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सनातन धर्म के मतावलंबियों के लिए भगवान श्रीकृष्ण युगों-युगों से आराध्य हैं। उन्होंने अपने लौकिक जीवन की अनेक लीलाओं के माध्यम से पूरे समाज और मानवता को ऐसे संदेश दिए, जो सदियां गुजरने के बाद आज भी प्रासंगिक हैं। हम सब उनके संदेशों को अगर अपना लें तो हमारा जीवन आनंद से भर उठेगा।

krishna jayanthi 2024: भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, इसी कारण इसे कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की यह 5251वीं जयंती है। इतने साल पहले उनका जन्म मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के कारागार में मां देवकी के गर्भ से आधी रात को हुआ था। जिस दिन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, वह दिन भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी और रोहिणी नक्षत्र था। इसीलिए इस दिन को पूरी श्रद्धा से जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाते हैं।

इसलिए श्रीकृष्ण हैं प्रासंगिक
दुनिया में बहुत से महापुरुष हुए हैं, लेकिन समय के हिसाब से उनकी शिक्षाएं और आदर्श अप्रासंगिक हो गए। इनके विपरीत श्रीकृष्ण वर्तमान 21वीं सदी में दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक ही नहीं आध्यात्मिक और बेहद सांसारिक लोगों को भी आकर्षित करते हैं तो इसकी वजह यह है कि ना सिर्फ उनकी शिक्षाएं बल्कि उनका संपूर्ण दर्शन और उनकी की गई लीलाएं आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक हैं। 

बताई प्रेम-करुणा की महत्ता
अगर धार्मिक दृष्टि से देखें तो कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व इसलिए बहुत है कि कृष्ण प्रेम और करुणा के भगवान हैं, जिसकी आज भी पूरी दुनिया को बहुत जरूरत है। कृष्ण को योगेश्वर भी कहा जाता है और दुनिया जानती है कि आज के इस बेहद तनाव भरे जीवन में योग कितना महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण के अवतारी जीवन में हमेशा रिश्तों के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देने के दृष्टांत मिलते हैं। आज भी रिश्तों से रिक्त होती दुनिया में ईमानदार, भावनात्मक संबंधों की सर्वाधिक जरूरत है। श्रीकृष्ण बड़ी से बड़ी परेशानी में भी हिम्मत नहीं हारते, मुस्कुराते रहते हैं और हमेशा कर्म करते रहने की सीख देते हैं। आज भी दुनिया के सारे मोटिवेशनल गुरु इन्हीं मूल्यों को जीवन की सबसे बड़ी कसौटी मानते हैं।

दिया स्त्रियों के सम्मान का संदेश
आज पूरी दुनिया की लोकतांत्रिक संस्थाएं, स्त्रियों को महत्व देने की बात करती हैं। श्रीकृष्ण ने पांच हजार साल पहले स्त्रियों को वह मान-सम्मान और बराबरी दी थी, जिसकी तब कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इसके अलावा आज ज्यादातर आध्यात्मिक गुरु, धर्म को एक कर्त्तव्य के रूप में पालन करने की बात कहते हैं, जबकि भगवान कृष्ण तो यह बात पांच हजार साल पहले ही कह गए हैं। इसीलिए भारत ही नहीं, दुनिया में भगवान कृष्ण के अलग-अलग नामों, रूपों के अनुयायी मौजूद हैं। 

शाश्वत मूल्यवान गीता का ज्ञान
भगवान कृष्ण को विष्णु का पूर्ण अवतार भी माना जाता है। इसलिए कृष्ण की पूजा हिंदू धर्म की एक प्रमुख परंपरा के साथ वैष्णव मत का अभिन्न हिस्सा है। भगवान कृष्ण ने ऐसा जीवन जीया, जिसकी किसी और से तुलना ही नहीं की जा सकती। उन्होंने जीवन की हर कर्म को एक आदर्श रूप में प्रस्तुत किया और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके प्रस्तुत किए आदर्श आज भी पूर्णतः प्रासंगिक हैं। यह अकारण नहीं है कि आज पश्चिमी देशों में सबसे ज्यादा लोग कृष्ण भक्ति से जुड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा भगवान कृष्ण के उपदेशों पर चर्चाएं होती हैं। क्योंकि महाभारत के युद्ध क्षेत्र (कुरुक्षेत्र) में उन्होंने अर्जुन को जो उपदेश दिया था, वह आजतक का दुनिया का श्रेष्ठतम और शाश्वत ज्ञान है। इस संसार में इतने बदलाव हुए, दुनिया में इतनी ज्यादा उथल-पुथल हुई, लेकिन श्रीकृष्ण का गीता ज्ञान जरा भी अप्रासंगिक नहीं हुआ।

कर्मशील बने रहने का संदेश
अगर भगवान कृष्ण के समूचे लौकिक जीवन पर दृष्टि डालें तो कारागार में जन्म से लेकर बहेलिए की भूलवश उसके तीर से आहत होने तक भगवान कृष्ण के जीवन में हर पल एक सचेत और शक्ति से भरपूर संघर्ष की ही गाथा है। श्रीकृष्ण के पैदा होते ही उन्हें मूसलाधार बारिश और भयानक रूप से उमड़ रहीं यमुना को पार करके उनके पिता वासुदेव ने गोकुल पहुंचाया था। उसके बाद भी जीवन के हर पल चुनौतियों से घिरे रहने के बाद भी कृष्ण हमेशा हंसते-मुस्कुराते रहे। वह हमेशा जीवन को खुशी-खुशी जीने की सीख देते हैं, जो बात 18वीं, 19वीं सदी में आकर साम्यवादी दार्शनिकों ने कहा कि दुनिया से भागो नहीं बल्कि उससे मुठभेड़ करो और परिस्थितियों को अपने पक्ष में बदल डालो, वही बात 

कृष्ण पांच हजार साल पहले कह गए हैं।
कृष्ण बहुत निस्पृह भाव से कहते हैं, कर्म करना तुम्हारा कर्तव्य है। इसलिए तुम बिना फल की चिंता किए अपना कर्म करने का धर्म निभाओ, जीवन की यही सबसे बड़ी धार्मिकता है, यही सबसे बड़ी ईमानदारी है। श्रीकृष्ण हमेशा पूरे मन से कर्म करने और जीवन के हर पल का आनंद लेने की बात कहते हैं। वे जहां श्रम करने के लिए गायों को चराने जैसा काम करते तो वहीं बांसुरी बजाने, गोपियों के साथ नृत्य करने का आनंद भी लेते थे। कृष्ण शिक्षा को सर्वाधिक महत्व देते हैं, वह सभी वेदों के ज्ञाता हैं। लेकिन शिक्षा से ज्यादा वे विभिन्न रचनात्मक कलाओं को महत्व देते हैं। 

सिखाया हर रिश्ते का मान करना 
श्रीकृष्ण का विराट व्यक्तित्व इसलिए भी इतना रहस्यमयी, आश्चर्य चकित करने वाला और योग्यताओं से भरपूर है, क्योंकि वो हर तरह की कला में माहिर थे। वे 64 कलाओं में परिपूर्ण थे। रचनात्मकता उनके रोम-रोम में भरी थी। वह सिर्फ पारंपरिक शिक्षा के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा रचनात्मक गतिविधियों को महत्व दिया। कृष्ण धरती के सबसे बड़े ज्ञानी और सबसे बड़े विमोही थे। लेकिन उन्होंने अपने जीवन के पल-पल में रिश्तों को कुछ इस तरह जिया कि जैसे उनसे ज्यादा कोई रिश्तों में रचा बसा ना हो। वह अर्जुन से युवास्था में मिलते हैं और उम्र भर के लिए उनके सखा और पथप्रदर्शक बन जाते हैं। सुदामा के साथ उन्होंने गुरुकुल में कुछ दिन बिताए थे और उद्धव उनके बाल्यावस्था के मित्र थे, लेकिन इन सबके लिए श्रीकृष्ण कुछ भी करने को तत्पर रहते थे। गरीब सुदामा को अपने सीने से लगाकर उन्हें भरपूर सम्मान दिया कृष्ण ने जिसका साथ ग्रहण किया, पूरी उम्र उसके साथ रहे। इसलिए कृष्ण महज कर्मकांडों के देवता नहीं बल्कि आज भी वास्तविक जीवन के आदर्श हैं।  

आर.सी. शर्मा

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