Electoral Bonds SBI: गैर-कानूनी साबित हो चुके इलेक्टोरल ब्रॉन्ड के एक मामले में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जिसमें एडीआर ने आरोप लगाया है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जानबूझ कर गलत मंशा के साथ शीर्ष अदालत के फैसले का पालन नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को दिए अपने आदेश में राजनीतिक दलों के चंदे के लिए जारी होने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड को गैर-कानूनी घोषित किया था। साथ ही, एसबीआई को 6 मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारियां चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया था।
Live Law से मिले इनपुट के मुताबिक, देश में निर्वाचन प्रक्रिया की निष्पक्षता और सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर ने गुरुवार को याचिका में आरोप लगाया कि एसबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds) को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन नहीं किया। यह शीर्ष अदालत की अवमानना है। साथ ही यह आम आदमी को मिले सूचना के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है। ADR की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सामने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने बेंच से एडीआर की याचिका पर एसबीआई की अपील के साथ सुनवाई करने की मांग की है।
SBI ने की समय सीमा बढ़ाने की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी के अपने आदेश में स्टेट बैंक को निर्देश दिया था कि वह 12 अप्रैल, 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल 6 मार्च तक चुनाव आयोग के पास जमा कराए। लेकिन 4 मार्च को एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जिसमें बैंक ने व्यावहारिक कठिनाइयों का हवाला देकर बॉन्ड से जुड़ा डेटा जुटाने के लिए समय सीमा 6 मार्च से बढ़ाकर 30 जून, 2024 करने की मांग की है।
एडीआर की याचिका में क्या है?
एडीआर ने अपनी याचिका में एसबीआई की अपील को "दुर्भावनापूर्ण" बताया। कहा है कि यह एक प्रकार से अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले पारदर्शिता लाने के कोशिशों को नाकाम करने का प्रयास है। एडीआर का तर्क है कि चुनावी बॉन्ड के मैनेजमेंट के लिए एसबीआई के पास पहले से ही आईटी सिस्टम तैयार है। हर बॉन्ड को उसके यूनिक नंबर से आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। याचिका के मुताबिक, देश के मतदाताओं को चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिली बड़ी रकम के बारे में जानने का मौलिक अधिकार है। चुनाव में पारदर्शिता में कमी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत सहभागी लोकतंत्र के सार के खिलाफ है।