Opinion: आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लगातार सातवीं बार बजट पेश करेंगी। महिला वित्तमंत्री के रूप उनका यह नया रिकार्ड होगा। निर्मला मोदी सरकार 3.0 का पहला पूर्ण बजट पेश करेंगी। भाजपा को नहीं, राजग को जनादेश के चलते वित्त मंत्री इस बार दबाव में होंगी। जहां मजबूत विपक्ष का सरकार पर दबाव है, वहीं टीडीपी व जदयू जैसे सहयोगी दलों का भी दबाव है। इस दबाव का असर बजट पर जरूर दिखेगा।
मांगों की छाप भी बजट में
बजट से लोगों की अपेक्षाओं को जानने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नौ जून को शपथ के बाद से कई बैठकें की हैं, उनकी मांगों की छाप भी बजट में दिखेगी। आंध्र प्रदेश व बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना सरकार के वित्तीय सहूलियत के हिसाब से आसान नहीं होगा। इसलिए बजट में इसकी उम्मीद कम है। भाजपा पर अपने चुनावी वादे पूरे करने का भी दबाव है। इतना ही नहीं सरकार विकसित भारत, आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया जैसे संकल्पों से भी लदी हुई है। बजट पर इन संकल्पों का भी प्रभाव रहेगा। लाभार्थी क्लास ज्ञान (गरीब, युवा, किसान व महिला शक्ति) के लिए नई घोषणाएं हो सकती हैं।
आयुष्मान योजना के स्वरूप व दायरे में बदलाव हो सकता है। मोदी ने लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा का संकल्पपत्र जारी करते हुए कहा था कि 70 साल से ऊपर के सभी नागरिकों को पांच लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज के लिए आयुष्मान योजना के दायरे में लाया जाएगा। सरकार का ध्यान हेल्थ बीमा योजनाओं के साथ स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी दूर करने पर होना चाहिए। सरकार इस बजट में स्वास्थ्य सेक्टर को प्रायोरिटी पर ले सकती है।
वसूली पर बहुत अधिक फर्क नहीं
नौकरी पेशा मध्यवर्ग की ख्वाहिश आयकर छूट की सीमा बढ़ाने की है, वित्त मंत्री को दस से बारह लाख रुपए सालाना आय को टैक्स से मुक्त करना चाहिए, इससे सरकार की कर वसूली पर बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ेगा, केवल चार फीसदी लोग ही आयकर के दायरे में हैं। कर छूट सीमा बढ़ाने से बचत के रूप में बैंकों में जमा बढ़ेगी व कंज्यूमर उत्पाद सेक्टर को लाभ होगा। उच्च महंगाई के दौर में ढाई से तीन लाख तक की आयकर छूट सीमा कुछ भी नहीं है। आयकर छूट की सीमा को इतना कम रखना न अच्छा अर्थशाख है, न अच्छी राजनीति है। सरकार इस मांग को बजट दर बजट इग्नोर करती रहेगी, तो अपनी लोकप्रियता भी खोती रहेगी।
इस बजट में वित्त मंत्री आयकर सीमा को लेकर उदार कदम उठा सकती है, हालांकि अधिकांश अर्थशात्रियों को इसकी उम्मीद कम है। चंकि आगे पांच राज्यों में कछेक महीने के बाद विधानसभा चुनाव हैं, जहां भाजपा व राजग की साख दांव पर हैं, इसलिए बजट में कुछ लोकलुभावन जैसी टोकन योजना हो सकती है, जिसकी भाजपा को अधिक जरूरत है, क्योंकि अब 'मोदी की गारंटी' काम नहीं कर रही है। भाजपा अगर इस आम चुनाव में अपनी कम सीटें मिलने का ईमानदारी से अध्ययन करेगी, तो पाएगी कि ब्रांड मोदी का प्रभाव कम हुआ है, इसलिए अब ब्रांड स्कीम्स पर फोक्स करना होगा। इस बार के बजट में ब्रांड स्कीम्स पर जोर हो सकता है।
आर्थिक सुधार के अगले चरण में जाना
सरकार पर आर्थिक सुधार के अगले चरण में जाने का दबाव है। बजट में रिफॉर्म के कदम दिख सकते हैं, जिसमें हाईवे, पोर्टवे, एयरपोर्टवे, डिजिटलवे, ग्रीनवे, इलेक्ट्रिकलवे पर फोकस हो सकता है, ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाया जा सकता है और सूक्ष्म तथा लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाया जा सकता है। रिकार्ड जीएसटी वसूली के चलते अब अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में जीएसटी परिषद को अपनी दरों को कम करने पर विचार करना चाहिए। जीएसटी दरों में कमी से महंगाई से राहत मिल सकती है। हालांकि बजट में जीएसटी को लेकर किसी कदम की उम्मीद कम है।
कोविड महामारी के बाद से सरकार की राजकोषीय रणनीति में सामाजिक सुरक्षा योजनाएं महत्वपूर्ण हैं। इसलिए बजट में अंत्योदय, पीडीएस, मुफ्त अनाज, मनरेगा, सब्सिडी, किसान निधि, उज्ज्वला जैसी योजनाओं के लिए आवंटन बढ़ सकता है। इस तीन तिमाही वाले बजट में पहले से चिन्हित सभी सात प्राथमिकताओं- समावेशी विकास, अंतिम छोर तक पहुंच, बुनियादी ढांचा और निवेश, क्षमता का पूर्ण उपयोग, हरित विकास, युवा शक्ति और वित्तीय क्षेत्र के विस्तार पर फोकस जारी रखे जाने की संभावना है। यह बजट जहां जीडीपी ग्रोथ बढ़ाने वाला होगा, वहीं सस्टेनेबल ग्रोथ को भी गति देने वाला होगा। इस आम बजट में नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) को लेकर कुछ नई घोषणाएं हो सकती हैं।
अनिवार्य पेंशन योजना
पेंशन योजनाओं को लेकर राज्यों के स्तर पर काफी चर्चा हुई है। केंद सरकार ने एनपीएस को लेकर समिति भी गठित की थी। लेकिन यदि सरकार सभी 25 वर्ष से ऊपर के नागरिकों के लिए 30 वर्ष की अवधि तक हेतु अनिवार्य पेंशन योजना लेकर आएगी तो सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है। अलग-अलग पेंशन योजनाएं लागू करने के बजाय सरकार को एक अनिवार्य राष्ट्रीय पेंशन योजना लेकर आना चाहिए, जिसमें 25 वर्ष की उम्र से अधिक के सभी नागरिकों को अपनी पेंशन के लिए मासिक एक न्यूनतम राशि का अंशदान अनिवार्य रूप से करना होगा, चाहे नागरिक कोई भी काम करता हो, निजी क्षेत्र में नौकरी या सरकारी क्षेत्र में या फिर अपना उद्योग- व्यापार।
अंशदान 30 वर्ष के लिए अनिवार्य होगा। इरडा से रेगुलेट करे और ईपीएफओ पेंशन फंड का प्रबंधन करे। इस पेंशन योजना को लागू करने से सरकार सामाजिक सुरक्षा स्कीमों से धीरे धीरे मुक्त होती जाएगी, नागरिक स्वयं अपने भविष्य को सुरक्षित करेगा। सरकार को यह फायदा होगा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर कोष के लिए कभी फंड की कमी नहीं आएगी, क्योंकि करोड़ों नागरिकों का नियमित अंशदान सरकार के पास बड़ी रकम के रूप में आएगी। राष्ट्रीय पेंशन योजना को एलआईसी की तरह सरकार ही चलाए, इसमें निजी क्षेत्र न हो। एनपीएस एलआईसी से बड़ा कोष साबित होगी।
योजना आयोग को नीति आयोग बनाकर
पिछले दसेक वर्ष में मोदी सरकार ने जिस तरह योजना आयोग को नीति आयोग बनाकर वित्त वर्ष की योजना का तीन वर्षीय, पांच वर्षीय और पचीस वर्षीय योजना आदि से घालमेल कर दिया है, रेल बजट को खत्म कर दिया है, उससे आम बजट की अहमियत घटी है, बजट में एक वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक लक्ष्य हासिल करने की कार्ययोजना नहीं रहती है। लगता है जैसे आम बजट राशि आवंटन के ऐलान का दस्तावेज बन कर रह गया है।
कायदे से बजट में एक वित्त वर्ष में आर्थिक लक्ष्य पाने का एक्शन प्लान होना चाहिए, इससे संबंधित विभाग व मंत्री-अफसर की जिम्मेदारी तय होगी, अगले तीन साल में, अगले पांच साल में देश की अर्थव्यवस्था कहां होगी, उसका भी रोडमैप बजट में होना चाहिए और अगले 20 से 25 वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा क्या होगी, भारत किस नए आर्थिक क्षेत्र में ताकत बनकर उभरेगा, बजट में इसकी दृष्टि भी होनी चाहिए। बजट को मैक्रो नहीं माइक्रो बनाना चाहिए। रेल बजट व कृषि बजट को आम बजट से अलग करना चाहिए। आर्थिक लोकतंत्र व आर्थिक विकेद्रीकरण से देश अधिक तेजी से सस्टेनेबल विकास कर पाएगा। बजट जनाकांक्षाओं को पूरा करेगा।
शंभू भद्र: (लेखक वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)