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बीजापुर जिले के चेरपाल गांव का बाजार स्थानीय संस्कृति, परंपरा और रंगीनता का प्रतीक है। यह बाजार मुख्य रूप से आदिवासी जीवनशैली और उनकी विशिष्ट वस्तुओं के लिए लंबे समय से जाना जा रहा है।

गणेश मिश्रा- बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर  जिले के चेरपाल गांव का बाजार स्थानीय संस्कृति, परंपरा और रंगीनता का प्रतीक है। यह बाजार मुख्य रूप से आदिवासी जीवनशैली और उनकी विशिष्ट वस्तुओं के लिए लंबे समय से जाना जा रहा है। यहां मिलने वाले उत्पाद और माहौल का रंग-रूप अद्वितीय है। यह विवरण चेरपाल बाजार की बदलती आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को दर्शाता है। 

पहले जब वस्तु विनिमय का दौर था, तब नमक जैसी दुर्लभ और महत्वपूर्ण वस्तु का उपयोग आदान-प्रदान के लिए किया जाता था। नमक को चिरौंजी जैसे वन उत्पादों के बदले दिया जाता था। क्योंकि, नमक पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध नहीं था। जबकि, चिरौंजी जंगलों में प्रचूर मात्रा में मिलती थी। पहले नमक की दुर्लभता और उसकी मांग के कारण यह आदान-प्रदान का मुख्य साधन था। समय के साथ कृषि और बाजार के विस्तार के कारण चावल जैसी बुनियादी चीजें अधिक उपलब्ध हो गईं। अब चावल एक ऐसी वस्तु बन गया है, जिसे आदान-प्रदान के लिए उपयोग किया जाता है। खासकर आदिवासी समुदायों में। यह बदलाव स्थानीय समुदायों की बदलती प्राथमिकताओं और कृषि पर उनकी बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है। 

चिरौंजी के जरिए होता था आदान-प्रदान

यह बदलाव दर्शाता है कि, कैसे आदिवासी समाज समय के साथ आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाए हुए है। आज भी चिरौंजी और अन्य वन उत्पाद आदान-प्रदान में भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन, आधुनिक कृषि उत्पादों का प्रभाव बढ़ गया है। यह उदाहरण इस बात का प्रतीक है कि, कैसे एक समुदाय की आवश्यकताएं, संसाधन और आदान-प्रदान की प्रणाली समय के साथ बदलती हैं। लेकिन, उसकी जड़ें पारंपरिक व्यवस्था में बनी रहती हैं।

यहां की मुर्गा लड़ाई है प्रसिद्ध 

मुर्गा लड़ाई इस क्षेत्र की पुरानी परंपरा और स्थानीय सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि कई समुदायों के लिए आर्थिक गतिविधियों और मेल- जोल का भी माध्यम है। यह परंपरा खास तौर पर हाट-बाजारों में देखने को मिलती है। जहां लोग अपने साथ मुर्गों को लाते हैं और मुकाबलों का आयोजन करते हैं। यह न केवल सांस्कृतिक परंपरा है। बल्कि, मनोरंजन-आदिवासियों के बीच प्रतिस्पर्धा और सामाजिक मेल-जोल का मौका भी है।

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साप्ताहिक हाट लोगों के मेल- जोल का केंद्र 

बाजार में उपलब्ध अनूठी खाने-पीने की चीजें, महुआ (पेय) और जंगल से प्राप्त शहद, जड़ी-बूटियों का व्यापार इस बाजार में प्रमुख रुप से होता है। बस्तर के साप्ताहिक हाट न केवल मेल- जोल के केंद्र हैं। बल्कि, यहां लोग अपनी जरुरत का सामान खरीदने के साथ ही सामाजिक संबंध भी मजबूत करते हैं। ऐसे ही सैकड़ों बाजार में से एक है चेरपाल का वीकली बाजार, जहां आकर आप आदिवासी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति को करीब से जान सकते हैं।

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