Pune Porsche Crash: महाराष्ट्र के पुणे में हुए पोर्श कार हिट एंड रन केस (Pune Porsche Crash) में फजीहत के बाद आखिरकार पुलिस एक्टिव हो गई है। पुलिस ने मंगलवार को मध्य प्रदेश के युवक-युवती को तेज रफ्तार कार से कुचलने वाले नाबालिग आरोपी के बिल्डर पिता और पब के मालिक को अरेस्ट किया है। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board) ने इस मामले के आरोपी को कस्टडी में लिए जाने के 15 घंटे के अंदर 4 हल्के फुल्के शर्तों के साथ जमानत दे दी थी। इसमें नाबालिग आरोपी को लेख लिखने के लिए भी कहा था। इसके बाद मामले की चौतरफा आलोचना होने लगी थी।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 के तहत केस चलाने की तैयारी
अब पुणे पुलिस इस मामले के नाबालिग आरोपी पर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 (Juvenile Justice Act 2015) के तहत केस चलाने की तैयारी कर रही है। दिल्ली के निर्भया केस (Nirbhaya Case) के बाद यह एक्ट अस्तित्व में आया था। इसके तहत नाबालिग आरोपी पर भी एडल्ट की तरह केस (Trial Of Juvenile In Heinous Offences) चलाया जाता है। इस मामले में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने भी बयान दिया है। फडणवीस ने कहा कि हम रिवीजन ऑर्डर की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसा नहीं होने पर हाईकोर्ट जाएंगे।
डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस बोले- सख्त कार्रवाई होगी
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने नाबालिग आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है। फडणवीस ने सड़क हादसों पर 300 शब्दों का निबंध लिखने की शर्तों के साथ नाबालिग को जमानत देने के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board) के फैसले की आलोचना की है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, "ऐसे मामलों में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड इस तरह का आदेश कैसे दे सकता है।"
#WATCH | Pune Car Accident Case | Maharashtra Deputy CM Devendra Fadnavis says, "The incident that happened in Pune in which two people died after a car which was driven by a minor hit them. There was a huge public outrage in Pune. When the minor was presented before the Juvenile… pic.twitter.com/6XY57WQXGN
— ANI (@ANI) May 21, 2024
अब आइए जानें कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 (Juvenile Justice Act 2015) क्या है और इसके प्रावधान क्या हैं:
क्या है जुवेनाइल एक्ट का इतिहास
कानून की नजर में में जुवेनाइल ऐसा व्यक्ति होता है जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो। भारतीय दंड संहिता के अनुसार, किसी भी अपराध के लिए एक बच्चे को सजा नहीं दी जा सकती। लेकिन 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप केस (Nirbhaya Gangrape Case) के बाद इस कानून पर सवाल उठने लगे। इस केस में शामिल नाबालिग आरोपी को सजा नहीं मिली, जबकि उसने सबसे ज्यादा बर्बरता दिखाई थी। उसे बाल सुधार गृह में रखा गया था। निर्भया केस के बाद गंभीर अपराध करने वाले नाबालिग अपराधियों को भी बालिग अपराधियों की तरह ट्रिट करने की मांग बढ़ी, जिसके परिणामस्वरूप जुवेनाइल जस्टिस एक्ट अस्तित्व में आया।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 कैसे अस्तित्व में आया?
निर्भया कांड के बाद जनता के गुस्से को देखते हुए 2015 में संसद के दोनों सदनों ने टीन एजर अपराधियों से संबंधित बिल में संशोधन किए। इसमें टीन एज की आयु को घटाकर 16 वर्ष कर दिया गया। हालांकि गंभीर अपराधों के आरोपी किशोरों के साथ बालिग जैसा व्यवहार करने का प्रस्ताव किया गया। लोकसभा ने 7 मई 2015 को और राज्यसभा ने 22 दिसंबर 2015 को इस बिल को पास किया। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद 31 दिसंबर 2015 को जुवेनाइल जस्टिस बिल कानून बन गया।
नए कानून में सजा में भी किया गया है बदलाव
नए कानून के अनुसार, नाबालिग अपराधियों की उम्र सीमा 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है। सजा के मामले में न्यूनतम 3 वर्ष और अधिकतम 7 वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। इस दौरान सुधार और देखरेख के लिए आरोपी को ऑब्जर्वेशन होम में रखा जाता है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में नाबालिग के खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई के लिए एक डेडलाइन तय की गई है। अगर अधिकतम 6 महीने के भीतर नाबालिग के खिलाफ मामले का निपटारा नहीं होता है, तो पूरी कार्यवाही को बंद कर दिया जाता है।
अपराध जघन्य होने पर जेल जाएंगे मां-बाप
नए कानून में प्रावधान है कि अगर किसी नाबालिग बच्चे ने जघन्य अपराध किया है, तो उसके मां-बाप या गार्डियन को जेल हो सकती है। इसके साथ ही जिसकी संगत में बच्चा अपराध कर रहा है, उसे भी जेल भेजने का प्रावधान है। पुलिस ऐसे मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 83 के तहत केस दर्ज कर सकती है। ऐसे मामलों में आरोप साबित होने पर 7 साल तक की सजा और 5 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान भी है।
पुणे केस के आरोपी के माता-पिता पर कार्रवाई
पुणे केस के आरोपी की उम्र 17 साल बताई जा रही है। इस कारण उसके पिता के खिलाफ धारा 75 (बच्चे की जानबूझकर उपेक्षा करना, या बच्चे की शारीरिक या मानसिक बीमारियों को उजागर करना) और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 77 के तहत (बच्चे को ड्रग्स शराब या नशीले पदार्थ देने) का मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा, शराब पीने के लिए निर्धारित उम्र से कम उम्र के किसी व्यक्ति को शराब परोसने के आरोप में बार पब के मालिक पर भी केस दर्ज किया गया है। बता दे केि महाराष्ट्र में शराब पीने के लिए कानूनी उम्र 25 वर्ष निर्धारित की गई है।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के क्या हैं प्रावधान
- जघन्य अपराधों के लिए वयस्क की तरह मुकदमा: जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में यह प्रावधान है कि अगर कोई 16-18 साल का किशोर दुष्कर्म या हत्या जैसे जघन्य अपराध करता है, तो उसे वयस्क माना जाएगा और उस पर वयस्कों की तरह केस चलाया जाएगा।
- जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की भूमिका: इस एक्ट के तहत जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड यह तय करेगा कि नाबालिग आरोपी को बाल सुधार गृह भेजा जाए या उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाया जाए।
- चिल्ड्रेन कोर्ट को फाइल भेजना जरूरी: अगर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड यह निर्णय लेता है कि आरोपी का ट्रायल वयस्क की तरह होना चाहिए, तो वह उसकी फाइल चिल्ड्रेन कोर्ट में भेजता है। चिल्ड्रेन कोर्ट ऐसे मामलों में सेक्शन 18 के तहत सुनवाई कर सकती है।
- अभिभावकों पर भी कार्रवाई का प्रावधान: अगर अपराध जघन्य है, तो नाबालिग आरोपी के पिता या उसके दूसरे अभिभावक पर भी केस दर्ज होगा और उनकी गिरफ्तारी हो सकती है।
- चिल्ड्रेन कोर्ट की क्या होगी प्रक्रिया: चिल्ड्रेन कोर्ट को कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसेड्योर 1973 के नियमों के तहत मुकदमा चलाना होता है। ऐसे मामलों में कोर्ट आरोपी की रिहाई की संभावना के बिना मौत की सजा, आजीवन कारावास, या अन्य कोई भी सजा दे सकती है जो कानून द्वारा अधिकृत हो।