Opinion: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत वर्ष 2024-25 के बजट पर आम प्रतिक्रियाएं अपेक्षाओं के अनुरूप ही है। हालांकि सामान्य दृष्टि से भी देखें तो यह बजट ऐसा है, जिसमें विपक्ष को तीखी आलोचनाओं के लिए ठोस आधार प्राप्त नहीं हो सकता। लोकसभा चुनाव के पूर्व से लेकर अभी तक विपक्ष ने इस सरकार पर युवाओं, किसानों, गरीबों को नजरअंदाज करने तथा बेरोजगारी बढ़ने का आरोप लगाया है।
2047 तक विकसित भारत बनाने का लक्ष्य
इस बजट का आरंभ ही युवाओं और रोजगार सृजन से हुआ। भाजपा ने लोकसभा चुनाव के संकल्प पत्र में भारत को 2047 तक विकसित भारत बनाने का लक्ष्य रखा है और इसके संदर्भ में अंतरिम बजट में काफी प्रावधान किए गए थे। यह बजट उसी का विस्तारित रूप है। यह एक साथ व्यापक स्तर पर रोजगार सृजन के साथ कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित करने, मैन्युफैक्चरिंग को आगे बढ़ाने, स्वरोजगार सृजन पर बल देने वाला बजट है। ऐसा नहीं है कि इसमें आलोचना के बिंदु नहीं है। मध्यमवर्ग को प्रत्यक्ष कर में अपेक्षित राहत नहीं मिली तो कुछ ऐसे करों की बात है जिनके बारे में तार्किक उत्तर देना थोड़ा कठिन है।
भारत के वर्तमान और भविष्य की दृष्टि से इसे एक शानदार बजट कहा जा सकता है। नरेंद्र मोदी ने पहले भी अपने भाषणों तथा पिछले सारे बजट में वैसे भारत की रूपरेखा प्रस्तुत की है जो वर्तमान अर्थव्यवस्था के मानदंड में विश्व के शीर्ष देशों की कतार में हो, जहां लोगों को जीविकोपार्जन के साधन हों, स्किल से भरे युवाओं तथा समाज का हर वर्ग युवा, महिला, किसान, बुजुर्ग, कारोबारी सबके बीच संतुलन भी हो, किंतु इन सबके साथ भारत अपने अध्यात्म, सभ्यता, संस्कृति और विरासत की मूल पहचान के साथ विकसित भारत बने। इस बजट में इन सपनों का समग्रता से समावेश है, लेकिन इसका मुख्य यूएसपी रोजगार है। आप देखेंगे कि 10 वर्षों के अनुभवों के आधार पर उन सारे क्षेत्रों को चिह्नित किया गया जहां- जहां सबसे ज्यादा फोकस करने की जरूरत है।
नौ क्षेत्रों पर फोकस का अर्थ
विकसित भारत के लिए प्राथमिकताओं के आधार पर नौ क्षेत्रों पर फोकस का अर्थ व्यावहारिक नीतियों का आधार तय हो जाना है। ये हैं कृषि में उत्पादकता और लचीलापन, रोजगार और कौशल, समावेशी मानव संसाधन विकास और सामाजिक न्याय, विनिर्माण और सेवाएं, शहरी विकास, ऊर्जा सुरक्षा, बुनियादी ढांचा, नवाचार, अनुसंधान और विकास तथा अगली पीढ़ी के सुधार। रोजगार की दृष्टि से देखें तो 2 लाख करोड़ रुपये के केंद्रीय परिव्यय के साथ 5 वर्षों में 4.1 करोड़ युवाओं के लिए रोजगार, कौशल और अन्य अवसरों की सुविधा के लिए जिन पांच योजनाओं और पहलों के लिए प्रधानमंत्री पैकेज की घोषणा है वो व्यावहारिक हैं।
शिक्षा, रोजगार और कौशल के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान है। वस्तुतः नेशनल करियर सर्विस पोर्टल पर पदों की संख्या बढ़कर 1.09 करोड़ हो गई है, लेकिन नौकरी के लिए पंजीकरण करवाने वालों की संख्या 87.2 लाख ही है। नौकरी की संख्या बढ़ने के बावजूद काफी युवा वंचित हैं तो इसका कारण स्किल के मापदंड पर खरा नहीं उतरना है। हम स्किल के मापदंडओं पर काफी पीछे हैं। इस दृष्टि से बजट में युवाओं की इंटर्नशिप की एक ऐसी विशिष्ट योजना है जिसकी ओर पहले ध्यान नहीं गया था। एक करोड़ युवाओं को अगले पांच साल में शीर्ष-500 कंपनियों में 12 महीने के लिए इंटर्नशिप की योजना इस बजट का प्रमुख आकर्षण है। सीधे काम करते हुए स्किल विकास की ऐसी योजना पहले नहीं आई थी। इसमें इंटर्नशिप करने आए युवाओं तथा कंपनियों पर भी बहुत ज्यादा भार नहीं दिया गया है।
हर वर्ष एक निश्चित राशि खर्च
कंपनियों को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत प्रशिक्षण का खर्च और इंटर्नशिप की 10 प्रतिशत लागत वहन करना होगा। कॉरपोरेट अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत हर वर्ष एक निश्चित राशि खर्च करते हैं। उन्हें उसी में से प्रदान करना है। इस तरह यह पूरी तरह व्यावहारिक है। कल्पना करिए अगर यह सफल रहा तो आने वाले समय में भारत कैसे स्किल वाले युवाओं का देश बन जाएगा। प्रधानमंत्री के पैकेज के हिस्से के रूप में योजनाओं के माध्यम से रोजगार से जुड़े कौशल की घोषणा भी विशिष्ट है। इसके तहत सभी औपचारिक क्षेत्रों में पहली बार काम करने वालों को एक महीने का वेतन मिलेगा।
एक महीने के वेतन का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी), 15,000 रुपये तक तीन किस्तों में प्रदान किया जाएगा जिसकी पात्रता सीमा 1 लाख रुपये प्रति माह का वेतन होगी। इससे 2.1 लाख युवाओं को लाभ मिलने की उम्मीद की गई है। इस तरह की योजना भी पहले नहीं आई थी। आर्थिक सर्वेक्षण में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में केवल 11.9% रोजगार का चिंताजनक आंकड़ा दिया गया है। कुछ नए कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। रोजगार सृजन को पहली बार कर्मचारियों के रोजगार से जुड़ी योजना के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा। यह योजना रोजगार के पहले चार वर्षों के दौरान सरकार प्रत्येक अतिरिक्त कर्मचारी के लिए दो साल तक प्रति माह 3,000 रुपए तक के ईपीएफओ योगदान करेगी।
अर्थव्यवस्था में टापू नहीं हो सकता
इससे 50 लाख लोगों के अतिरिक्त रोजगार को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य है। इस तरह की कई घोषणाएं बताती है कि कितनी गहराई से विचार किया गया है। रोजगार अपने आप में अर्थव्यवस्था में टापू नहीं हो सकता। संपूर्ण विकास और उसमें स्थिरता सतत स्थायी रोजगार पैदा होने का आधार होता है। स्थायी रोजगार स्वयं में पैदा होता रहता है। कृषि और उससे जुड़े सेक्टर के लिए 1 लाख 52 हजार करोड़ दिया गया है जो पिछले साल से 21.6% ज्यादा है। 400 जिलों में फसलों के सर्वे से वहां किसानों के लिए कौन सा फसल उपयुक्त और लाभदायक होगा उसके प्रचार और प्रोत्साहन पर काम होगा। 32 फसलों की 109 नई किस्में आएंगी।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए फसलों का विविधिरण, खेती के तरीके बदलना, फलों और सब्जियां के पैदावार में वृद्धि, उनके भंडारण और विपणन की सुनिश्चित व्यवस्था व्यापक स्तर पर अभी तक नहीं हो पाई है। बजट में इन सब पर समान बल देना बताता है कि नीतियां सही दिशा में हैं। दाल और दलहन के मामले में आत्मनिर्भरता और इनके उत्पादन, भंडारण और विपणन पर फोकस है।
कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है
खाद्य तेल वाली फसलों जैसे सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी और सोयाबीन के उत्पादन को बढ़ाने, सब्जियों के उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला के लिए कलस्टर बनाने, भंडारण और विपणन के ढांचों का विकास और प्रसार, एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर मोड़ने, कृषि के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की योजना के साथ राज्यों ने सहयोग किया तो कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है। इस तरह कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत ने स्वयं को अपनी पहचान के साथ विकसित देश के रूप में खड़ा करने की दिशा में गति बना दी है। गठबंधन सरकार से नीतियों पर प्रभाव नहीं पड़ा तो यह अच्छा संकेत है।
अवधेश कुमार: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)