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King Maker: एनडीए में शामिल दो नेता किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं। इनमें से एक है बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार और दूसरे हैं तेलगू देशम पार्टी के सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू।

King Maker: देश में लोकसभा चुनाव खत्म हो चुका है। वोटों की गिनती के रुझान सामने आ चुके हैं। सत्तारूढ BJP ने 240 सीटों का आंकड़ा हासिल कर लिया है। वहीं, एनडीए का आंकड़ा रुझानों में 295 है। ऐसे में देश में नई सरकार बनाने को लेकर गहमा गहमी तेज हो गई है। चूंकि एनडीए ने बहुमत का आंकड़ा छू लिया है ऐसे में सरकार भी इसकी ही बनने की उम्मीद है। हालांकि, एनडीए में शामिल दो नेता किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं। इनमें से एक है बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के मुखीया नीतीश कुमार और दूसरे हैं तेलगू देशम पार्टी के सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू।

सबकी निगाहें नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर
अब सबकी निगाहें नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर टिकी हुई हैं। सभी के जेहन में यह सवाल कौंध रहा है कि क्या अब ये दोनों नेता किंग मेकर की भूमिका निभाएंगे। क्या अब ये दोनों सरकार बनाने में साथ देंगे। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो दोनों नेता अगले कुछ दिनों में पलटी मार सकते हैं। ये दोनों  किसके साथ जाएंगे इसके बारे में भी अभी कुछ भी निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। जिस तरीके के नतीजे और रुझान सामने आए हैं उससे इन दोनों नेताओं को भी अपनी अहमियत का पता चल गया है। ऐसे में इस बात की पूरी गुंजायश है कि दोनों नेता सरकार बनाने में अपनी भागीदारी देने के लिए बीजेपी के सामने अपनी कुछ शर्तें रख सकती हैं।

कांग्रेस और बीजेपी दोनों अपने-अपने ताक में
सियासी हलकों में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि बिहार में किसी दूसरे शख्स को सीएम बनाकर बीजेपी नीतीश कुमार को दिल्ली ला सकती है। नीतीश कुमार को केंद्रीय कैबिनेट में कोई बड़ा ओहदा भी दिया जा सकता है। वहीं इंडिया गठबंधन भी सरकार बनाने की ताक में हैं। चूंकि नीतीश कुमार पहले इंडिया गठबंधन का हिस्सा रहे हैं, ऐसे में इंडिया ब्लॉक भी नीतीश कुमार को अपने पाले में करने की पुरजोर कोशिश करेगा। ऐसा कहा जा रहा है कि इंडिया ब्लॉक की ओर से नीतीश कुमार को इस्तीफा दिलवा कर तेजस्वी यादव को बिहार का नया सीएम बनवाया जा सकता है। साथ ही नीतीश कुमार को उप प्रधानमंत्री पद की पेशकश की जा सकती है।

अपने टारगेट से पीछे रह गई बीजेपी और एनडीए
बीजेपी ने इस लोकसभा चुनाव में खुद के लिए कम से कम 370 सीटें हासिल करने का लक्ष्य तय किया था। बीजेपी इस उम्मीद के साथ आगे बढ़ रही थी कि एनडीए लोकसभा चुनाव में 400 का आंकड़ा पार कर जाएगी। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। मौजूदा समय में नौबत यह है कि कोई भी पार्टी अकेले अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। लोकसभा चुनाव के रुझानों के मुताबिक, एनडीए का आंकड़ा 295 सीटों का है। इसमें 55 सीटें उन पार्टियों की भी है जो बीजेपी की सहयोगी की भूमिका निभा रही हैं। यही वजह है कि सबकी निगाहें अब एनडीए के दो अहम घटक दलों तेलगु देशम पार्टी (TDP) और जनता दल यूनाइडेट (JDU) पर आ टिकी हैं। यही दोनों किंगमेकर की भूमिका अदा करेंगे। 

टीडीपी और जेडीयू दोनों ने ही करीब 30-32 सीटों पर आगे
टीडीपी और जेडीयू दोनों ने ही करीब 30-32 सीटों पर जीत हासिल की है। यह आंकड़ा मौजूदा समय में किसी को भी केंद्र सरकार की गद्दी तक पहुंचाने के लिए काफी है। टीडीपी ने आंध्र प्रदेश में शानदार प्रदर्शन किया है। आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में टीडीपी ने जहां 130 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की है, वहीं राज्य की 16 से 17 लोकसभा सीटों पर कब्जा कर लिया है। कमोबेश यही तस्वीर बिहार में भी नजर आ रही है। बिहार में सीएम नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार है। जेडीयू लोकसभा चुनाव में 15 सीटों पर आगे है।

यू टर्न लेने वाले नेता के तौर पर रही है नीतीश कुमार की छवि
नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड भी यू टर्न लेने वाले नेता के तौर पर रहा है। बीते महीने ही वह लालू यादव की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से नाता तोड़कर एनडीए गठबंधन में शामिल हुए हैं। इससे पहले भी नीतीश कुमार एक दो बार नहीं बल्कि पांच बार पाला बदल चुके हैं। कभी वे बीजेपी के साथ आए ताे कभी आरजेडी के साथ। पिछली बार भी बीजेपी के साथ आने का उनका मकसद यही था कि उन्हें लग रहा था  कि वह एनडीए में जाते हैं तो फायदे में रहेंगे। मौजूदा समय में स्थिति यह है कि नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों ही अपनी मजबूरी के लिए एक साथ हैं। 

नीतीश की तरह चंद्रबाबू नायडू भी है बड़े पलटीमार
टीडीपी के सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू की कहानी भी नीतीश कुमार की तरह ही है। वह भी केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने से पहले कभी इसके साथ रहे तो कभी इसके विपक्ष की भूमिका में नजर आए। टीडीपी तो एक बार मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ला चुकी है। आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के पॉलिटिकल पावर की वजह से चंद्रबाबू नायडू को एक बार फिर से बीजेपी के साथ लौटना पड़ा। फिलहाल चंद्रबाबू नायडू भी इस बात को समझते हैं कि वे फिलहाल बीजेपी के साथ मोलभाव करने की स्थिति में हैं। ऐसे में इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि चंद्रबाबू नायडू ऐसा करें भी। हालांकि, उनकी शर्तें क्या होंगी, इसके बारे में तो वह खुद ही समय आने पर पत्ते खोलेंगे। 

केंद्र और राज्य दोनों की समझ रखते हैं चंद्रबाबू
चंद्रबाबू नायडू के अलग अलग टर्म को एक साथ जोड़ कर देखें तो वह करीब 13 साल तक आंध्र प्रदेश के सीएम रह चुके हैं। वह जितना राज्य के मंझे हुए राजनेता हैं, उतनी ही समझ उन्हें केंद्र की राजनीति की भी है। आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए चंद्रबाबू नायडू ने 2018 में एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी थी। हालांकि, 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में चंद्रबाबू नायडू को हार का सामना करना पड़ा। इसके करीब 6 साल बाद वह फिर से एक बार एनडीए में शामिल हो गए और साथ मिलकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ा । 

आखिर क्यों देनी पड़ी शरद पवार को सफाई
लोकसभा चुनाव के नतीतों के रुझान सामने आने के बाद भी इंडिया गठबंधन और कांग्रेस के साथ शामिल कई पार्टियों ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी। ऐसा कहा जाने लगा कि शरद पवार ने इन दोनों नेताओं से संपर्क साधने की कोशिशें शुरू कर दी है। इसको लेकर चर्चा ने इतना जोर पकड़ा कि शरद पवार को सफाई तक देनी पड़ गई। शरद पवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताना पड़ा कि फिलहाल व ना तो नीतीश कुमार के संपर्क में हैं और ना ही चंद्रबाबू नायडू के संपर्क में। इन दोनों नेताओं से उनकी कोई बात नहीं हुई है। 

फिलहाल जारी है अटकलों का दौर
इसी बीच कांग्रेस ने भी मंगलवार को सरकार बनाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा कि बुधवार को इंडिया गठबंधन की बैठक में सरकार बनाने के मुद्दे पर चर्चा होगी। इसे एक तरह से इन दाेनों नेताओं के लिए एक खुले संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। टीडीपी और जेडीयू  दोनों ही पार्टियां ऐसी हैं जो पहले अपना फायदा देखती हैं। ऐसे में इस बात को लेकर फिलहाल अटकलों का दौर जारी है कि क्या ये दोनों पार्टियां गठबंधन का धर्म निभाएंगी या फिर सियासी फायदे के चक्कर में यू टर्न लेंगी। सत्ता पर कौन काबिज होगा इसको लेकर सस्पेंस बरकरार है। जब तक शपथग्रहण हो नहीं जाता यह सस्पेंस बरकरार ही रहेगा।

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