आशीष नामदेव, भोपाल।
मच्छर से बचने के लिए छात्रा खरे ने तैयार की ऐसी पॉलिश जिसको सूंघ कर ही मच्छर भाग जाएगा। छात्रा बताती हैं कि पैर के नीचे के हिस्से में अक्सर मच्छर काटते हैं जिससे डेंगू और मलेरिया होते है। मच्छर काट कर भाग जाता है। जिसके बाद मैंने ऐसी पॉलिश को तैयार किया कि उसे सूंघ कर ही मच्छर भाग जाएगा। वो काटेगा ही नहीं। ये पॉलिश देखने को मिली रवींद्र भवन में 31वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के अंदर। इसके तीसरे दिन विद्यार्थियों के प्रोजेक्ट्स का मूल्यांकन पूर्ण हुआ और विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से उन्हें विद्यार्थियों को नया सीखने का अवसर प्राप्त हुआ।
बॉडी लैंग्वेज और प्रैक्टिकल तरीकों से शिक्षा को बना सकते हैं सरल
‘प्रेरणादायक नवाचारी’ विषय पर विज्ञान शिक्षकों के लिए आयोजित कार्यशाला में ‘आइसर पुणे के प्राध्यापक डॉ. चैतन्य पुरी’ के व्याख्यान ने शिक्षा और विज्ञान में नवाचार के प्रेरक, बच्चों को सिखाने के अनोखे तरीके पेश किए। शिक्षा को दिलचस्प और व्यावहारिक बनाने के उद्देश्य से आयोजित एक कार्यक्रम में डॉ. चैतन्यपुरी ने अपने प्रेरणादायक विचारों और नवाचार के अनोखे तरीकों को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे शिक्षकों की बॉडी लैंग्वेज और प्रैक्टिकल तरीकों का उपयोग शिक्षा को प्रभावशाली और सरल बना सकता है।
अरविंद गुप्ता के शिक्षा दर्शन से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने विज्ञान और गणित को समझाने के कई अनोखे और रचनात्मक तरीकों का प्रदर्शन किया। डॉ. चैतन्यपुरी ने बताया कि शिक्षक शिक्षा को सिर्फ पढ़ाने तक सीमित न रखें, बल्कि बच्चों को गतिविधियों और प्रैक्टिकल मॉडल्स के माध्यम से विषयों को समझने में मदद करें।
डिजिटल प्लेटफॉर्म हमारी सोच को कर सकते हैं सीमित: राज किशोर
31वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के तहत आज एक विशेष सत्र में ‘बंगलुरु के शैक्षिक रणनीतिकार राज किशोर’ ने शिक्षकों और छात्रों को तकनीक और नवाचार के महत्व पर प्रेरित किया। इस सत्र का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों को ‘चैटजीपीटी,’ ‘फिल्टर बबल,’ और तकनीकी नवाचार के प्रभावों के प्रति जागरूक करना था।
राज किशोर ने ‘फिल्टर बबल’ की अवधारणा को विस्तार से समझाते हुए कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म हमारी सोच को सीमित कर सकते हैं। वहीं विवेकानंद पाई ने कहा, ‘भारतीय संस्कृति और विज्ञान में हमारी समस्याओं का समाधान छिपा है। हमें अपनी धरोहर को संजोकर आगे बढ़ना होगा।’
विवेकानंद पाई का यह व्याख्यान केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं था, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, विज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति एक नई दृष्टि देने वाला प्रेरणादायक संदेश था।