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Happiness Family: गहराई से विचार करें तो बिखरे परिवारों का ना तो कोई अस्तित्व होता है और ना वे जड़ों से जुड़े होते हैं। सामाजिक सद्भाव, सामंजस्य और देखभाल करने के लिए एकल परिवारों से ज्यादा संयुक्त परिवार जरूरी हैं।

Happiness Family: जब हम परिवार नाम की संस्था की बात करते हैं तो सर्वप्रथम जो स्वरूप उभरता है, उसमें माता-पिता, बच्चे और दादा-दादी के साथ चाचा-चाची भी आते हैं। परिवार का यही वृहत्त स्वरूप संयुक्त परिवार है। लेकिन समाज में बदलाव के साथ संयुक्त परिवार का ताना-बाना बिखर गया है। आज की युवा पीढ़ी को एकल परिवार ही रास आता है। लेकिन कोरोना जैसी महामारी के दौर से संयुक्त परिवार की अवधारणा को फिर बल मिला है। जिस पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में हमारा युवा एकल परिवार को सही ठहराता था, आज उसकी सोच बदली है। यूरोप और अमेरिका जैसे देश संयुक्त परिवार की वकालत कर रहे हैं।

जड़ों से जुड़ाव: गहराई से विचार करें तो बिखरे परिवारों का ना तो कोई अस्तित्व होता है और ना वे जड़ों से जुड़े होते हैं। सामाजिक सद्भाव, सामंजस्य और देखभाल करने के लिए एकल परिवारों से ज्यादा संयुक्त परिवार जरूरी हैं। जहां बच्चों को दादा-दादी का दुलार मिलता है, तो बहुओं को सास का प्यार-स्नेह। अक्सर देखा गया है कि परिवारों की एकजुटता ही संकट में मनोबल बढ़ाती है। दरअसल, संयुक्त परिवार एक ऐसा वट वृक्ष है, जो विपत्ति में एक छाया बन कभी किसी सदस्य का मनोबल टूटने नहीं देता। संयुक्त परिवार ही परिवार की असली अवधारणा है।

खुशियों की कुंजी: परिवार के सभी सदस्य आपस में भावनाओं की डोर से बंधे होते हैं। हर छोटी से छोटी खुशी सब परिवार के साथ साझा करते हैं। कहा भी जाता है कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि यह हंसी-खुशी का माहौल परिवारजनों के साथ रहकर ही संभव है। हमारे तीज-त्योहारों की रौनक भी हमारे अपनों के साथ से ही है। यही वजह है कि परिवार इन रिश्तों के जरिए संस्कृति और संबंध दोनों को सहेजने का काम करता है। दिलों को जोड़ने वाले सांस्कृतिक पर्व अपनों से भी जुड़ाव बनाए रखते हैं। तभी तो मन में उत्साह-उमंग जगाने वाली खुशियां अपनों के बिना अधूरी-सी लगती हैं।

साझा तरीके से संकट का मुकाबला : संयुक्त परिवारों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि संकट के समय परिजन मनोबल बढ़ाने के साथ ही मजबूती से साथ खड़े रहते हैं। परिवार के हर सदस्य को अपनी जिम्मेदारी का अहसास होता है। यदि कभी कोई बड़ी समस्या या संकट आता है, तो उसका साझा तरीके से मुकाबला किया जाता है। समाज के आधुनिक होने पर संयुक्त परिवारों को बोझ समझा जाने लगा। लेकिन जब भी कोई परेशानी आई संयुक्त परिवारों ने उसका मुकाबला आसानी से किया, जबकि एकल परिवार कमजोर साबित हुए। 

सोनम लववंशी 

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