Health Tips: लगभग दो-तीन दशकों से लोगों के बीच बहस छिड़ी हुई है कि सेहत के लिए आखिर खाने का सही तरीका क्या है? क्या हमें हर दिन एक निश्चित समय पर ही भोजन करना चाहिए या जब भूख लगे तब खा लेना चाहिए?
क्या कहती हैं स्टडीज
जॉन होपकिंस यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट वेलफेयर डिपार्टमेंट के मुताबिक, ‘हमारी भूख को कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने की क्षमता सिर्फ हमारे जैविक पैटर्न या सर्केडियन साइकल में निहित है। करीब 100 सालों के अनगिनत अध्ययनों, शोधों से यह बात साबित हो चुकी है कि हमारे शरीर का रियल पैटर्न, सिर्फ हमारी सर्केडियन साइकिल के पास है, जो हमारी तमाम गतिविधियों को 24 घंटे के चक्र में विभाजित करती है। इसलिए चाहे सोने या जागने की बात हो, भोजन और उपवास की बात हो, इसके मुताबिक एक निश्चित समय पर ही ऐसा करना हेल्थ के लिए सबसे सही होता है।
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किंग्स कॉलेज, लंदन के रिसर्चर्स ने भी यूरोपीय न्यूट्रिशन कॉन्फ्रेंस में यह खुलासा किया है कि लंबे शोध से खान-पान विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारी बॉडी हमें सिर्फ 10 घंटे के भीतर ही खाने की गतिविधियां संपन्न करने का अवसर देती है यानी, 10 घंटों के निर्धारित समय में ही हमें खाना चाहिए। इसी से ही हमारा मूड, भूख और एनर्जी तीनों का लेवल नियंत्रित होता है। इस तरह 24 घंटे के निश्चित समय में 14 घंटे हमें उपवास रखना चाहिए। डायटिशियन इस सर्केडियन टाइम पीरियड को ही इंटरमिटेंट फास्टिंग कहते हैं। कहने का अर्थ है, एक निश्चित समय पर खाने का समर्थन कई स्टडीज करती हैं।
यह भी है एक पक्ष
एक मजबूत पक्ष इस बात का समर्थक भी है कि चाहे आपने आखिरी बार कभी भी भोजन किया हो, लेकिन अगर आपको भूख लग रही है, तो आपको खाना खा लेना चाहिए, बिना भोजन के शेड्यूल की परवाह किए। इस पक्ष के मुताबिक वास्तव में हमें अपनी बॉडी को ही अपनी भूख का सबसे बड़ा संकेत मानना चाहिए और उसी के मुताबिक अपने निर्णय लेने चाहिए। इस बात का समर्थ करने वाले विशेषज्ञ मानते हैं कि आखिरकार हमारी बॉडी, भूख का संकेत हमारी जरूरतों को ध्यान में रखकर ही करती है। यह भूख इस बात का संकेत है कि हमारे शरीर को जरूरी ईंधन चाहिए। लेकिन ज्यादातर खान-पान के जानकार इस बात का भले संतोषजनक उत्तर ना दे पाएं लेकिन वो सहमत नहीं हैं कि जब भूख लगे तब खाना खाएं। उनका तर्क होता है कि भूख लगना हमेशा हमारे शरीर को ऊर्जा की जरूरत का संकेत ही नहीं होता। जो लोग ओवरईट करते हैं, वो भी बिना भूख लगे नहीं खाते, लेकिन उन्हें बार-बार भूख लगती है। इससे पता चलता है कि उनका शरीर भूख को लेकर सही संकेत कर पाने में समर्थ नहीं है।
लेटेस्ट स्टडी का निष्कर्ष
हाल में छपे नेचर कम्युनिकेशन जर्नल का यह शोध अध्ययन सबसे मौजूं है कि रात में 9 बजे के बाद भोजन करना कई तरह की बीमारियों और मानसिक रोगों का जोखिम बढ़ा सकता है। आखिरकार भूख अगर इतना ही महत्वपूर्ण संकेत होती तो इस तरह की परेशानियां देर-सवेर खाने के साथ नहीं जुड़ी होती। डाइट एक्सपर्ट कहते हैं कि रात का भोजन करने में हर घंटे की देरी के साथ, हम अपनी मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का जोखिम 8 फीसदी से ज्यादा बढ़ा लेते हैं। अगर रात में 9 बजे के बाद खाना खाते हैं तो यह जोखिम 28 फीसदी तक पहुंच सकता है। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि दुनियाभर की विभिन्न प्रयोगशालाओं में हुए शोध अध्ययन, इसी दिशा की तरफ बढ़ते दिखाई दे रहे हैं कि हमें हर दिन एक निश्चित समय पर ही भोजन करना चाहिए।
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कई शोध अध्ययनों में पाया गया है कि करीब 90 फीसदी तक लोगों की बॉडी, हंग्री कॉल बहुत साइंटिफिक तरीके से ही देती हैं। लेकिन जो लोग कुछ बीमारियों से ग्रस्त हों या जिनमें कई तरह के केमिकल स्राव, रासायनिक क्रियाओं में डिस्टरबेंस पैदा कर रहे हों, उन लोगों के लिए भूख, धोखा भी साबित हो सकती है। इसलिए दुनिया के ज्यादातर डायटिशियन जोर देते हैं कि शाम का भोजन 6 से 7 बजे तक ही कर लेना चाहिए। इसकी वजह वे यह बताते हैं कि ऐसा करने से भोजन पचने के लिए जरूरी एंजाइम और एसिड शरीर समय पर उत्पन्न कर देता है, जिससे पोषक तत्त्वों का अवशोषण तेजी से और प्रभावी तरीके से हो जाता है। खाना पच जाता है और उसका सार तत्व शरीर की सारी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम रहता है। समय से खाना खाने से वजन का बढ़ना, मेटाबॉलिज्म का मंद पड़ना, अच्छी नींद ना आना और हृदय रोग की आशंका करीब-करीब खत्म हो जाती हैं। ऐसी कई तरह की समस्याएं सही समय पर (शाम के भोजन के लिए 6 से 7 बजे के बीच) कर लेने से दूर होती हैं और हम नुकसान से बच जाते हैं।
(यह जानकारी डाइटीशियन राजकुमार ‘दिनकर’ से बातचीत पर आधारित है।)