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Electoral Bonds Verdict: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर गुरुवार को अहम फैसला दिया। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने इसका स्वागत किया है। 

Electoral Bonds Verdict: भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी (SY Quraishi) ने चुनावी बॉन्ड्स पर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लोकतंत्र के लिए एक बड़ा वरदान बताया है। शीर्ष अदालत में चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को इलेक्टोरल बांड्स स्कीम को असंवैधानिक करार दिया और इस पर तुरंत रोक लगाने की आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी कानून का उल्लंघन है। जिसके बाद पूर्व सीईसी कुरैशी ने राजनीतिक पार्टियों के चंदा जुटाने के तौर-तरीके और डोनर्स की सीक्रेसी को लेकर गंभीर सवार उठाए हैं।   

लोकतंत्र में जनता का भरोसा फिर होगा कायम 
कुरैशी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा कि इस फैसले से लोकतंत्र (Indian Democracy) में जनता का विश्वास दोबारा कायम होगा। यह सबसे अच्छा निर्णय (Electoral Bonds Verdict) लिया गया है। साथ ही पिछले 5-7 साल में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसलों में यह सबसे बड़ा ऐतिहासिक निर्णय भी है। हम सभी लोग बीते कई सालों से चिंता में थे। लोकतंत्र में भरोसा रखने वाला हर नागरिक इसका विरोध कर रहा था। मैंने खुद इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर कई लेख लिखे और मीडिया के सामने अपना पक्ष रखा है। हमने जिन मुद्दों को उठाया, वे सभी शीर्ष अदालत के इस फैसले में शामिल हैं। (ये भी पढ़ें... इलेक्टोरल बॉन्ड्स असंवैधानिक करार: SC ने कहा- SBI खरीदारों की लिस्ट जारी करे)

किसी दल को मिला चंदा सीक्रेट क्यों रखा जाए? 
पूर्व चुनाव आयुक्त कुरैशी ने X हैंडल पर भी पोस्ट लिखा है। जिसमें उन्होंने लिखा- चुनावी बॉन्ड्स को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया। सुप्रीम कोर्ट को बधाई। कुरैशी का मानना है कि बैंकिंग सिस्टम के जरिए डोनेशन जुटाने की प्रक्रिया अच्छी है। लेकिन हमारी चिंता का विषय यह था कि किसी पार्टी को दिया गया चंदा सीक्रेट क्यों रखा जाए? दानदाता सीक्रेसी चाहता है, लेकिन जनता ट्रांसपेरेंसी चाहती है। सवाल है कि डोनर अपना दान गुप्त क्यों रखना चाहता है? क्योंकि इस दान के बदले उन्हें कुछ फायदा मिलेगा। जैसे- कोई लाइसेंस, किसा काम का ठेका या बैंक लोन जिसे लेकर वे विदेश भाग जाएंगे। सरकार ने भी दानदाताओं के नाम को उजागर नहीं करने का पूरा समर्थन किया। जो दानदाता पिछले 70 साल से पार्टी को चंदा दे रहे थे, उन्हें क्यों अचानक सीक्रेसी की जरूरत पड़ गई?

2-3 साल में मिला चंदा लौटेगा, नाम भी सामने आएंगे
कुरैशी ने कहा कि अब कोर्ट के आदेश पर पिछले दो-तीन सालों में मिला पूरा चंदा लौटाया जाएगा। डोनर्स के नाम देश के सामने आएंगे और पता चलेगा कि क्या किसी को बदले में कुछ मिला? क्या कोई ऐसा भी दानदाता था, जिस पर किसी प्रकार का दबाव रहा हो। लोगों को राजनीतिक दलों को चंदा देने दीजिए। वे 70 साल से चंदा दे रहे हैं, कोई परेशानी नहीं। आपने विपक्षी दलों को भी चंदा दिया तो भी किसी ने बदले की कोई कार्रवाई नहीं की। कॉर्पोरेट भी सभी पार्टियों को चंदा देते रहे हैं। लेकिन पहले करीब 60 से 70 फीसदी दान कैश में दिया जाता था, जो चिंताजनक था। एक लाइन में कहूं तो यह फैसला अभूतपूर्व और ऐतिहासिक है। मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक बार फिर लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती देगा।

2018 में मोदी सरकार लाई थी बॉन्ड स्कीम 
बता दें कि राजनीतिक दलों के द्वारा चंदा जुटाने की यह योजना मोदी सरकार ने 2 जनवरी 2018 को लॉन्च की थी। इसे नगद दान के विकल्प के तौर पर पेश किया गया। ताकि राजनीतिक दलों की फंडिंग में ज्यादा पारदर्शिता लाई जा सके।

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