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Ayesha Rashan Free Hearth transplant surgery: छह महीने पहले आयशा को दिल्ली से एक हार्ट मिला। यह हार्ट एक 69 वर्षीय बेन डेड मरीज का था। इसके बाद देश में उनके 18 महीने के प्रवास के बाद एमजीएम हेल्थकेयर में ट्रांसप्लांट सर्जरी मुफ्त में की गई।

Ayesha Rashan Free Hearth transplant surgery: भारत और पाकिस्तान...कहने को तो दुश्मन देश हैं, लेकिन दोनों का रिश्ता दिल से जुड़ा है। क्योंकि 1947 से पहले हम एक थे। और आज भी जब-जब रिश्ते निभाने की बात आती है तो भारतीय कभी पीछे नहीं हटते हैं। यह बात सोलह आने सच है। सच न मानिए तो आयशा रशन (Ayesha Rashan) कहानी पढ़ लीजिए। उसके दिल में दिल्ली का दिल धड़क रहा है। 

एक दशक से हार्ट रोग से पीड़ित थी आयशा
हुआ यूं कि कराची की रहने वाली 19 साल की आयशा पिछले एक दशक से हार्ट रोग से पीड़ित थीं। कई जगहों पर परिवार ने आयशा को दिखाया। हर जगह हार्ट ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी गई। 2014 में परिवार आयशा को लेकर भारत आया। यहां बीमार हार्ट को सहारा देने के लिए एक पंप ट्रांसप्लांट कर दिया। दुर्भाग्य से कुछ दिन बाद पंप ने भी काम करना बंद कर दिया। तब डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी कि अब हार्ट ट्रांसप्लांट कराने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।  

हार्ट पंप में हो रहा था रिसाव
आयशा के परिवार ने चेन्नई के एमजीएम हेल्थकेयर अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट के निदेशक डॉ. केआर बालाकृष्णन और सह-निदेशक डॉ. सुरेश राव से सलाह ली। मेडिकल टीम ने सलाह दी कि हार्ट ट्रांसप्लांट जरूरी है। क्योंकि आयशा के हार्ट पंप में रिसाव हो गया था और उसे एक्स्ट्रा कॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ECMO) प्रक्रिया पर रखा गया था।

हार्ट ट्रांसप्लांट कराने पर करीब 35 लाख रुपए खर्च होने की बात आयशा को बताई गई। लेकिन परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे। परिवार की आर्थिक हालत देखकर डॉक्टरों का दिल पसीज गया और उन्होंने परिवार को ऐश्वर्याम ट्रस्ट से जोड़ा। जिसने आर्थिक मदद की। 

69 साल के मरीज का मिला हार्ट
छह महीने पहले आयशा को दिल्ली से एक हार्ट मिला। यह हार्ट एक 69 वर्षीय बेन डेड मरीज का था। इसके बाद देश में उनके 18 महीने के प्रवास के बाद एमजीएम हेल्थकेयर में ट्रांसप्लांट सर्जरी मुफ्त में की गई। आयशा ने नया जीवनदान मिलने के लिए खुशी व्यक्त की और डॉक्टरों के साथ-साथ भारत सरकार को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।

Pakistani Girl Ayesha Rashan
डॉक्टरों के साथ आयशा।

मां बोली- भारत हमारा सच्चा दोस्त मुल्क
आयशा की मां सनोबर ने याद करते हुए कहा कि जब वे भारत पहुंचे तो आयशा की सिर्फ सांसें चल रही थीं। उसके जिंदा बचने की उम्मीद सिर्फ 10 फीसदी थी। सच कहूं तो भारत की तुलना में पाकिस्तान में कोई अच्छी चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं। मुझे लगता है कि भारत हमारा सच्चा दोस्त मुल्क है। जब पाकिस्तान में डॉक्टरों ने कहा कि कोई प्रत्यारोपण सुविधा उपलब्ध नहीं है, तो हमने डॉ. केआर बालाकृष्णन से संपर्क किया। मैं इलाज के लिए भारत और डॉक्टरों को धन्यवाद देती हूं।

17 अप्रैल को मिली छुट्टी
डॉ. बालाकृष्णन ने बताया कि विदेशियों को हार्ट तभी दिया जाता है, जब पूरे देश में कोई संभावित प्राप्तकर्ता नहीं होता है। चूंकि हार्ट एक 69 साल के मरीज का था, इसलिए कई सर्जन ट्रांसप्लांट करने में झिझक रहे थे। आखिरकार हमने जोखिम लेने का फैसला किया। क्योंकि डोनर के दिल की स्थिति अच्छी थी और यह आयशा के लिए एकमात्र विकल्प था। सर्जरी अच्छी रही और कुछ दिनों बाद आयशा को लाइफ सपोर्ट से हटा दिया गया। 17 अप्रैल को अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले अस्पताल के बिल का भुगतान ट्रस्ट ने किया है।

आयश बोली- पढ़ाई फिर शुरू करूंगी
आयशा ने कहा कि मैं अब आराम से सांस ले सकती हूं। मैं कराची में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने की योजना बना रही हूं। मैं एक फैशन डिजाइनर बनना चाहती हूं।

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