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Maa Sharda Devi temple: मध्यप्रदेश के मैहर जिले में मां शारदा माता मंदिर स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि आल्हा और ऊदल आज भी अदृश्य रूप में मां शारदा की आरती एवं दर्शन करने आते हैं।

Maa Sharda Devi temple: मध्यप्रदेश के मैहर जिले में मां शारदा माता मंदिर स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि आल्हा और ऊदल आज भी अदृश्य रूप में मां शारदा की आरती एवं दर्शन करने आते हैं। मंदिर का पट बंद होने के बाद आल्हा एवं उदल अदृश्य रूप में माता की पूजा एवं दर्शन करने के लिए आते हैं। सुबह जब मंदिर का पट खुलता है, उस समय माता की पूजा आल्हा ऊदल कर चुके होते हैं।

ज्योतिषाचार्य डॉ. मनीष गौतम ने बताया कि हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। इस महायज्ञ में उनकी पुत्री को नहीं बुलाया गया। जबकि सती जी शामिल होना चाहती थी। इसके पहले भी माता सती ने अपने पिता दक्ष की आज्ञा के बगैर भगवान शिव से शादी की थी। जिसके कारण प्रजापति दक्ष उनसे नाराज हो गए थे। 

अग्निकुंड के अग्नि में अपने आप को किया भस्म
माता सती और भगवान शिव को इस महायज्ञ में उन्होंने नहीं बुलाया। इसके बावजूद माता सती ने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की अनुमति चाही लेकिन महादेव से अनुमति नहीं मिली। माता सती फिर भी वहां पर पहुंच गई। उन्हें देखकर दक्ष प्रजापति क्रोधित हुए और माता सती का अपमान भी किया। इसी अपमान से सती इतनी दुखी हुई, कि उन्होंने अग्निकुंड के अग्नि में अपने आप को भस्म कर लिया।

कैसे हुआ शक्तिपीठ का निर्माण
भगवान शिव को जब माता सती के बारे में पता चला, तो वह दुखित होते हुए चारों तरफ घूमने लगे। यह दृश्य देखकर भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटना शुरु कर दिया। उसके बाद मां के शरीर के 51 हिस्से भारत के अनेक भागों में आकर गिरे। जिस जगहों पर अंग के हिस्से गिरे, बाद में वहां शक्तिपीठ का निर्माण हो गया। उन्ही शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ है मां शारदा का मंदिर। 

पट खुलने से पहले आल्हा ऊदल करते हैं पूजा
मान्यता है कि मां सती का हार यहां पर गिरा था। मां शारदा का यह धाम मध्य प्रदेश की त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर के आसपास कई ऐसे चमत्कार होते हैं। जिनके कारण देश एवं दुनिया से काफी तादात में लोग दर्शन करने यहां आते हैं। एक मान्यता यह भी है कि मंदिर का जब पट बंद हो जाता है और सभी पुजारी और भक्त नीचे आ जाते हैं। तब वहां कोई भी नहीं रहता तब मंदिर के भीतर आल्हा एवं उदल अदृश्य रूप में माता की पूजा एवं दर्शन करने के लिए आते हैं। सुबह जब मंदिर का पट खुलता है उस वक्त माता की पूजा आल्हा ऊदल कर चुके होते हैं। 

दोनों भाइयों ने माता को चढ़ाई थी जीभ
आल्हा और उदल मां शारदा के बहुत बड़े भक्त थे। दोनों भाइयों ने मिलकर माता की 12 साल तक कठोर तपस्या की थी। इस तपस्या से माता काफी प्रसन्न हुई और उनको अमरत्व का वरदान दे दिया। मान्यता यह भी है कि दोनों भाइयों ने माता के समक्ष अपनी जीभ चढ़ा दिया था, लेकिन माता ने उसे स्वीकार्य करने से मना कर दिया था। हमारी संस्कृति में मां शारदा को बुद्धि की देवी कहा गया है। आप सब लोगों को माता के एक बार दर्शन जरूर करना चाहिए।

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