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Guillain barre syndrome Pune: पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का कहर। पहली मौत दर्ज, 101 एक्टिव केस। डिप्टी सीएम ने मुफ्त इलाज का ऐलान किया। 16 मरीज वेंटिलेटर पर। GBS के लक्षण, इलाज, और बचाव की पूरी जानकारी यहां पढ़ें। सावधानी बरतें और सुरक्षित रहें।

Guillain barre syndrome Pune: पुणे में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (Guillain Barre Syndrome) के बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्य विभाग की चिंताएं बढ़ा दी हैं। रविवार (26 जनवरी) को GBS से पुणे में पहली मौत हुई। सोलापुर के एक मरीज ने दम तोड़ दिया। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग सर्तक हो गया है। हफ्ते भर में महाराष्ट्र में GBS के 73 नए केस सामने आए है। इस बीच पुणे में इस बीमारी के 101 एक्टिव केस सामने आ चुके हैं। इनमें 19 नौ साल से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं। स्थिति गंभीर होती जा रही है। आइए, जानते हैं फिलहाल कितने मरीज वेंटिलेटर पर हैं?, सरकार ने क्या ऐलान किया है? इस बीमारी के लक्षण क्या हैं और इससे बचाव के लिए क्या किए जा सकते हैं।  

डिप्टी सीएम ने किया मुफ्त इलाज का ऐलान
GBS का इलाज बेहद महंगा है। इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन का एक डोज़ करीब 20,000 रुपए का आता है। इस बात पर गौर करते हुए महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने GBS के मरीजों के लिए मुफ्त इलाज का ऐलान किया है। पिंपरी-चिंचवाड़ और पुणे नगर निगम क्षेत्र के मरीजों का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में किया जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में इस बीमारी की चपेट में आने वाले मरीजों का इलाज ससून अस्पताल में किया जाएगा। इस बीच, पुणे में पानी के सैंपल लिए गए हैं। खड़कवासला बांध के पास एक कुएं में बैक्टीरिया E. कोली का स्तर अधिक पाया गया। लोगों को उबला हुआ पानी पीने और ताजा गर्म खाना खाने की सलाह दी गई है। 

बढ़ रही है GBS पीड़ित मरीजों की संख्या
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (Guillain Barre Syndrome) की चपेट में आने वाले मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है। पुणे में फिलहाल 16 मरीज वेंटिलेटर पर हैं। इनमें से ज्यादातर मरीजों की उम्र 50 से 80 साल के बीच है। GBS की चपेट में आने वाले बच्चों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। इस बीमारी की चपेट में आने वाले ज्यादातर बच्चों की उम्र 9 साल से 19 साल के बीच है। डॉक्टरों का कहना है कि यह हेल्थ डिपार्टमेंट और आम जनता के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

स्वास्थ्य विभाग सतर्क, जांच जारी
पुणे में अब तक 25,578 घरों का सर्वे किया जा चुका है। स्वास्थ्य विभाग ने ब्लड, स्टूल और सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (CSF) के सैंपल्स की जांच के लिए ICMR और NIV भेजा है। डॉक्टरों का कहना है कि यह स्थिति काबू में लाने के लिए जागरूकता और सतर्कता बेहद जरूरी है। विशेषज्ञों ने साफ कहा है कि GBS के मामलों में अचानक तेजी आना चिंताजनक है। अगर इसकी रोकथाम के लिए समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो यह बीमारी और भी बढ़ सकती है। 

बैक्टीरिया की पहचान, पानी के सैंपल लिए गए
GBS के मामले सामने आने के बाद पुणे के अस्पतालों ने बॉयोलॉजिकल सैंपल्स की जांच की। इनमें कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी नामक बैक्टीरिया की पुष्टि हुई है। यह बैक्टीरिया GBS के एक-तिहाई मामलों का कारण बनता है। रविवार को अधिकारियों ने पुणे के पानी के सैंपल लेकर जांच शुरू की। खड़कवासला बांध के पास एक कुएं में E. कोली बैक्टीरिया का स्तर काफी ज्यादा पाया गया। लोगों को उबला हुआ पानी पीने और ताजा भोजन करने की सलाह दी गई है।

क्या है गुइलेन-बैरे सिंड्रोम?
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) एक रेयर ऑटोइम्यून कंडीशन है। इसमें इम्यून सिस्टम नर्वस सिस्टम के पेरिफेरल नर्व्स पर हमला करता है। इससे ब्रेन से मसल्स तक सिग्नल पहुंचाने की क्षमता प्रभावित होती है। यह ज्यादातर मामलों में किसी बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के बाद ट्रिगर होता है। पुणे में मिले सैंपल्स में E. कोली बैक्टीरिया का स्तर भी अधिक पाया गया है। इस बीमारी में हाथ-पैर कमजोर हो जाते हैं और मरीज चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है। कुछ मामलों में सांस लेने में भी कठिनाई हो सकती है। 

क्या है गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का लक्षण?
GBS के लक्षण शुरुआत में मामूली लग सकते हैं जैसे पैर या हाथ में झुनझुनी और कमजोरी महसूस हो सकती है। लेकिन अगर यह बीमारी तेजी से बढ़ती है, तो मांसपेशियों पर काबू समाप्त हो जाता है। कुछ मामलों में मरीज को सांस लेने में भी परेशानी होती है। डॉक्टरों का कहना है कि शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। ऐसे में जैसे ही लक्षण नजर आएं तुरंत डॉक्टरों से संपर्क करें। 

क्या है गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का इलाज?
इस बीमारी के इलाज के बारे में डॉक्टरों का कहना है कि फिलहाल इस बीमारी का कोई इलाज मौजूद नहीं है। हालांकि, इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) थेरेपी और प्लाज्मा एक्सचेंज (Plasmapheresis) जैसी ट्रीटमेंट से  इस बीमारी के लक्षणों को काबू किया जा सकता है। हालाकि, इन इलाजों का खर्च काफी ज्यादा होता है। ऐसे में इस बीमारी की चपेट में आने से गरीब तबके से आने वाले मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। 

कैसे करें गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से बचाव?
डॉक्टरों का कहना है कि GBS के मामलों में समय पर इलाज शुरू करना बेहद जरूरी होता है। गंभीर मरीजों के लिए वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है। पुणे में फिलहाल 16 मरीज वेंटिलेटर पर हैं। फिलहाल बचाव ही इससे बचने का रास्ता है। जनता को सतर्क रहने की सलाह दी है। खासकर पानी और खाने की स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। GBS कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी (Campylobacter jejuni) जैसे  बैक्टीरिया की वजह से फैलता है। दूषित पानी और खाना इस बैक्टीरिया को फैलने में मददगार होते हैं। ऐसे में साफ और स्वच्छ खानपान का ध्यान रखना जरूरी है।

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