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DMF पद के शासी परिषद की सदस्यता में न तो सत्ता पक्ष के और न ही जिले के बल्कि दूसरे राज्य के क्रेशर संचालक को सदस्यता मिल गई है। 

पंकज भदौरिया- दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा जिले में लौह अयस्क की बैलाडीला की खानों से अयस्क खनन मिले। DMF (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड) सालाना करोड़ों रुपयों का होता है, जिसका खर्च खनन प्रभावित क्षेत्र को प्राथमिकता में रखते हुए लाल पानी प्रभावित क्षेत्र का विकास करना है। सालों से यह सिलसिला दंतेवाड़ा जिले में चल रहा है। इस पैसे के खर्च  में क्षेत्र के लाभ को ध्यान में रखते हुए प्रशासनिक और खनन क्षेत्र के सरपंच, प्रभावित इलाकों के ग्रामीणों से जुड़कर विकास की चर्चा तो करते हैं लेकिन काम कुछ भी नहीं होता। 

दरअसल, DMF  शासी परिषद में जिला निर्माण समिति का गठन दंतेवाड़ा जिले में हुआ है उसमें गीदम के जावंगा में आंध्रप्रदेश के रहने वाले टी रंजीत को सदस्य बनाया गया है। यह पोस्टिंग समझ से परे है क्योंकि, टी रंजीत न तो भाजपा पार्टी के सदस्य हैं और न ही वे दंतेवाड़ा जिले के मूल निवासी हैं। एक अस्थाई तौर पर व्यवसाय करने आए व्यापारी को DMF  पद की महत्वपूर्ण बैठकों का सदस्य बनाना समझ से परे है। 

शासी परिषद: file:///C:/Users/BABU/Downloads/sashipraisad.pdf

क्या कहता है नियम

DMF में सदस्यों की सूची में बस्तर जिले से बाहर के व्यक्ति नियमतः नहीं रखे जा सकते हैं। नियमावली में सबसे पहली प्राथमिकता सरपंच को मिलनी चाहिए यदि सरपंच नहीं है तो उस गांव का कोई जागरूक सदस्य हो जहाँ क्रेशर है। क्योंकि विकास की चर्चा होकर उस पर क्षेत्रीय विकास को विकसित करने के लिए मॉडल तैयार किया जाता है। जो इस जिले का भी नहीं उसे इस क्षेत्र के विकास से क्या सरोकार रहेगा?

विधायक ने कहा जानकारी नहीं

दंतेवाड़ा विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 88 के विधायक चैतराम अटामी से जब हमने चर्चा की तो उन्होंने कहा कि इस विषय में मुझे कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि, मैं पता करता हूं। 

विधायक को नहीं है क्षेत्र में हो रहे प्रशासनिक कार्यों की जानकारी

विधायक के इस तरह के बयान से साफ हो रहा है कि, दंतेवाड़ा जिले में हो रहे प्रशासनिक कामों की जानकारी विधायक को नहीं है। या फिर जिम्मेदार अधिकारी अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं।

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