Major Dhyanchand: हॉकी के जादूगर के नाम से मशहूर मेजर ध्यानचंद का पूरा जीवन झांसी में ही बीता है। यहां लोग उन्हें दद्दा ध्यानचंद के नाम से जानते हैं। ध्यानचंद के पिता सुमेशर ब्रिटिश आर्मी में थे और पूरा देश घूमते-घूमते प्रयागराज से यहां आकर बस गए थे। झांसी के हीरोज ग्राउंड में ही मेजर ध्यानचंद ने हॉकी खेलना शुरू किया था। उनके पुत्र अशोक कुमार बताते हैं कि पहले इतनी सुविधाएं नहीं होती थीं, जो आज हैं। आज तो एस्ट्रोटर्फ भी मिल रही है, लेकिन पहले हीरोज ग्राउंड की पथरीली जमीन पर ही कठिन परिस्थितियों में खेलना होता था और यहीं उन्होंने हॉकी की सभी ट्रिक सीखी थीं।
राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण
ग्राउंड के पास ही दद्दा ध्यानचंद का घर था। उस घर को आज भी उसके मूल रूप में संरक्षित रखा गया है। वहीं, जिस कमरे में ध्यानचंद अतिथियों से मिला करते थे उसे अब एक म्यूजियम का रूप दे दिया गया है। इस कमरे में ध्यानचंद की हॉकी से लेकर वह तलवार भी वहां रखी हुई है जिसे वह सैनिक के तौर पर इस्तेमाल करते थे। साथ ही उनके सभी मेडल और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा दिया हुआ पद्म भूषण भी इसी कमरे में मौजूद है।
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ध्यान सिंह कैसे बने ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यानचंद भी हॉकी के बड़े खिलाड़ी रहे हैं। वे ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनका असली नाम ध्यान सिंह था। सेना में रहने के दौरान वह देर रात तक चांद की रोशनी में हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे। इसके अलावा जब उनका हॉकी में कॅरियर ब्राइट हो गया तो इसको देखते हुए उनके एक अधिकारी ने उनका नाम ध्यानचंद रख दिया।
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हॉकी अच्छी चलती रहे, यही सच्ची श्रद्धांजलि
जब हरिभूमि ने पूर्व ओलंपियन और मेजर ध्यानचंद के पुत्र अशोक से बात की, तब वे ट्रेन में सफर कर रहे थे और घर झांसी जा रहे थे। उन्होंने खेल दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि, हॉकी ऐसे ही अच्छी चलती रहे। अच्छे-अच्छे खिलाड़ी टीम में आते रहें, भारत को मेडल मिलते रहें, यही मेजर साहब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अशोक ने बताया कि हर वर्ष की तरह झांसी में हम लोग मेजर साहब की याद में हॉकी मैच का आयोजन करते हैं। सभी शहरवासी इस कार्यक्रम में शरीक होते हैं और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। इसके अलावा उनकी स्मृति में बनाए गए म्यूजियम को निहारने भी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।