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Parenting Tips: इस डिजिटिल युग में बच्चों का बचपन भी डिजिटलाइज्ड हो गया है। उनकी नजरें मोबाइल या लैपटॉप पर टिकी रहती हैं। बच्चे घर से बाहर नहीं निकलते, उनकी फिजिकल एक्टिविटीज बंद रहती हैं। ऐसे में बच्चों को कुदरत से जोड़कर डिजिटली डिटॉक्स करना बहुत जरूरी है।

Parenting Tips: हाल में बेंगलुरु में एक चाइल्ड स्पेशलिस्ट के पास अजीब सा केस आया। एक कपल अपने बच्चे का चेकअप करवाने लाए थे। मात्र ढाई साल का बच्चा मोबाइल फोन का इतना आदी हो गया था कि अगर उसे कोई गोद में लेता तो वह उस व्यक्ति के माथे पर स्वाइप करने लगता, मानो वह मोबाइल स्क्रीन हो। स्वाइप करके वह वैसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद भी करता जैसे मोबाइल में आती है। अपने पैरेंट्स की किसी भी बात का जवाब वह तभी देता था, जब वे ‘टॉकिंग टॉम’ नामक एप यानी बोलने वाली बिल्ली की आवाज में उससे बात करते। यह मामला वाकई चौंकाने और परेशान करने वाला था। इस केस से पता चलता है कि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का दखल हमारी जिंदगी में कितने खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। 

शिशुकाल में स्क्रीन टाइम हो जीरो
विशेषज्ञ कहते हैं कि शिशुकाल यानी पांच साल तक के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम पूरी सख्ती के साथ जीरो होना चाहिए। दो साल तक के बच्चे को तो स्क्रीन दिखाना तक नहीं चाहिए। लेकिन स्थिति इससे बहुत अलग है। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के गैजेट और सोशल मीडिया प्रेम यानी डिजिटल एडिक्शन से परेशान हैं। ऐसे में आप बच्चों को डांटने-फटकारने की बजाय, बच्चों को शुरू से ही कुदरत की खूबसूरती से रूबरू कराएं, उन्हें इसमें व्यस्त रखें। इससे दोहरा फायदा होगा, पहला तो वे कुदरत के सान्निध्य में रहने के कारण स्वस्थ रहेंगे, दूसरा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से चिपके रहने की आदत से दूर होंगे। 

उन्हें मिलेगा सुकून
मनोविज्ञानियों का मानना है कि कुदरत के करीब रहने वाले बच्चों में कंसंट्रेशन और सीखने की क्षमता अधिक रहती है। इन बच्चों में मानसिक उद्वेग और अशांति कम पाई जाती है। ऐसे बच्चे स्वभाव से सृजनात्मक भी होते हैं।

सक्रिय और होशियार बनेंगे
कई अध्ययनों में साबित हुआ है कि प्राकृतिक वातावरण के अधिक करीब रहने वाले बच्चों में शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक सक्रियता अधिक होती है। इनमें दूसरों के प्रति सहानुभूति और संवेदनशीलता भी होती है। ऐसे बच्चे स्ट्रेस से लड़ने में औरों से बेहतर स्थिति में होते हैं। अपनी समस्याओं को सुलझाने में भी ये ज्यादा सफल होते हैं।

ऐसे ले जाएं कुदरत के करीब
बच्चों में कुदरत के प्रति आकर्षण पैदा करने और उन्हें कुदरत के करीब ले जाने के लिए आपको कुछ कदम उठाने होंगे, जो आपके पास उपलब्ध जगह, सुविधाओं और समय के हिसाब से तय किए जा सकते हैं। बच्चे को साथ लेकर सुबह-शाम अपने घर के नजदीक किसी पार्क में ले जाएं। वहां उसे लेकर टहलें, उसके साथ भाग-दौड़, लुका-छिपी खेलें। उसे तरह-तरह के पेड़-पौधों, वहां लगे फूल-पौधों और पक्षियों के बारे में बताएं। इन पक्षियों की हरकतें देखने के लिए प्रेरित करें। किसी कारणवश आप रोज पार्क में ना जा पाएं तो हफ्ते में एक दिन अपने बच्चों के साथ किसी प्राकृतिक स्थान पर जाएं। वहां अगर नदी-तालाब हों तो उसकी लहरें देखें। पक्षियों को दाना दें। मछलियों को आटे की गोलियां डालें और उनकी अठखेलियां देखें।

कुदरत के बीच कॉम्पिटिशन
अपने कुछ रिश्तेदारों या अपनी सोसायटी के दूसरे परिवारों के साथ मिलकर बच्चों को समय-समय पर प्राकृतिक स्थानों पर ले जाएं। इनमें सैंचुरी, बॉटेनिकल गार्डन, जू, वॉटर पार्क आदि अलग-अलग स्थान चुनें। यहां बच्चों में आपस में पेंटिंग-ड्रॉइंग कॉम्पिटिशन करवाएं। 

नेचर स्क्रैप बुक
कुदरत के प्रति बच्चों में आकर्षण पैदा करने के लिए आप जब भी उनके साथ पार्क में जाएं, तो बच्चे को वहां से कुछ इकट्ठा करने की आदत डालें, जैसे किसी पेड़ की पत्ती, फूल, आकर्षक आकार की टहनियां, पक्षियों के पंख और गोलमटोल चिकने पत्थर आदि। फिर इन टहनियों या पत्थरों पर पेंट करके बच्चे को कुछ क्रिएटिव करने का आइडिया दें। इसी प्रकार पत्तियों और फूलों की स्क्रैप बुक बनवाएं। यहां बताई बातें जब आप अमल में लाएंगी तो आपके बच्चे अपने आप डिजिटल एडिक्शन से दूर रहेंगे, उनके व्यक्तित्व का विकास सही ढंग से होगा।

ऐसा भी करें 

  • अगर आपके पास जगह है तो बच्चों को बागवानी के काम से इंवॉल्व करें।
  • घर के लॉन में रंग-बिरंगे फूलों या फल वाले पेड़ लगवाएं। पेड़ों पर कौन से फल पक गए या अभी कच्चे हैं, इनका कयास लगाने को कहें। उनकी बुक्स में दिए गए पेड़ अगर आपके बगीचे में लगे हैं या बाहर कहीं दिखें, उसे बताएं।
  • घर में बैठकर खेले जाने वाले इंडोर गेम्स जैसे लूडो, हाऊजी आदि कुदरत के बीच जाकर खेलें। वहां हल्की आवाज में म्यूजिक भी सुनें।

परवरिश 
शिखर चंद जैन

 

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