वाले सेक्टर में एक महिला होने के नाते अपनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
उसने बताया कि "जब मैंने पहली बार रेसिंग मुकाबले में हिस्सा लिया तो हौसला और बढ़ गया। फिर मैंने और मुकाबलों में शामिल होना शुरू किया, मैं अक्सर इस इवेंट में अकेली महिला होती थी। मैं महसूस कर सकती थी कि लोग मुझ पर नज़र रख रहे हैं, संदेह कर रहे हैं। यह सिर्फ़ तेज़ गाड़ी चलाने के बारे में नहीं था - यह साबित करने के बारे में था कि मैं ऐसी दुनिया में हूं जो मेरे जैसी किसी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।"
"मुझे पहली बड़ी सफलता तब मिली जब मुझे प्रतिष्ठित ब्रिटिश एंड्योरेंस चैंपियनशिप रेस के लिए चुना गया। ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, वह प्रतिष्ठित एस्टन मार्टिन टीम के लिए रेस कर रही थीं। यह एक सपना सच होने जैसा था, लेकिन इसके साथ मैं काफी अधिक दबाव मे भी थी। अब सिर्फ़ अपना प्रतिनिधित्व नहीं कर रही थी - मैं अपने देश, अपने जेंडर और उन सभी का प्रतिनिधित्व कर रही थी, जिन्होंने कभी न कभी मुझ पर संदेह किया था।"
उनके पुरुष साथियों, खासकर उनके को-पायलट का शुरुआती संदेह स्पष्ट था। हुमैरा ने बताया कि "मुझे लेकर ये आम धारणा थी कि मैं दबाव को संभालने या रेस की तकनीकी मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो पाऊंगी। लेकिन हर बार जब मैं गाड़ी चलाती, तो मैं खुद को याद दिलाती कि मैंने यहां तक आने का अपना स्थान अपने स्किल से हासिल किया है। मैं किसी को भी इसे मुझसे दूर ले जाने नहीं दूंगी।"
हुमैरा ने खुद को ट्रैक पर साबित किया, उम्मीदों को धता बताते हुए और अपने साथियों का सम्मान अर्जित करते हुए, लगातार रेसिंग में सफलताएं हासिल कीं। अब, जब वह अपनी अगली चुनौती के लिए तैयार हो रही है। जी.टी. चैम्पियनशिप में भाग लेने के लिए—हुमैरा न केवल विपरीत हालात पर जीत का प्रतीक है, बल्कि भारत की अनगिनत युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा भी है, जो रेसिंग जैसे बड़े सपने देखने की हिम्मत रखती हैं।
(मंजू कुमारी)