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Opinion: ब्रिटेन का मामला वामपंथ का उभार कम और गणितीय हेर-फेर अधिक लगता है, क्योंकि कंजर्वेटिव और इसी से निकले नेताओं की दक्षिणपंथी पार्टी रिफार्म यूके को जो वोट प्रतिशत मिला है वह लेबर पार्टी को मिले मत प्रतिशत से ज्यादा है। ब्रिटेन में वामपंथ की इतनी ताकतवर सरकार के भारत के साथ सम्बन्ध कैसे रहेंगे।

Opinion: ब्रिटेन में ताजा सम्पन्न चुनाव में 14 वर्ष का वनवास झेलकर सेंटर लेफ्ट लेबर पार्टी चमत्कार करते हुए सत्ता में आ गई है। ऐसे समय में जब यूरोप में दक्षिणपंथ का प्रभाव बढ़ता जा रहा हो, और खुद ब्रिटेन में 14 वर्षों से-पश्चिमी देशों की सबसे सफल कही जाने वाली दक्षिणपंथी कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में हो तो उसे ऐतिहासिक अन्तर से परास्त कर एक वामपंथी पार्टी का सत्ता में आना की कल पैक करता है।

हालांकि आज की दुनिया में राजनीति महज विचारधारा और संवेदना का खेल न होकर गणित का भी खेल बन गई है तो इस लिहाज से ब्रिटेन का मामला वामपंथ का उभार कम और गणितीय हेर-फेर अधिक लगता है, क्योंकि कंजर्वेटिव और इसी से निकले नेताओं की दक्षिणपंथी पार्टी रिफार्म यूके को जो वोट प्रतिशत मिला है वह लेबर पार्टी को मिले मत प्रतिशत से ज्यादा है। बहरहाल, इसी के साथ यह सवाल सबसे ज्यादा उभर रहा है कि ब्रिटेन में वामपंथ की इतनी ताकतवर सरकार के भारत के साथ सम्बन्ध कैसे रहेंगे।

लैन्ड स्लाइड विक्ट्री
कुल 650 सदस्यों वाली ब्रिटिश संसद में लेबर पार्टी ने 412 सीटें जीत ली हैं। सत्तारुढ़ कंजर्वेटिव पार्टी को महज 121 सीटें ही मिल सकी। फौरी तौर पर देखा जाए तो इसे अंग्रेजी में 'लैन्ड स्लाइड विक्ट्री' कहा जाता है, लेकिन मत प्रतिशत के लिहाज से लेबर पार्टी को पिछले चुनाव यानी वर्ष 2017 से भी काफी कम महज 33.8 प्रतिशत यानी एक तिहाई वोट ही मिले हैं और सत्तारूढ़ कन्जरवेटिव को सिर्फ 23.7 प्रतिशत। लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर प्रधानमन्त्री बन गए हैं और उन्होंने तत्काल ही अपना मंत्रिमंडल भी बना लिया है। डेविड लैम्मी उनके विदेश मंत्री बने हैं।

भारत के संबंध में लैम्मी का विदेश मंत्री बनना कुछ अलग मायने रखता है। लैम्मी काफी अरसे से भारत तथा दक्षिण एशिया के बारे में अपनी राय रखते रहे हैं जिससे उम्मीद बनती है कि उनके सुलझे विचारों का लाभ भारत से सार्थक संबंध बनाने में मिलेगा। अतीत में इस लेबर पार्टी का रवैया कश्मीर जैसे मसलों को लेकर भारत सरकार को परेशान करने वाला ही रहा है।

अगस्त 2019 में जब भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने का ऐलान किया था तो तत्कालीन लेबर पार्टी प्रमुख जर्मी कोर्बिन ने लेबर पार्टी के वार्षिक सम्मेलन में एक प्रस्ताव पास कर कहा था कि भारत के कश्मीर में 'मानवीय संकट' उत्पन्न हो गया है और कश्मीरियों को आत्म निर्णय का अधिकार दिया जाना चाहिए। इस पर जब भारत सरकार ने इसका विरोध किया था तो आज के नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री और लेबर पार्टी के तत्कालीन नेता कीर स्टार्मर ने सफाई दी थी कि यह भारत-पाकिस्तान का आपसी मामला है।

लेबर पार्टी का संकल्प
वैसे तो अपने चुनाव घोषणापत्र में में लेबर पार्टी ने मुक्त व्यापार समझौता, सुरक्षा, शिक्षा, तकनीक तथा पर्यावरण आदि को लेकर भारत से सार्थक पहल करने का संकल्प ले रखा है, लेकिन स्टार्मर या डेविड लैम्मी दोनों सबसे पहले ब्रिटिश और फिर लेबर पार्टी के नेता हैं। भारत से संबंध सुधारना इसके बाद आता है। बहुत सारे मसले ऐसे हैं जिन्हें नई दिल्ली और ब्रिटेन में समान विचारधारा की बहुमत वाली दक्षिणपंथी सरकारों के रहते हुए भी निपटाया नहीं जा सका तो अभी वामपंथ की सरकार के रहते ज्यादा उम्मीद पाल लेना सही नहीं होगा।

लैम्मी चुनाव के दौरान भी सत्ता में आने पर भारत से संबंध और बेहतर करने तथा द्विपक्षीय रणनीति के तहत मुद्दों को हल करने की बात करते रहे हैं लेकिन लेबर पार्टी का एक घोषित एजेन्डा है- वैध प्रवासियों की संख्या को कम करना तथा अवैध प्रवासियों को आने से रोकना। भारत से भारी संख्या में कामगार या नौकरी के इच्छुक लोग ब्रिटेन जाते रहते हैं। ब्रिटेन में लगभग 15 लाख भारतीय और 12 लाख पाकिस्तानी रहते हैं। भारत के साथ ब्रिटेन का मुक्त व्यापार समझौता अभी हो नहीं पाया है।

इसे लागू करने में भारत से जाने वाले कामगारों को वीजा देने की प्रक्रिया एक बड़ा अड़ंगा है क्योंकि लेबर पहले ही कह चुके हैं कि वे वैध अप्रवासियों की संख्या भी कम करेंगे और दूसरी तरफ ब्रिटेन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी एफटीए यानी मुक्त व्यापार समझौता है, क्योंकि अपनी खस्ताहाल आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उसे भारत जैसा विशाल बाजार चाहिए। विशेषज्ञ कहते हैं कि द्विपक्षीय इन्वेस्टमेंट संधि, द्विपक्षीय सामाजिक सुरक्षा समझौता और कार्वन बार्डर टैक्स में संशोधन आदि ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सुनक सरकार के समय में भी प्रगति हुई है। हो सकता है कि आने वाले अक्तूबर तक भारत ब्रिटेन का मुक्त व्यापार समझौता आकार ले ले क्योंकि गरज दोनों पक्षों को है।

अतिवादी समूह बड़ी समस्या
इसके अलावा दोनों देशों के बीच एक बड़ी समस्या ऐसे अतिवादी समूहों को लेकर है जो ब्रिटेन में हैं और भारत के खिलाफ अभियान चलाया करते हैं। इनमें इस्लामिक और सिख अतिवादी प्रमुख हैं। कनाडा के बाद सबसे ज्यादा सिख ब्रिटेन में ही हैं। ब्रिटेन मे इस बार भारतीय मूल के जो 28 सांसद जीते हैं उनमें कन्जरवेटिव पाटीं के 06 तथा लेबर पार्टी के 20 सांसद जीते हैं और उनमें 12 सिख है। कनाडा में कुल 18 सिख सांसद हैं।

इस प्रकार स्टार्मर और डेविड लैम्मी की भारत के प्रति सदाशयता तभी तक काम करेगी जब तक उनकी पार्टी अपने इस वोट बैंक से आश्वस्त रह सकेगी। चुनाव के दौरान ही स्टार्मर ने कहा था कि वे यूरोपियन यूनियन के साथ सम्बन्ध सुधारने की शुरुआत करेंगे, लेकिन उनकी पार्टी ने अधिकृत तौर पर कह दिया था कि ऐसा कोई एजेन्डा पार्टी की टेबल पर नहीं है। बहरहाल राजनीति संभावनाओं का खेल है और उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों पक्षों की जरूरतों के लिहाज से समझौतों की गाड़ी आगे बढ़ेगी।
सुनील अमर : (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।)

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